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माहौल बने तो तरक्की खुद पहुंचेगी

मुंगेर के विनय यादव को हमेशा यह मलाल रहता है कि उन्हें अपनी रोजी कमाने के लिए अपने घर से बहुत दूर आना पड़ा है. विनय कहते हैं कि अगर हमें अपने राज्य में मौका मिला होता तो निश्चित ही आज हम जहां हैं वहां से बेहतर जगह पर होते. यह कहते हुए वो थोड़े […]

मुंगेर के विनय यादव को हमेशा यह मलाल रहता है कि उन्हें अपनी रोजी कमाने के लिए अपने घर से बहुत दूर आना पड़ा है. विनय कहते हैं कि अगर हमें अपने राज्य में मौका मिला होता तो निश्चित ही आज हम जहां हैं वहां से बेहतर जगह पर होते. यह कहते हुए वो थोड़े नास्टल्जिक भी हो जाते हैं.

बातचीत का क्रम आगे बढ़ता है तो बताते हैं कि मेरे पिताजी फौज में थे, इसलिए मै बहुत जगह घूमा हूं. लेकिन 1986 से बेंगलुरु में ही हूं. बिहार की इमेज के बारे में सवाल पूछने पर वो बताते हैं – बिहार के लोग लगभग हर राज्य में सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों जगह अच्छी पोजिशन पर हैं. फिर भी ‘बिहारी’ एक गाली की तरह इस्तेमाल होता है, पता नहीं क्यों. लगता है, बहुत पहले से बिहार की इमेज को खराब कर दिया गया है. दिल्ली और महाराष्ट्र में ऐसा बहुत ज्यादा है. बेंगलुरु में ऐसा एकदम नहीं है. मैने बेंगलुरु को अपनी आंखों के सामने बनते-बढ़ते देखा है. इसमें बिहारियों का उतना ही योगदान है जितना यहां कि स्थानीय निवासियों का. यहां के स्थानीय लोग भी इस बात से सहमत है. इसलिए, कभी भी बिहारियों को यहां दिक्कत नहीं हुई.

यह पूछने पर कि अगर बिहार में मौका मिला होता तो. सवाल को बीच में काटकर विनय कहते है- निश्चय ही अगर मैं अपने राज्य में अपनों के बीच होता तो ज्यादा तरक्की करता. फिर आगे कहते हैं- देखिए, वहां माहौल नहीं है. सरकार को चाहिए कि वहां राज्य में काम का माहौल तैयार करे. संभावनाएं तो लोग खुद तैयार कर लेंगे. आप देखिए कि सुपर-30 से हर साल कम से कम 20-25 बच्चे आइआइटी के लिए चयनित होते हैं. लेकिन, उनमेंकितने बच्चे आइआइटी से निकले के बाद बिहार में है, शायद एक भी नहीं.
इसका साफ अर्थ है कि उनके लिए राज्य में माहौल नहीं है. वैसे संस्थान नहीं हैं जहां वह काम कर सकें या वैसा महौल नहीं हैं जिससे वह अपने राज्य में ही एक बढ़िया संस्थान खोलने की सोच सकें. इसलिए राज्य में माहौल के निर्माण में सभी दलों को पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सोचना चाहिए.
माहौल तभी बनेगा जब राजनीति धर्म और जाति से ऊपर उठेगी. बेंगलुरु पहले ऐसा नहीं था. 1991 में नयी आíथक नीति के बाद यहां एक माहौल बना जिससे बड़ी-बड़ी आइटी कंपनियां यहां पहुंचीं. 1991 में देश के दो ही शहरों का सबसे ज्यादा कायाकल्प हुआ-एक बेंगलुरु और दूसरा नोएडा. इसके पीछे इन दोनों शहरों में तरक्की लायक माहौल का होना है. बिहार को भी इसी माहौल की दरकार है, तरक्की खुद-ब-खुद वहां पहुंच जाएगी. इसके लिए सरकार को जाति और धर्म से परे होकर सोचना और काम करना होगा. जनता को भी इन सब से ऊपर उठने की जरूरत है. अगर जनता जागरुक हो जाएगी, तब राजनेता अपने आप संभल जाएंगे. वह जाति और धर्म की जगह मुद्दों की बात करने लगेंगे. मैं भले बेंगलुरु में रहता हूं, अपनी माटी से लगाव कम नहीं हुआ है. बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव की हर खबर को मैं ध्यान से पढ़ता हूं. उम्मीद करता हूं कि इसबार जनता और नेता दोनों आपने को बदलेंगे. (बातचीत पर आधारित)

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