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बच्चों के सामने ‘तेरा-मेरा’ की बात नहीं करनी चाहिए

सबने अपनी पसंद के कपड़े खरीदे. बच्चों ने खिलौने भी लिये. घर आ कर सबने अपने-अपने कपड़े शारदा देवी को दिखाये. कपड़े देख कर उन्होंने झरना से कहा कि तुमने तो बहुत सारे नये कपड़े ले लिये. अब तुम अपने पुराने कपड़ों में से वो कपड़े निकाल दो जो छोटे हो गये हैं या जो […]

सबने अपनी पसंद के कपड़े खरीदे. बच्चों ने खिलौने भी लिये. घर आ कर सबने अपने-अपने कपड़े शारदा देवी को दिखाये. कपड़े देख कर उन्होंने झरना से कहा कि तुमने तो बहुत सारे नये कपड़े ले लिये.

अब तुम अपने पुराने कपड़ों में से वो कपड़े निकाल दो जो छोटे हो गये हैं या जो तुम पहनना नहीं चाहतीं. क्यों दादी? झरना ने प्रश्न किया. क्योंकि तुम्हारे जो कपड़े छोटे हो गये हैं उन्हें तुम अब पहन नहीं पाओगी. अब वो तुम्हारे काम तो नहीं आयेंगे. तुमसे छोटी तुम्हारी कोई बहन भी नहीं है, जो उन्हें पहन सके और शांतनु, फलित व पराग, तो तुम्हारे कपड़े पहनेंगे नहीं, क्योंकि लड़कियां, तो लड़कों के कपड़ों में अच्छी लगती हैं, लेकिन लड़के -लड़कियों के कपड़े नहीं पहन सकते. इसलिए वो कपड़े किसी जरूरतमंद को दे दिये जायेंगे जिससे उनके काम आ सकें. हां, वंशिका जरूर झरना के कपड़े पहन सकती है. झरना ने कहा मुङो किसी के कपड़े नहीं पहनने.

नीला भी वहीं खड़ी थी उसने कहा वंशिका को उसके कपड़े पहनने दीजिए. झरना के लिए दूसरे आ जायेंगे. जैसे ही नीला ने बात खत्म की शारदा देवी ने कहा कि तुम इस तरह की बात करके बच्चों के बीच फर्क मत पैदा करो नीला बहू. मेरा-तुम्हारा की दीवार मत बनाओ.

उनमें प्यार बढ़ाओ. सब भाई-बहन हैं. एक-दूसरे को चीजें बांटना सिखाओ. अगर झरना वंशिका के कपड़े पहन लेगी, तो क्या हो जायेगा? वो उसकी बहन ही तो है. वस्तुएं साझा करने से प्यार बढ़ता है. अपनेपन का एहसास होता. तुम्हें यही लग रहा है न कि वंशिका के उतरे कपड़े झरना न पहने, बल्किउसके लिए लाये गये नये कपड़े ही पहने. तुम्हें और झरना दोनों को ये समझना होगा कि घर में रहनेवाला प्रत्येक सदस्य घर का हिस्सा है और किसी एक हिस्से के अलग रहने से घर नहीं बनता. सब ‘भाग’ मिलेंगे, तभी घर बनेगा. अगर कोई भी हिस्सा अलग हुआ, तो घर पूरा ही नहीं होगा.

इसलिए अगर झरना वंशिका के कपड़े पहन लेगी, तो तुम्हारी या झरना की इज्जत नहीं घटेगी, बल्कि बच्चों में ज्यादा अपनापन बढ़ेगा और जो कपड़े वो नहीं पहन रहे हैं या पहनना नहीं चाहते उन्हें जरूरतमंदों को देने से उनमें सहयोग व मदद करने की भावना आयेगी. अभी से ये बातें इनके दिमाग में घर करेंगी, तभी ये एक अच्छे इनसान बन पायेंगे. बच्चों में सहयोग की, मदद की, चीजों को साझा करने व प्यार बांटने की भावना होनी चाहिए और इन बातों की शुरुआत घर से ही होती है.

घर बच्चे का पहला स्कूल व मां पहली अध्यापिका होती है. मां को इस स्कूल का प्राचार्य व अन्य सदस्यों को अध्यापक-अध्यापिकाएं मानना चाहिए, जो विभिन्न विषयों का ज्ञान कराते हैं. बच्चे हमारा ही अनुसरण करते हैं. हमसे ही सीखते हैं. उनको स्वस्थ माहौल देना हमारा ही कर्तव्य है. बच्चों के सामने कभी मेरा-तेरा की बात भी नहीं करनी चाहिए. उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि हम किसी भी वस्तु का घर में मिल कर उपयोग करते हैं. घर की सभी वस्तुओं पर सबका समान अधिकार है, जिसको जरूरत होगी, उसे उसका प्रयोग करने की छूट होनी चाहिए.

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