बननी थी कांग्रेस सरकार,सत्ता में पहुंच गयी मुसलिम इंडिपेंडेंट पार्टी
बिहार की राजनीति और सामाजिक समीकरण हर दस साल में बदल जाते हैं. आजादी के पहले देश में पहला चुनाव 1937 में हुआ था. कांग्रेस के इनकार के बाद मुसलिम इंडिपेंडेंट पार्टी ने सरकार बना ली. 1937 से अब तक ऐसे दो अपवाद हैं जब एक ही तरह के सामाजिक-राजनीतिक समीकरण का दौर तकरीबन 15-15 […]
बिहार की राजनीति और सामाजिक समीकरण हर दस साल में बदल जाते हैं. आजादी के पहले देश में पहला चुनाव 1937 में हुआ था. कांग्रेस के इनकार के बाद मुसलिम इंडिपेंडेंट पार्टी ने सरकार बना ली. 1937 से अब तक ऐसे दो अपवाद हैं जब एक ही तरह के सामाजिक-राजनीतिक समीकरण का दौर तकरीबन 15-15 सालों का रहा. पहला दौर था 1952 से 1967 का और दूसरा 1990 से 2005 तक.
उसके बाद राजनीति ने नये समीकरण गढ़े. सुशासन की पटकथा के साथ नयी राजनीति रंगमंच पर अवतरित हुई. 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद इस राजनीति का सामाजिक समीकरण 2015 में फिर बदल गया. आज से पढ़िए राजनीतिक-सामाजिक समीकरण के बदलाव की यात्रा.
अजय कुमार
ब्रिटिश पार्लियामेंट से गवर्नमेंट एक्ट 1935 में पास होने के साथ ही गुलाम भारत में चुनाव का रास्ता खुल गया. राजनीति और सामाजिक स्तर पर हलचल थी. लोग उत्सुक थे. राजनैतिक दलों की ओर से द्विशासन प्रणाली को खत्म कर उसकी जगह प्रांतों में अधिकार संपन्न सरकार बनाने की मांग जोर पकड़ चुकी थी. 1937 में बिहार के साथ अलग-अलग प्रांतों में असेंबली के चुनाव हुए.
बिहार के साथ सभी प्रांतों में कांग्रेस की भारी जीत हुई. पर इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने गवर्नरों को कई विशेषाधिकार दे दिये. इस विशेषाधिकार के प्रति कांग्रेस का नजरिया सख्त था. वह गवर्नरों को इस हद तक अधिकार संपन्न बनाये जाने के विरोध में थी.
चुनाव के बाद कांग्रेस को सरकार बनानी थी. लेकिन गवर्नरों के मामले पर विरोध स्वरूप उसने सरकार बनाने से मना कर दिया.
बिहार में उस दौरान राजनैतिक रस्साकशी तेज हो गयी थी. अप्रत्याशित रूप से सरकार बनाने को लेकर मुसलिम इंडिपेंडेंट पार्टी सामने आयी. तत्कालीन गवर्नर ने कांग्रेस के बाद दूसरी बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का न्योता दिया और मुसलिम इंडिपेंडेंट पार्टी ने सरकार बनाने का न्योता मंजूर कर लिया. इस तरह पहली अप्रैल 1937 को राज्य में मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में सरकार बन गयी.
यह गुलाम देश के प्रांतों में बनने वाली पहली सरकार थी. 1935 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में जो एक्ट पास हुआ था, उसमें प्रांतीय असेंबली के प्रमुख के पदनाम को प्रधानमंत्री या प्रिमियर नाम दिया गया था. लेकिन, वास्तव में राज्यों के मुख्यमंत्री की तरह का ही पद था. इस लिहाज से मोहम्मद युनूस बिहार के पहले प्रधानमंत्री हुए.
उनकी मंत्रिमंपरिषद में तीन सदस्य शामिल थे. उनमें बाबू गुरु सहाय लाल, नवाब अब्दुल वहाब खां और कुमार अजित प्रसाद सिंह देव थे. मुख्यमंत्री युनूस के जिम्मे कानून-व्यवस्था, ज्यूडिशियल व जेल, शिक्षा और रजिस्ट्रेशन विभाग थे. जबकि गुरु सहाय लाल को ग्रामीण विकास, कुमार अजित प्रसाद सिंह को स्थानीय स्वशासी सरकार तथा अब्दुल बहाब खां को राजस्व विभाग का मंत्री बनाया गया था. उधर, कांग्रेस के रुख को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने गवर्नर को दिये गये विशेष अधिकार को वापस ले लिया.
इसके बाद कांग्रेस के सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया. इन हालातों को देखते हुए मोहम्मद युनूस ने इस्तीफा दे दिया. वह 19 जुलाई 1937 तक इस पद पर रहे. इसके बाद ही राज्य में श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी.
किसी की भी सरकार चाहती थी अंगरेजी हुकूमत
कांग्रेस के बड़े नेता डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि 1937 की पहली अप्रैल से नये एक्ट के अनुसार मंत्रिमंडल बन जाने चाहिए थे. प्रांतों के गवर्नरों ने अपने-अपने सूबे के कांग्रेस नेताओं को बुलाया और सरकार बनाने का न्योता दिया. पर उन नेताओं ने अपनी ओर से वही बात पेश की जिसका आदेश अखिल भारतीय कमेटी से उनको मिला था.
पर ब्रिटिश गवर्नमेंट ने इस एक्ट को, जिसके बनाने में उन्होंने कई साल लगाये थे, और जिसके संबंध में उन्होंने इतना प्रचार किया था, उस एक्ट को वे जन्म के पहले ही मरने देना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने निश्चय कर लिया कि जिस तरह हो, जिस किसी का हो, चंद दिनों के लिए ही सही, असेंबली के बहुमत के विरुद्ध ही क्यों न हो, मंत्रिमंडल बन जाना चाहिए. बिहार सूबे में गवर्नर ने यह काम मिस्टर मोहम्मद युनूस को सुपूर्द किया.
इसी तरह और सूबों में भी मंत्रिमंडल बन गया. कम से कम यह दिखलाने के लिए हो गया कि नये एक्ट के अनार शासन होने लगा. पर यह बात गवर्नर लोग जानते थे और मंत्री लोग भी कि यह चंदरोजा तमाशा है.
152 सीटों के लिए हुआ था चुनाव
1937 में राज्य में 152 सीटों के लिए चुनाव हुए थे. इसमें 40 सीट मुसलमानों के लिए सुरक्षित थीं. मुसलिम इंडीपेंडेंट पार्टी को 20 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस को सिर्फ पांच सीटों पर ही सफलता मिली थी, लेकिन कांग्रेस को कुल 92 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
1937 में ब्रिटिश इंडिया में आठ प्रांतों में चुनाव कराया गया था. मद्रास, सेंट्रल प्रोविंस, बिहार, ओडिशा, यूनाइटेड प्रोविंस, बाम्बे प्रेसिडेंसी, आसाम, एनडब्ल्यू, बंगाल, पंजाब और सिंध में चुनाव हुए थे.
1937 से 47 का दौर
यह भारी उथल-पुथल भरा दौर था. इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने भारत विभाजन की व्यूह रचना तैयार कर ली थी. इसी बीच, 1946 में चुनाव हुए. उसके अगले साल देश को आजादी मिली.आजाद भारत में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ. बिहार में कांग्रेस के अलावा 16 पार्टियां चुनाव मैदान में थीं. 54 ऐसी सीटें थी जहां से दो प्रतिनिधियों का चयन होना था. कुल सीटें 276 थीं और कुल उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे 1594. कांग्रेस को 239 सीटें मिलीं. आजादी के बाद श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में पहली सरकार बनी. अगले डेढ़ दशक तक कांग्रेस बिहार की राजनीति के केंद्र में रही. श्रीकृष्ण सिंह ने कई बड़े काम किये.
मोहम्मद युनूस से अच्छा सलूक न हुआ : रजी अहमद
गांधीवादी रजी अहमद बताते हैं कि सरकार बना लेने की वजह से कांग्रेस की हुकूमत ने मोहम्मद युनूस के साथ अच्छा सलूक नहीं किया. उन पर कई मुकदमे हुए. इसका बड़ा ही खराब संदेश गया.
1937 में जहां मुसलिम लीग को बिहार में एक भी सीट नहीं मिली थी, 1946 में उसे 40 में से 36 सीटों पर जीत मिल गयी. इसकी वजह राजनीति में ही तलाशने की जरूरत है. आखिर क्या वजह रही कि मुसलिम लीग को इतना समर्थन मिला. वह भी तब जब मुसलमानों की रहनुमाई करने वाली सियासी पार्टियों ने मुसलिम लीग के साथ जाना ठीक नहीं समझा.