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आध्यात्मिक शिक्षा से सुधरेगा समाज

कहां जा रहा है समाज सोचें और आगे आयें स्वामी माधवानंद, चिन्मय मिशन आश्रम, रांची आज के समाज में नैतिक पतन हो रहा है. मानव जीवन जिस उद्देश्य से मिला है, हम सभी उससे भटकते जा रहे हैं. समाज में शिक्षा, शोध व भौतिक सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन आध्यात्मिक मूल्यों में कमी आयी है. मनुस्मृति […]

कहां जा रहा है समाज सोचें और आगे आयें
स्वामी माधवानंद, चिन्मय मिशन आश्रम, रांची आज के समाज में नैतिक पतन हो रहा है. मानव जीवन जिस उद्देश्य से मिला है, हम सभी उससे भटकते जा रहे हैं. समाज में शिक्षा, शोध व भौतिक सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन आध्यात्मिक मूल्यों में कमी आयी है.

मनुस्मृति में कहा गया है : राजा नुगत: धर्म: अर्थात राजा जैसा अनुसरण करेगा, प्रजा भी उसी का अनुकरण करेगी. यह भी कहा गया है : यथा राजा तथा प्रजा (जैसा राजा वैसी प्रजा). सरकार, देश व समाज को आध्यात्मिक मूल्यों पर जोर देना होगा. स्कूल-कॉलेज से आध्यात्मिक शिक्षा की शुरुआत होनी चाहिए.

जब तक युवाओं में आध्यात्मिक शिक्षा का वास नहीं होगा, समाज इसी तरह बे-पटरी होता रहेगा. युवा देश की शक्ति है. युवाओं के कं धे पर देश की बागडोर है. इसलिए युवा सोच-समझ कर कोई कदम उठायें. आध्यात्मिक सोच नहीं होने से युवा कामनावृतियों की ओर खींचते चले जा रहे हैं.

उन्हें यह पता नहीं होता है कि जिस राह पर वह चल रहे हैं, उससे न तो उनका भला होगा न ही समाज का. इससे उनका चारित्रिक पतन जरूर होगा. कामना की वृतियों को भक्ति एवं ज्ञान से खत्म किया जा सकता है, क्योंकि भक्ति से कामना दूर भागता है और ज्ञान अजर्न करने से वैराग्य की प्राप्ति होती है. भक्ति और ज्ञान से शारीरिक व भौतिक सुख को खत्म किया जा सकता है. अच्छे समाज के निर्माण के लिए समाज के हर वर्ग को मिल कर ठोस पहल करनी चाहिए.

घर की शिक्षा भी दोषी

समाजशास्त्री डॉ रीता सिन्हा से बातचीत

बदलते परिवेश में हमारा समाज कहां जा रहा है. हमारे संस्कार में ही कमी तो नहीं आ गयी है, जिससे युवा अपनी दिशा से भटक रहे हैं. आखिर समाज में इतनी विकृतियां क्यों आ गयी हैं. इन्ही सब सवालों पर प्रभात खबर ने समाजशास्त्री डॉ रीता सिन्हा से बातचीत की. प्रस्तुत है इसके प्रमुख अंश..

समाज में विकृतियां क्यों पनपी ?

इसके कई कारण हैं. आज समाज की दिशा बदलने में भौतिकतावाद की अहम भूमिका हो गयी है. विकृतियां आने का प्रमुख कारण हम संस्कार में आयी स्थिरता को भी मान सकते हैं. व्यक्ति खासकर युवा समाज अच्छी चीजों को अपनाने के बजाय गलत चीजों को जल्दी अपना रहा है. और उसी के अनुरूप उसमें ढलने की कोशिश कर रहा है, भले ही इसका अंजाम बुरा क्यों न हो. व्यक्ति संस्कारविहीन होता जा रहा है. इसमें हम घर में दी गयी शिक्षा को भी दोषी मानते हैं.

पाश्चात्य संस्कृति अपनाने के चलते हम अपनी संस्कृति खोते जा रहे हैं. इसके लिए अभिभावकों को जिम्मेदारी लेनी होगी. उन्हें अपने बच्चों पर ध्यान रखना ही होगा. अच्छे संस्कार देने होंगे.

उपभोक्तावादी संस्कृति ने क्या प्रभाव डाला है ?

उपभोक्तावादी संस्कृति की बात करें, तो आज लोग यूज एंड थ्रो की प्रवृत्ति को अपना रहे हैं. किसी भी चीज को प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक चले जा रहे हैं. इससे समाज में बदलाव आया है. कंपनियां अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए टीवी, अखबार या फिर होर्डिग्स में जिस तरह से ईलता और फूहड़ता का प्रयोग कर रहे हैं, इससे लोगों की मन:स्थिति प्रभावित हो रही है.

नये फैशन व पहनावा ने युवाओं की संस्कृति को प्रभावित किया है. इसके लिए जरूरी है कि बच्चों को अच्छी व व्यावहारिक शिक्षा देने की. अभिभावक अपने बच्चों को ऐसा माहौल दें, जिसमें उन्हें शिक्षा के साथ- साथ उनकी समस्याओं व उनकी जरूरतों का ख्याल रखा जा सके. स्कूल व कॉलेज में भी विद्यार्थियों को सिर्फ डिग्री प्राप्त कराने के लिए केवल पढ़ाना ही जरूरी नहीं है, बल्कि उनमें स्वमूल्यांकन का वातावरण पैदा करना होगा.

हमारी सोसाइटी खुलेपन के लिए कितना तैयार है. इससे निबटने के रास्ते क्या हैं ?
भारत की संस्कृति और पाश्चात्य देशों की संस्कृति में काफी अंतर है. बदलते परिवेश में समाज में हर दिन बदलाव आ रहे हैं. एक समय था, जब नारियां घर की दहलीज के अंदर ही रहती थीं. आज महिलाएं पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ रही हैं. ऐसे में काफी बदलाव आया है.

यह सही है कि हम भारत की संस्कृति की साथ-साथ पाश्चात्य की संस्कृति भी अपना रहे हैं. लोग तय नहीं कर पा रहे हैं कि हमें किस राह पर चलना है. द्वंद्व के रास्ते पर चल रहे हैं. ऐसी स्थिति में व्यक्ति शॉर्टकट अपनाने के चक्कर में गलत दिशा पकड़ ले रहे हैं, जो उन्हें और समाज दोनों के लिए घातक हो जा रहा है. इससे निबटने के लिए हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने में कोई कमी न रखें. स्कूल व कॉलेज में उनकी उपस्थिति पर शिक्षक नजर रखें.

सामाजिक-आर्थिक पहलू क्या होने चाहिए ?

समाज में आ रही गिरावट से समाज की दिशा ही बदल गयी है. वहीं इससे व्यक्ति व परिवार को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. बाजारवाद हम पर हावी हो रहा है. अपने को अलग दिखाने की होड़ में भले ही हम संस्कार तोड़ रहे हैं, लेकिन बाजार व्यक्ति को अलग दिखाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहा है. महिलाओं व युवाओं को बाजार उपयोग कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है. समाज को सही दिशा में लाने के लिए हमें खासकर युवाओं को जागरूक करना होगा.

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