हिंदी सिनेमा के सफल पार्श्वगायकों में शुमार मोहम्मद रफ़ी को गुज़रे 35 साल हो गए.
उनकी आवाज़ और अंदाज़ को अपनाकर कई गायकों ने अपना करियर बना लिया.
मोहम्मद रफ़ी ने भले ही जीते जी किसी को अपनी गायकी का वारिस घोषित न किया हो, लेकिन शब्बीर कुमार, मोहम्मद अजीज़ और अनवर जैसे कई गायक थे, जो रफ़ी जैसा ही गाते थे.
आज रफ़ी को गए 35 साल हो गए हैं, लेकिन उनकी आवाज़ की याद वैसी ही है. मोहम्मद रफ़ी की जयंती पर उनके कुछ ऐसे ही ‘एकलव्यों’ से बीबीसी ने की ख़ास बातचीत.
कॉपी रफ़ी
मस्ती भरा गाना हो या फिर दुख भरे नग़में, भजन हो या कव्वाली, हर अंदाज़ में रफ़ी की आवाज़ ढल जाया करती थी.
मोहम्मद रफ़ी के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि जब एक स्टेज शो के दौरान बिजली जाने की वजह से उस ज़माने के जाने माने गायक केएल सहगल ने गाना गाने से मना कर दिया, तो वहां मौजूद 13 साल के रफ़ी ने स्टेज संभाला और बुलंद आवाज़ में गाना शुरू कर दिया.
गायक मोहम्मद अजीज़ रफ़ी साहब की इस आवाज़ को क़ुदरत का वरदान मानते हैं कि वो किसी भी लेवल पर गा सकते थे, लेकिन उनके सुर बिगड़ते नहीं थे.
रफ़ी की नकल करने वालों के बारे में वो कहते हैं, “उनकी नकल करने वाले 90 प्रतिशत ‘फ़नी’ होते हैं. हालांकि मैंने भी रफ़ी के अंदाज़ को अपनाया, लेकिन उनकी आवाज़ की नकल करने की कोशिश कभी नहीं की."
नवीन निश्चल को नहीं पहचाना
गायिका उषा टिमोथी ने रफ़ी के साथ कई बार स्टेज साझा किया है. उनके करियर का पहला गाना, फ़िल्म ‘हिमालय की गोद’ के लिए, रफ़ी के साथ ही था.
वे कहती हैं, “रफ़ी साहब अपनी आवाज़ में हीरो की अदा को उतार लेते थे. लेकिन 1975 के बाद व्यस्तता की वज़ह से वे फ़िल्में नहीं देखते थे और इसलिए नए अभिनेताओं को नहीं पहचानते थे.”
ऐसा ही एक क़िस्सा बताते हुए उषा कहती हैं, “एक बार मैं और ‘साहब’ (रफ़ी को साहब बुलाते हैं) एयरपोर्ट पर इंतज़ार कर रहे थे, तभी सामने से एक ख़ूबसूरत युवक को आते देख, साहब ने कहा, इसे तो हीरो होना चाहिए."
दरअसल वे जिस युवक की बात कर थे उस युवक का नाम था नवीन निश्चल. मैंने उन्हें बताया कि साहब ये हीरो ही हैं, जिनके लिए आप गाना गा चुके हैं.
उषा मानती हैं कि रफ़ी के जाने के बाद भी कई लोगों का घर आज उनके नाम और उनकी आवाज़ की नकल से ही चलता है.
’32 रुपए लेकर मिलने भागा’
80 के दशक में उभरे गायक शब्बीर ने अमिताभ बच्चन से लेकर सनी देओल तक सबको अपनी आवाज़ दी है.
मूल रूप से गुजरात के वड़ोदरा में रहने वाले शब्बीर ख़ुद को ‘रफ़ी घराने’ का गायक मानते हैं.
रफ़ी साहब से मुलाक़ात का एक दिलचस्प वाकया बताते हुए शब्बीर कहते हैं, “मैं अपनी बहन को छोड़ने के लिए स्टेशन आया था, तभी पता चला कि रफ़ी साहब अहमदाबाद में शो के लिए आए हैं. महज़ दो घंटे की दूरी पर साहब थे और मेरी जेब में केवल 32 रुपए ही थे."
वो आगे कहते हैं, "हिसाब करने के बाद यह नतीजा निकला कि इतने में तो बिना कुछ खाए-पिए ही साहब को देखा जा सकता है. मैंने अपने घर पर कहलवा दिया कि मेरी चिंता न करें, मैं अहमदाबाद जा रहा हूं.”
शब्बीर ने बताया,“कुछ दूर पैदल, फिर बस और ट्रेन का सफ़र तय कर मैं तय स्थान पर पहुंच गया. सब से कम क़ीमत वाली दस रुपए की टिकट मैने ले ली और पीछे बैठ गया. तभी पुलिसवालों ने मुझे वहां से उठाया और स्टेज़ के पास ले गए. वहां जाकर पता चला कि कुछ लोगों कि शर्त लगी थी कि मैं इस शो में आऊंगा या नहीं. कुछ देर बाद साहब ने मुझे बुलाया और कहा कि लोग बड़ी तारीफ़ कर रहे हैं तुम्हारी.”
शब्बीर कहते हैं कि रफ़ी बुलंद आवाज़ के मालिक थे, लेकिन बहुत आहिस्ता बोला करते थे. उनकी जैसी शख्सियत अब मिलना मुश्किल है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)