कानून व्यवस्था बेहतर करना चुनौती
गया के परैया के रहने वाले हैं परमानंद शर्मा. 1994 में एक अटैची लेकर हैदराबाद गये और अपना कारोबार शुरू किया. करीब दो दशक में उन्होंने अपना ठीक-ठाक कारोबार जमा लिया. उनकी पढ़ाई गया कॉलेज से हुई. जूलॉजी में ऑनर्स शर्मा से जब बिहार चुनाव के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, विकास […]
गया के परैया के रहने वाले हैं परमानंद शर्मा. 1994 में एक अटैची लेकर हैदराबाद गये और अपना कारोबार शुरू किया. करीब दो दशक में उन्होंने अपना ठीक-ठाक कारोबार जमा लिया.
उनकी पढ़ाई गया कॉलेज से हुई. जूलॉजी में ऑनर्स शर्मा से जब बिहार चुनाव के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, विकास होगा तो तमाम बुराइयां खत्म हो जायेंगी. बेशक बीते कुछ सालों में बिहार में बदलाव हुए हैं. पर इसकी रफ्तार तेज करने की जरूरत है. अगली सरकार चाहे जिसकी भी बने, हम चाहते हैं कि विकास के मामले को वह सर्वोच्च प्राथमिकता दे. दूसरे राज्यों की तरह बिहार भी प्रगति का प्रतीक बने, हम यह चाहते हैं.
शर्मा बताते हैं कि करीब दो दशक पहले वह महज एक अटैची लेकर यहां आये थे और आज अपना अच्छा काम कर रहे हैं. यह कैसे संभव हुआ? इसे समझने की जरूरत है. अगर हम वहीं रह जाते तो मेरा, मेरे बच्चों को कैसा भविष्य मिलता? उनका कहना था कि वहां हम छोटे-मोटे ठेकेदार होते या नेताओं के आगे-पीछे घूम रहे होते. लेकिन हमने देखा कि यहां का माहौल कुछ अलग है. लोग मदद करने वाले हैं. हिंदीभाषा-भाषी लोगों के प्रति किसी जमाने में दुराग्रह होगा. पर अब तो नहीं है. यहां की तरह हमारे बिहार में माहौल क्यों नहीं बन सकता? ऐसा माहौल बनाने का काम राजनीति के जरिये ही हो सकता है. सभी पार्टी के राजनीतिज्ञों को विकास के प्रति सकारात्मक सोच रखने की जरूरत है तभी राज्य का भला होगा.
शर्मा मानते हैं कि तमाम बदलावों के बावजूद अब भी जातिवाद बना हुआ है. यह विकास में बड़ा अवरोध है. मुङो लगता है कि विकास का चौतरफा माहौल बनेगा, तो जातिवाद भी खत्म होगा. मुङो हैरानी होती है, यह सुनकर कर अपने यहां अब भी जाति के आधार पर विभाजन कम नहीं हुआ है. उनका कहना था कि जाति तो पूरे देश में है, पर उसका असर बिहार की तरह नहीं दिखता. यह बड़ी बात है. इसी तरह भ्रष्टाचार का मामला है. यह हमारे यहां भी है. लेकिन यहां इसका रूप कुछ दूसरा है. बिहार में कोई काम कराने जाओ, तो वहां काम करने वाला आपको निचोड़ लेने के जुगाड़ में रहता है. भ्रष्टाचार की बीमारी पूरे देश में है. लेकिन बिहार में इसका स्वरूप कुछ ‘दूसरा’ ही है और इसे ही बदलने की जरूरत है.
राजनीतिक दलों को इस बात की गारंटी करनी होगी कि उनकी सरकार कानून-व्यवस्था की हालत और बेहतर करेगी. मेरे मन में भी इच्छा होती है, कि मैं अपने घर लौट जांऊ. परआप बतायें कि वहां जाकर मैं करूंगा क्या? मेरे जैसे दूसरे लोगों के मन में ऐसे ही खयाल आते हैं और वे लौट नहीं पाते. कानून-व्यवस्था के प्रति लोगों में भरोसा जगाना होगा. मैं मानता हूं कि तुलनात्मक रूप से इस मोरचे पर मौजूदा सरकार ने काफी मेहनत की है. लेकिन आदर्श माहौल का बनना अभी बाकी है. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाली नयी सरकार विकास, कानून-व्यवस्था और शिक्षा के मोरचे पर बढ़िया काम करेगी.