14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

11 वर्ष में 13 सीएम, चार राष्ट्रपति शासन

इस दशक में सामाजिक-राजनैतिक हलचल काफी तेज हो चली थी. कांग्रेस का सत्ता संघर्ष नये मोड़ ले रहा था, तो उसके बाहर एक बार फिर गैर कांग्रेसवाद की राजनीति को संगठित होने का मौका मिला. छात्र आंदोलन का बवंडर व्यवस्था परिवर्तन की ओर बढ़ चला था. उसे दबाने के लिए आपातकाल लगाया गया. मगर उसके […]

इस दशक में सामाजिक-राजनैतिक हलचल काफी तेज हो चली थी. कांग्रेस का सत्ता संघर्ष नये मोड़ ले रहा था, तो उसके बाहर एक बार फिर गैर कांग्रेसवाद की राजनीति को संगठित होने का मौका मिला. छात्र आंदोलन का बवंडर व्यवस्था परिवर्तन की ओर बढ़ चला था. उसे दबाने के लिए आपातकाल लगाया गया. मगर उसके खिलाफ लोगों में विक्षोभ काफी तीखा था. वे मौके की तलाश में थे. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में केंद्र सहित कई राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया.
बिहार इसका अपवाद नहीं था. इसी काल खंड में नक्सलवाद बंगाल से होते हुए मुजफ्फरपुर और भोजपुर के सहार अंचल तक पहुंच गया था. गांव अशांत होने लगे थे. गरीबों की लड़ाई इज्जत और श्रम की प्रतिष्ठा के मुद्दे पर मुखर होने लगी थी. बहरहाल, बिहार आंदोलन के गर्भ से निकली सरकार भी जनता के सपनों को पूरा करने में नाकाम रही और लोगों में भारी निराशा थी.
बिहार की राजनीति का यह दशक भारी उथल-पुथल भरा रहा. एक ओर सत्ता संघर्ष की आपाधापी थी तो दूसरी ओर सामाजिक स्तर पर लोग अपनी परेशानियों से निजात पाने के लिए रास्ता तलाश रहे थे.
समाजवादी धारा की राजनीति के कई रूप इसी दौर में दिखे तो नक्सलवाद का वज्रनाद भी गूंजा. छात्र आंदोलन ने राजनीति और समाज को गहरे तक प्रभावित किया तो यही वह दौर था जब देश में आपातकाल थोपा गया. ऐसा लगता है कि समाज और राजनीति, दोनों ही करवट ले रहे थे. तब की राजनीति कैसे बदल रही थी, इसकी बानगी सरकारों के धड़ाधड़ बनने-बिगड़ने में देखी जा सकती है. 68 से 79 तक राज्य में 13 मुख्यमंत्री बने और चार बार राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा. 1967 में कांग्रेस को हटाकर सत्ता में पहुंची संविद सरकार के अंतरविरोध कम न थे.
महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार दस महीने में ही सत्ता से बाहर हो गयी. दरअसल, बीपी मंडल तब लोकसभा के सदस्य थे और वह बिहार में मंत्री बनने की इच्छा रखते थे. डॉ लोहिया चाहते थे कि मंडल संसद में ही बने रहें. इसी बीच संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में फूट हो गयी.
बीपी मंडल ने अलग हुए विधायकों को लेकर शोषित दल बना लिया. संसोपा के अलावा दूसरी पार्टियों से आये 38 विधायकों के साथ बीपी मंडल की सरकार बनी. मंडल सरकार को कांग्रेस ने समर्थन दिया था. इसके पहले मंडल को विधान परिषद का सदस्य बनने तक सतीश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया. वह इस पद पर तीन दिनों के लिए रहे.
सत्तर का दशक यानी भारी उथल-पुथल का दशक
1969 के अंत में मध्यावधि चुनाव हुआ. उस चुनाव में गैर कांग्रेसियों ने सरकार बनाने की कोशिश की. पर वे कामयाब नहीं हुए. नेतृत्व के सवाल पर अगड़ा-पिछड़ा संघर्ष काफी तीखे अंदाज में उभर गया था. अंतत 16 फरवरी 1970 को दारोगा प्रसाद राय की सरकार बनी.
कांग्रेस की उस सरकार को भाकपा ने समर्थन दिया था. यह उसकी राजनैतिक लाइन में आया महत्वपूर्ण बदलाव था. उसी साल संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया. विधानसभा में सरकार हार गयी और कपरूरी ठाकुर के नेतृत्व में सरकार बन गयी.
दूसरी आजादी की लड़ाई
1972 के शुरुआत में ही करीब 70 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में पुनर्वापसी हुई. वह चुनाव बांग्लादेश युद्ध की पृष्ठभूमि में लड़ा गया था. पहले केदार पांडेय फिर अब्दुल गफूर मुख्यमंत्री बनाये गये. तब तक बिहार में छात्र आंदोलन की धमक सुनायी पड़ने लगी थी.
सरकार इस आंदोलन को कुचलना चाहती थी. लेकिन छात्रों का आंदोलन लगातार पसर रहा था. जयप्रकाश नारायण इस आंदोलन को नेतृत्व देने पर राजी हो गये थे. छात्रों का यह आंदोलन धीरे-धीरे व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में बदल गया था.
25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया गया. विपक्ष ने इस आंदोलन को दूसरी आजादी का नाम दिया. इसी बीच अब्दुल गफूर की जगह डॉ जगन्नाथ मिश्र को मुख्यमंत्री बनाया गया. 1977 में आम चुनाव हुआ और पूरे देश में कांग्रेस का सफाया गया.
बिहार में कपरूरी ठाकुर की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार बनी. अगले ही साल सरकार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू कर दिया. इसके विरोध में तीखा सामाजिक विभाजन हो गया. आरक्षण के विरोध में आंदोलन की शुरुआत हो गयी तो उसके समर्थन में भी.
कपरूरी सरकार ने ही राज्य की पंचायतों में चुनाव कराने का फैसला लिया था. उस चुनाव में भारी हिंसा हुई. जनता पार्टी के अंदर ही कपरूरी ठाकुर का विरोध चलता रहा. अप्रैल 1979 में उनकी सरकार गिर गयी और रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बने.
सम्पूर्ण क्रान्ति जयप्रकाश नारायण का नारा था जिसका आह्वान उन्होंने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेकने के लिए किया था. लोकनायक नें कहा था कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल हैं – राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणकि व आध्यात्मिक क्रांति. इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रांति होती है.
पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आहवान किया था. मैदान में उपस्थित लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेदभाव छोड़ने का संकल्प लिया था. उसी मैदान में हजारों लोगों ने अपने जनेऊ तोड़ दिये थे. नारा गूंजा था:
जात-पात तोड़ दो,
तिलक-दहेज छोड़ दो.
समाज के प्रवाह को
नयी दिशा में मोड़ दो.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें