पाकिस्तान में संरक्षित आतंकवाद से हम भी पीडित, लखवी पर पाक के रुख का समर्थन नहीं : चीनी विशेषज्ञ

बीजिंग : चीन का मुस्लिम बहुल पश्चिमोत्तर क्षेत्र विदेशी आतंकवादियों द्वारा समर्थित आतंकवाद से पीडित है, जिसने पूरे एशिया क्षेत्र की शांति और विकास को खतरे में डाल दिया है. चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्ट्रैटेजी के उपनिदेशक ली वेन ने भारतीय संवाददाताओं के एक समूह को बताया आतंकवाद समूची […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2015 5:56 PM
बीजिंग : चीन का मुस्लिम बहुल पश्चिमोत्तर क्षेत्र विदेशी आतंकवादियों द्वारा समर्थित आतंकवाद से पीडित है, जिसने पूरे एशिया क्षेत्र की शांति और विकास को खतरे में डाल दिया है. चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्ट्रैटेजी के उपनिदेशक ली वेन ने भारतीय संवाददाताओं के एक समूह को बताया आतंकवाद समूची मानव जाति के लिए दुश्मन है. चीन के पश्चिमोत्तर में हम आतंकवाद से पीडित हैं और इस बात के सबूत हैं कि उन्हें विदेशी आतंकवादी ताकतों का समर्थन मिल रहा है.
ली का इशारा पडोसी पाकिस्तान में स्थित अलकायदा और तालिबान सहित आतंकवादी समूहों की ओर था, जिनके संबंध ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) से हैं. ईटीआईएम एक उग्रवादी समूह है जो शिनजियांग को अलग करने की मांग कर रहा है. उन्होंने कहा आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए, हमें सहयोग की जरूरत है, जिसमें अमेरिका, चीन तथा भारत को और चीन तथा पाकिस्तान को मिल कर काम करने की आवश्यकता है. इसीलिए हमने शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना की है. आतंकवाद की जड में कुछ मजहबी समस्याएं होने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास का घोर असंतुलन भी आतंकवाद के उद्भव के कारणों में से एक है. उन्होंने जोर दे कर कहा कि प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक विकास को आगे बढाना चाहिए ताकि आतंकवाद की ओर ले जाने वाले ऐसे असंतुलन को समाप्त किया जा सके.
मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड जकी-उर-रहमान लखवी को रिहा करने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में भारत के कदम को रोकने के चीन के मुद्दे पर एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध सूची में आतंकवादियों के नाम डालने से बडा फर्क नहीं पडता. युन्नान यूनिवर्सिटी ऑफ फायनेन्स एंड इकोनॉमिक्स में रिसर्च इन्स्टीट्यूट फॉर इंडियन ओशन इकोनॉमिक्स में विशेषज्ञ हाइलिन ये ने बताया कई साल पहले हम संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध सूची में नाम डालने में सफल हुए थे और यह कारगर नहीं रहा. उन्होंने कहा हम उनके (पाकिस्तान के) रुख का समर्थन नहीं कर रहे हैं. पाकिस्तान के पास कई समस्याएं हैं और अब वह कमजोर स्थिति में है, जबकि भारत एक मजबूत शक्ति है. दक्षिण चीन सागर पर भूभागीय दावे को लेकर पडोसी देशों से टकराव के बारे में हाइलिन ये ने कहा कि दक्षिण चीन सागर पर चीन का हक है और बीजिंग को इस क्षेत्र पर अपना दावा हजारों साल पहले कर देना चाहिए था. उन्होंने कहा हमारा रुख इसलिए आक्रामक है, क्योंकि हमने बहुत देर कर दी, हमें यह हजारों साल पहले कर देना चाहिए था. हम क्षेत्रीय सहयोग चाहते हैं लेकिन अपने मूलभूत हितों में हम कोई बदलाव नहीं चाहते.

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