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धर्म के नाम पर! : अध्यात्म के सौदागर, नये चेहरे, नये चोले, नये विवाद
श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं के दोहन की परिपाटी नयी नहीं है, पर पिछले कुछ वर्षो से ऐसे साधु-संतों की बाढ़-सी आ गयी है, जो धर्मगुरु होने का चोला ओढ़ कर आपराधिक कृत्यों और असामाजिक गतिविधियों में लिप्त रहे हैं. धार्मिक-आध्यात्मिक संतों की विद्वता और वीतराग की चिर-परंपरा का स्थान अब धन-संपत्ति के लोभ […]
श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं के दोहन की परिपाटी नयी नहीं है, पर पिछले कुछ वर्षो से ऐसे साधु-संतों की बाढ़-सी आ गयी है, जो धर्मगुरु होने का चोला ओढ़ कर आपराधिक कृत्यों और असामाजिक गतिविधियों में लिप्त रहे हैं.
धार्मिक-आध्यात्मिक संतों की विद्वता और वीतराग की चिर-परंपरा का स्थान अब धन-संपत्ति के लोभ और वासना की कुंठा की तुष्टि ने लिया है. इस चलन में नेताओं, अफसरों और लोकप्रिय कलाकारों की भूमिका निराश करनेवाली रही है. विवादों से घिरे कुछ धर्मगुरुओं पर एक नजर आज के समय में..
राधे मां : देवी दुर्गा का स्वघोषित अवतार
राधे मां कभी सुखविंदर कौर हुआ करती थीं, जिसका संबंध भारत-पाक सीमा पर बसे गांव दोरांग्ला से है.पंजाब के गुरदासपुर में स्थित इस गांव में जन्मी सुखविंदर के पिता पंजाब सरकार में अधिकारी थे. सुखविंदर, जिसे घर में सब प्यार से बब्बो कहते थे, 18 साल की उम्र में सरदार मोहन सिंह से शादी कर पंजाब के ही गांव मुकेरिया आ गयीं.
धार्मिक जीवन की शुरुआत
मुकेरिया आने के बाद सुखविंदर का धर्म के प्रति रुझान बढ़ा. शादी के बाद उनके पति कतर की राजधानी दोहा में नौकरी के लिए चले गये. इस दौरान सुखविंदर ने लोगों के कपड़े सिल कर गुजारा किया. वह शिव भक्त थी. इसी दौरान उनकी मुलाकात महंत परमहंस हुई.
परमहंस ने सुखविंदर को छह महीने तक दीक्षा दी और इसके साथ ही उन्हें नाम दिया राधे मां. 23 साल की उम्र में सुखविंदर राधे मां बन गयीं. राधे मां पर तंत्र-मंत्र करने के भी आरोप लगते हैं. कहा जाता है कि मुकेरिया में ही उन्होंने डकोर खालसा के बैरागी संत बीरमदास से तंत्र-मंत्र सीखा. दीक्षा के बाद जब राधे मां ने खुद को दुर्गा का अवतार बताना शुरू किया, तो उन्हें इलाके के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा.
मुंबई पहुंच कर हुई प्रसिद्ध
इसके बाद राधे मां ने मुंबई का रुख कर लिया. यहां उन्हें करोड़पति व्यवसायी गुप्ता परिवार मिला. इसने उन्हें दो मंजिला इमारत दे दी, जहां राधे मां का दरबार सजने लगा. इसके साथ ही उनके भक्तों की तादाद भी बढ़ती गयी. उनके भक्तों में आमजन से लेकर खासजन तक शामिल हो गये.
लाल रंग के जोड़े, सोने, चांदी, हीरे के अथाह गहनों और भारी मेकअप से सजी राधे मां ने खुद को दुर्गा का अवतार बताया और कथित तौर पर लोगों की मन्नतें पूरी करने लगीं. राधे मां के पास करोड़ों की संपत्ति होने के कयास लगाये जाते रहे हैं.
पिछले दिनों उनकी कुल संपत्ति एक हजार करोड़ से अधिक की आंकी गयी थी. राधे मां ग्लोबल मीडिया विज्ञापन के कारोबार से जुड़ी हैं. मुंबई में बोरीवली पश्चिम में रेलवे स्टेशन से 10 मिनट की दूरी पर स्थित ‘राधे देवी मां’ भवन है, जिसे संजीव गुप्ता ने बनवाया है. संजीव ग्लोबल मीडिया कंपनी के मालिक हैं. इसके ग्राउंड फ्लोर पर एक बड़ा सा हॉल है, जिसे ‘माता की चौकी’ कहा जाता है. राधे मां यहीं भक्तों को दर्शन देती हैं.
राधे मां दुल्हन की तरह सज-संवर कर आती हैं और पूरे समय तक झूमती रहती हैं. मंच के चारों ओर बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी झूमते रहते हैं. अपनी समस्या लेकर आनेवाले भक्तों को राधे मां लाल गुलाब का फूल दे कर समस्या के जल्द हल का आश्वासन देती हैं. यह भी बताया जाता है कि खुद को संतों में शुमार करेनवाली राधे मां के पति और बच्चे भी उनके साथ मुंबई में ही रहते हैं, लेकिन भक्तों की मानें तो राधे का मां का अपने पति और बच्चों के साथ गुरु- शिष्य जैसा संबंध है.
सोशल मीडिया में मौजूदगी
फेसबुक पर ‘परम श्रद्धेय श्री राधे मां’ को फॉलो करनेवालों की संख्या एक लाख से अधिक है. नाम से राधे मां का एक वेबसाइट भी है. इसमें उनकी आगामी चौकी और अन्य कार्यों जैसी जानकारियां होती हैं.
..और विवादों से नाता
राधे मां की बढ़ती प्रसिद्धि के साथ विवादों से भी नाता जुड़ता गया. 2012 में राधे मां को महामंडलेश्वर घोषित करने पर विवाद हुआ था. इन दिनों वह दहेज के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने और ईलता फैलाने के आरोप के कारण चर्चा में हैं.
मुंबई का मशहूर एम एम मिठाईवाला गुप्ता परिवार,जो कि राधे मां का भक्त है, की बहू निक्की गुप्ता ने राधे मां और अपने पति सहित परिवार के सात सदस्यों के खिलाफ दहेज के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने की रिपोर्ट दर्ज करायी है. इसके कुछ ही दिनों बाद मुंबई की एक वकील फाल्गुनी ब्रह्मभट्ट ने राधे मां के खिलाफ बोरीवली थाने में ईलता फैलाने की शिकायत दर्ज करायी है.
भक्तों की अपील
राधे मां विवाद के शुरू होने के बाद से चुप हैं. लेकिन फेसबुक पर ‘ममतामयी श्री राधे गुरु मां चैरिटेबल ट्रस्ट’ के मैनेजिंग ट्रस्टी संजीव गुप्ता ने एक पोस्ट किया है, जिसमें लिखा गया है कि राधे मां के खिलाफ इस प्रकार का दुष्प्रचार नहीं होना चाहिए. ऐसा करके उनके भक्तों की भावनाओं को आहत किया जा रहा है. अगर कोई आरोप है तो उसकी जांच करा लें.
सचिदानंद : बीयर बार मालिक से महामंडलेश्वर
इलाहाबाद में कुछ दिन पूर्व निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर बनाये जाने और फिर हटाये जाने से चर्चा में आये सच्चिदानंद गिरि का असली नाम सचिन दत्ता है. उनके पिता गाजियाबाद (यूपी) में बिजली विभाग में अधिकारी हुआ करते थे. सचिन दत्ता ने गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में 1995 में प्रॉपर्टी डीलर का काम शुरू किया. कुछ समय बाद उन्होंने शहर के सेक्टर-18 में बीयर बार भी चलाया और फिर बालाजी के नाम से एक बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी बनायी. यह कंपनी फ्लैट बना कर बेचने का कारोबार करती थी.
रिपोर्टो के अनुसार, मायावती के शासनकाल में सचिन दत्ता ने तब के कैबिनेट सचिव से निकटता का लाभ उठा कर नोएडा में अनेक प्रॉपर्टी अपनी कंपनी के नाम आवंटित करा लिया. वह कई कंपनियों से जुड़ा था. सचिन का ससुराल मुजफ्फरनगर में है और उनके ससुर सरिया बेचने का कारोबार करते हैं. सचिन दत्ता के संबंध शराब और प्रॉपर्टी के बड़े व्यापारी पोंटी चढ्ढा से भी रहे थे. खबरों के अनुसार उसे महंगी कारों, घड़ियों, मोबाइल का शौक है.
धार्मिक जीवन की शुरुआत
सचिन दत्ता ने एक साक्षात्कार में बताया है कि संयासी बनने से पहले वे बहुत शराब पीते थे, लेकिन स्वामी कैलाशानंद के सान्निध्य में आने के बाद पिछले दो सालों से अपनी आदतों में सुधार करना शुरू कर दिया था. बार चलाने के आरोपों पर उनकी सफाई है कि वे सिर्फ एक वर्ष के लिए बार के मालिक बने थे, लेकिन बार के भीतर की गतिविधियों को देख मन बेचैन हो गया और संन्यास लेने का निर्णय कर लिया.
सच्चिदानंद गिरि के फेसबुक पेज पर सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के कई नेताओं के साथ बातचीत, भोजन और आयोजनों में भाग लेते सचिन दत्ता की अनेक तस्वीरें थीं. पर, महामंडलेश्वर पद पर नियुक्ति को लेकर विवाद के सामने आने के बाद इस पेज को निष्क्रिय कर दिया गया है.
विवादों से पुराना नाता
सचिन दत्ता तो पिछले कुछ समय से ही आध्यात्मिकता से जुड़े हैं, पर विवादों से उनका नाता पुराना है. नोएडा में 13 अगस्त, 2014 को अज्ञात हमलावरों ने उनकी गाड़ी पर गोलियां चलायी थीं, जिसमें वे घायल हो गये थे. जयपुर के एक व्यवसायी से साझा कारोबार के दौरान भी सचिन का विवाद हुआ था. दत्ता पर यह भी आरोप है कि कारोबार में भारी कर्ज के कारण उन्होंने संन्यास का रास्ता अपनाया है, लेकिन सचिन किसी भी तरह का कर्ज होने से इनकार करते हैं. उन्होंने खुद बिल्डर होने की बात का भी खंडन किया है.
उनका कहना है कि यह व्यवसाय उनके पिता करते हैं. इलाहाबाद के बाघंबरी गद्दी में गुरु पूर्णिमा को सच्चिदानंद गिरि को महामंडलेश्वर की पदवी दिये जाने के अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव भी मौजूद थे और वहां हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश भी की गयी थी. आरोप यह भी है कि उन्होंने महामंडलेश्वर की पदवी पाने के लिए काफी धन खर्च किया है.
सचिन दत्ता उर्फ सचिदानंद गिरि की सफाई
पदवी वापस लिये जाने पर सच्चिदानंद गिरि का कहना है कि उन्होंने अपनी मर्जी से त्यागपत्र दिया है और अगर जांच के बाद अगर आरोप गलत साबित हुए तो उन्हें यह पद वापस मिलना चाहिए.
सुधीर कुमार : व्यापारी से गोल्डन बाबा
सावन और कांवड़ यात्रा शुरू होते ही गोल्डन बाबा की चर्चा तेज हो जाती है. इनका असली नाम सुधीर कुमार है. इनका जन्म 28 जुलाई 1962 को दिल्ली के गांधी नगर में साधारण से परिवार में हुआ. इनका रेडीमेट कपड़ों का कारोबार है और यह एक आम शख्स की तरह ही दिखते हैं.
धार्मिक जीवन की शुरुआत : शिव भक्त सुधीर कुमार पिछले 22 साल से हरिद्वार कांवड़ यात्रा में जाते हैं. यहीं से इनके धामिर्क जीवन की शुरुआत हुई. सोने की मोटी मोटी चेन और अंगूठियों पहन कर कांवड़ लेने जानेवाले सुधीर कुमार की तरफ लोग आकर्षित हुए और वे खबरों में आने लगे.
सोने के गहनों ने किया प्रसिद्ध
प्रयाग कुंभ में आठ किलो सोना पहन कर पहुंचने के बाद से इनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी. सोने के प्रति इनके प्रेम के बारे में इनकी वेबसाइट में लिखा गया है-‘सोना दुर्लभ धातु होने के कारण एक बहुमूल्य धातु भी है ठीक श्री गोल्डेन बाबा जी की भांति, जो अपने विचारों व हाव-भाव से एक दुर्लभ व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं.’
सोने से लदे गोल्डन बाबा जब कांवड़ लेने हरिद्वार के लिए निकलते हैं और लौटते हैं, तो दिल्ली के एक इलाके का ट्रैफिक थम जाता है. समर्थकों से घिरे गोल्डन बाबा को देखने बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आते हैं.
सोने की सुरक्षा के लिए प्राइवेट गार्ड
अधिकतर दस से पंद्रह किलो सोना पहने रहनेवाले गोल्डन बाबा ने अपनी और अपने सोने की सुरक्षा के लिए प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड हायर कर रखे हैं. इसके लिए वे साल में कम से कम दस लाख रुपये खर्च करते हैं.
इनकी कांवड़ यात्रा भी बेहद भव्य होती है. खबरों के मुताबिक इसमें साठ लाख रुपये तक खर्च आता है. दर्जन से अधिक सुरक्षाकर्मी और इससे भी अधिक भक्तों के साथ महंगी गाड़ियों का काफिला इनकी कांवड़ यात्रा में शामिल होता है. गोल्डन बाबा की मानें तो उन्होंने जो सोना पहन रखा है, उसमें अधिकतर उन्होंने खुद की मेहनत से कमाया है और कुछ भक्तों से दान में मिला है.
सोशल मीडिया में मौजूदगी
इनका ‘श्रीगोल्डेन बाबा जी’ नाम से फेसबुक पेज है और वेबसाइट भी, जिसमें बताया गया है कि श्री पंच-दस-नाम-जूना अखाड़ा वाराणसी की ओर से इन्हें श्री गोल्डन बाबा जी की पदवी दी गयी है. इनके जीवन और सोने के प्रति प्रेम के बारे में भी विस्तार से बताया गया है.
विवादों से भी नाता
वर्ष 2014 में हरिद्वार के हरकीपैड़ी में बिना अनुमति के जुलूस निकालने के कारण गोल्डन बाबा को पुलिस के नोटिस का सामना करना पड़ा. नोटिस में कहा गया है कि अगर उन्होंने मेले में जुलूस निकालने की अनुमति ली थी, तो अनुमति पत्र दिखाएं, नहीं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
सारथी बाबा का वीडियो
ओड़िशा के केंद्रपाड़ा शहर स्थित सारथी बाबा का आश्रम पिछले कुछ दिनों से हंगामे की जद में है. एक स्थानीय टीवी चैनल ने एक वीडियो प्रसारित किया है जिसमें सारथी बाबा को हैदराबाद के एक पॉश होटल की लॉबी में एक मेडिकल छात्र के साथ दिखाया गया है. आरोप है कि पिछले महीने बाबा ने तीन दिन इस लड़की के साथ होटल में बिताया था. वीडियो में बाबा जींस और टी-शर्ट पहने नजर आ रहे हैं.
संतोष रौला से सारथी बाबा बने इस संत के खिलाफ सरकार ने जांच की घोषणा कर दी है. बाबा ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज करते हुए खुद को ब्रह्मचारी बताया है. उनका कहना है कि वे यात्रा ओं के दौरान अक्सर आधुनिक परिधान पहनते हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
अभी थमे नहीं हैं इनके विवाद
आसाराम बापू
सर्वोच्च ब्रह्म चेतना के अस्तित्व का उपदेश देनेवाले विख्यात संत आसाराम बापू अवयस्क लड़की के बलात्कार के आरोप में राजस्थान के जोधपुर जेल में बंद हैं. इसका बेटा नारायण साईं गुजरात के सूरत जेल में है.
दिल्ली के निर्भया बलात्कार मामले में इस कथित संत ने बयान दिया था कि लड़की भी बराबर की दोषी है. देश के कई शहरों में फैले आसाराम के आश्रमों पर जबरन जमीन कब्जे के आरोप भी हैं. आसाराम गिरफ्तारी से पूर्व प्रमुख राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं के साथ मंच साझा कर चुका है और उसके शिष्यों में कई धनकुबेर भी शामिल हैं.
वर्ष 2008 में इस कथित संत और इसके बेटे के गुजरात आश्रम में दो लड़कों के शव मिलने के बाद पुलिस जांच का मामला बना था, लेकिन इस बारे में कुछ पता नहीं चल सका था. मौजूदा मामले के आधा दर्जन से अधिक गवाहों पर जानलेवा हमले हो चुके हैं. पिता-पुत्र के कारनामों की जांच कर रही एजेंसियों को इनके अरबों रुपये के बेनामी लेन-देन, हवाला और काले धन की जानकारियां मिली हैं.
बाबा गुरमीत राम रहीम
संत रामपाल महाराज
डेरा सच्चा सौदा संप्रदाय के तीसरे प्रमुख गुरमीत राम रहीम हरियाणा के सिरसा शहर में स्थित अपने मुख्य आश्रम से अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं. माना जाता है कि डेरे के चार-पांच करोड़ अनुयायी हैं. ग्लैमर और भव्यता के साथ जीनेवाले इस गुरु पर हत्या, बलात्कार, अपहरण और शिष्यों को बधिया करने के संगीन आरोप हैं. बलात्कार के आरोपों की जांच सीबीआइ द्वारा की जा रही है.
कई संगीन मामलों में अदालत राम रहीम को आरोपमुक्त भी कर चुकी है. अनेक लोगों का आरोप है कि धन और राजनीतिक रसूख के कारण यह संत जेल जाने या सजा पाने से बचा हुआ है. डेरा के अनुयायियों की बड़ी संख्या का वोट पाने के लिए प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के नेता राम रहीम की चौखट पर माथा झुकाते रहते हैं.
हरियाणा के सिंचाई विभाग में कनिष्ठ इंजीनियर रहे संत रामपाल हत्या, जमीन हथियाने और धमकी देने के आरोप में जेल में है. 2005 से इस संत के प्रवचनों और लेखों के विरुद्ध आर्य समाज आंदोलनरत है. संगठन का आरोप है कि संत रामपाल हिंदू धर्म के विरुद्ध अपमानजनक भ्रम का प्रचार कर रहे हैं.
इनके आश्रम पर 2006 में हुए हमले में एक व्यक्ति की मौत के बाद संत को गिरफ्तार किया गया था और आश्रम पर प्रशासन ने कब्जा कर लिया था. 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आश्रम की जमीन वापस कर दी गयी. आश्रम के जमीन बिक्री के एक विवाद में उसने 42 बार कोर्ट के सम्मन का उल्लंघन किया था. गत वर्ष रोहतक कोर्ट में सुनवाई पर हाजिर नहीं होने पर संत के गिरफ्तारी का आदेश दिया गया था.
(संतों की जानकारियां मीडिया में आयी खबरों पर आधारित)
जिन्हें नाज है हिंद पर, वो कहां हैं?
कुमार प्रशांत
वरिष्ठ पत्रकार
विश्वास से आदमी जीता है; आत्मविश्वास से जीतता है और विश्वास खोकर आदमी अंधविश्वास की अंधी गली में भटकता है. मानव-सभ्यता का पूरा इतिहास बस इतने में सिमट आता है. इसलिए जब टीवी के परदे पर राधे मां के निजी जीवन का रहस्योद्घाटन किया जा रहा है, उनकी आधुनिक छवियां चटकारे के साथ देखी-दिखायी जा रही हैं, तब एक जरूरी सवाल गुम होता जा रहा है कि आखिर ये जितने अवतार, बाबा, देवियां, माताएं, संत, पंडे-पुजारी, फादर, ईशु संदेश के वाहक, पंच-प्यारे आदि हो गये और होते जाते हैं, उनकी जन्मस्थली कहां है?
आखिर क्यों ऐसा होता है कि हजारों औरत-मर्द चमत्कार का दावा करनेवाले किसी औरत या मर्द के पीछे इस तरह दौड़ पड़ते हैं कि जैसे सारी रोशनी भी और सारा रास्ता भी वहीं तक पहुंचाता है और वहीं से आगे भी जाता है?
तब आतंकी लहरों में डूबता-उतराता पंजाब सबकी चिंता का केंद्र था.
जिन्होंने आग जलायी, उसे हवा देने की राजनीतिक चातुरी दिखायी थी, वे सब उसकी सर्वग्रासी लपटों को देख, अपनी कुर्सियों से चिपके पड़े थे. ऐसे में फिल्मी सितारे सुनील दत्त पंजाब में पदयात्रा पर निकले! हिम्मत की बात थी. अपने भीतर कुछ ऐसी रोशनी छिटके कि बाहर के अंधकार की आंखों में आंखें डालने निकल पड़े, यह गहरे विश्वास में से फूटी किरण होती है.
यात्रा खत्म कर सुनील दत्त मुंबई लौट आये थे. उस यात्रा की मानसिक यात्रा की कहानी सुनिए! कहने लगे : कुमारजी, मेरा तो कोई सार्वजनिक जीवन नहीं रहा है. समाज में मैंने तो कोई काम किया नहीं है. हम अभिनेताओं की फिल्मी परदे की छवियां ही हमारी असलियत मानते हैं लोग और उसकी चकाचौंध में हमारे पीछे दौड़ते-भागते हैं, यह तो मैं समझता था.
लेकिन यहां तो बातें इस हद तक गयीं कि मैं कुछ समझ ही नहीं सका! कई क्षण तो ऐसे आये कि मुङो खुद पर ही शंका होने लगी कि मैं वही सुनील दत्त हूं या कोई और! मेरे पीछे लोगों के दौड़ने, नारे लगाने, रातभर पड़ाव के पास बैठे रहने आदि की तो क्या कहूं, पागलपन इस हद तक कि लोग पांव छूने, हाथ चूमने, मेरे रास्ते से मिट्टी उठा कर सिर पर लगाने तक से बाज नहीं आते थे. मेरे पास तो अल्फाज ही नहीं थे कि मैं उनसे बात कर सकूं, उन्हें रास्ता क्या बताऊंगा! लेकिन उनका विश्वास इतना गहरा था कि मैं घबरा जाता था.
‘विश्वास नहीं, अंधविश्वास!’, मैंने उन्हें रोका, ‘आप समझदार होते तो इस पदयात्रा से किसी सुनील बाबा या संत का जन्म हो सकता था! कहानी भी बड़ी लजीज बनती : फिल्मी दुनिया का नायाब सितारा, संसार के सारे भोग-विलास का रसपान करनेवाला, सबकुछ त्याग कर, मानवता के अंधेरे मार्ग को प्रशस्त करने निकल पड़ा है!’
‘इतना आसान होता है लोगों का विश्वास प्राप्त करना?’, वे मुझसे पूछ रहे थे कि खुद से, पता नहीं, लेकिन जब मैंने कहा कि यह विश्वास नहीं, दूसरे के कंधे पर अपनी जिम्मेवारियां छोड़ कर, जीने की वह सहज मानवीय कमजोरी है, जिसमें से अंधश्रद्धा पैदा होती है. यह अंधश्रद्धा हमारा आत्मविश्वास खा जाती है, तो वे तुरंत सहमत हुए.
अंधविश्वासों की जड़ आत्मविश्वासहीनता है, जिसे चतुर-चालाक-काइयां लोग भुनाते हैं. फर्क इतना ही है कि कोई सावधानी से, तो कोई फूहड़ता से भुनाता है. कोई उसे बौद्धिकता की चाशनी में तर करके परोसरता है और रजनीशवाद बन जाता है; कोई हमारे बिगड़े कामों को संवारने की बात करता है और निर्मल बाबा बन जाता है.
किसी का भी बिगड़ा काम बगैर पुरषार्थ के बनता नहीं है, यह न कह कर, जब निर्मल बाबा कहते हैं कि सत्शक्तियां हमेशा तुम्हारी मदद को तैयार रहती हैं और मैं हूं जिसके पास उन शक्तियों को सक्रिय करने का लाइसेंस है, तो वे बड़ी आसानी से मानवीय मन की कमजोरियों से खेलने लगते हैं. फिर वे अपने समागम में आने की फीस हजारों में लगाते हैं और आपकी भावी कमाई में से भी हिस्सा मांग लेते हैं.
कोई लाल किताब लिख कर काली कमाई में लगा है, तो कोई 11 किलो सोना पहन कर अपनी अध्यात्मिक ऊंचाई का अहसास करा रहा है. ऐसे बाबाओं-संतों-साध्वियों-हकीमों-नजूमियों-फादरों आदि-आदि की पलटन खड़ी है. हमारा पूरा मीडिया-तंत्र इनका प्रचार कर, इनसे कमाई करने में लगा है.
राजनीतिज्ञ और कॉरपोरेट घरानों के लोग अपने आंतरिक भय को झूठा आश्वासन देने के लिए इनके शरण जाते हैं और इस प्रकार इनके जाल को विस्तार देते हैं. कोई पूछे मोरारजी देसाई या नरसिम्हा राव या चंद्रशेखर या ऐसे ही किसी से कि दोबारा पदासीन होने का सब्जबाग दिखानेवाले साधुओं-बाबाओं से उन्हें अंतत: मिला क्या?
जनता सरकार को मटियामेट करने की घटिया चाल चल कर, पिटे राजनारायणजी जब वाराणसी के किसी महंथ का संदर्भ देकर मुझसे कह रहे थे कि जेपी चिंता न करें, उनका वचन है कि यह महल फिर से खड़ा होगा, तो मैं उनके आसपास समाजवाद का शव खोज रहा था. अगर किसी महंथ या साधक के कहने से ही यह सब होना था, तो किसी को चंडीगढ़ की कैद में मृत्यु की पीड़ा भोगने की जरूरत ही क्या थी?
कबीर तब भी सही थे, आज भी सही हैं कि मन ना रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा! यह दोनों तरफ से सच है- संतई का आवरण ओढ़ कर घोर कुत्सित जीवन जीनेवालों का भी और उस जीवन का शिकार होनेवालों का भी! न तो उनमें सच्चा वैराग्य पैदा हुआ है और न इनमें सच्ची भक्ति! भक्ति सच्ची व निष्कलंक हो, तो वह भी भगवान को शुद्ध बना लेती है. अगर दोनों तरफ से स्वार्थ की अंधी आंधी बहती हो तब क्या होता है?
तब कोई शराब व्यापारी, आपराधिक पृष्ठभूमिवाला व्यक्ति अखाड़ा परिषद् का महामंडलेश्वर बन जाता है. उसका पट्टाभिषेक करने आये थे निरंजनी अखाड़े के सचिव व अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि. इस समारोह में उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री व मुख्यमंत्री के रिश्तेदार शिवपाल यादव पूरे तामझाम से शरीक ही नहीं हुए थे, बल्कि सरकारी हैलीकॉप्टर से फूलों की बारिश भी करवायी गयी थी.
फिर हंगामा हुआ! किसने किया और क्यों किया, यह तो पता नहीं, लेकिन खबर आयी कि सच्चिदानंद गिरि ने महामंडलेश्वर पद छोड़ दिया है. मैं उस समाचार के भीतर यह समाचार खोजता रहा कि क्या नरेंद्र गिरि को निरंजनी अखाड़े ने या अखाड़ा परिषद् ने अपने यहां से निकाला या शिवपाल यादव को मंत्रिमंडल से हटाया गया? एक अपराधी-अयोग्य व्यक्ति को किसी भक्ति-स्थान पर बिठाने की इस लुच्ची कोशिश में शामिल सभी अपराधी हैं या नहीं? निर्मल बाबा का कार्यक्रम लगातार प्रसारित कर कमाई करनेवाले चैनल आस्था का व्यापार करने के उतने ही बड़े अपराधी हैं या नहीं, जितने बड़े अपराधी निर्मल बाबाओं की यह पूरी जमात है?
सवाल सीधा है- धर्म या अध्यात्म अगर मानव-मन को मजबूत और स्वाभिमानी नहीं बनाता है, तो वह मनुष्य को परोपजीवी, कायर और क्रूर बनाने के अलावा दूसरा कुछ नहीं कर सकता है!
हम याद करें महाभारत का वह प्रसंग, जब अजरुन और दुर्योधन दोनों ही महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण की मदद लेने जाते हैं. भगवान बगैर किसी उपदेश के दोनों को चुनने का अवसर देते हैं : मेरी औक्षिणी सेना ले लो या केवल मुङो ले लो! चुनो कि तुम्हारा विश्वास कहां है- दूसरों के हथियार व पराक्रम के भरोसे महाभारत जीतना चाहते हो या कि अपने पुरुषार्थ की आजमाइश करना चाहते हो? जवाब दुर्योधन ने दिया : ‘अकेले के पुरुषार्थ से क्या बनेगा! मुङो अपनी अजेय सेना दे दीजिए!’ चुना अजरुन ने भी : ‘सेना तो मेरे पास भी है, चाहिए मुङो मेरे आत्मविश्वास को दिशा देनेवाला शिक्षक! मैं आपके साथ ही तुष्ट हूं!’ फिर जो हुआ, वह महाभारत है. फिर जो गीता बनी वह आज तक, युगों-युगों से मनुष्य-मात्र की शिक्षक बनी हुई है.
क्या यह फर्क संतई की दुकान खोलनेवाले और वहां ग्राहक बन खड़े लोग पहचान पा रहे हैं? किसी साहिर लुधियानवी ने यही सब देख कर तो, अकुला कर बेचैनी भरी आवाज में पूछा था : ‘जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं?’ जवाब किसे देना है? क्या उन्हें, जो संतई की आड़ में चल रही लुच्चई को समझते हों और प्रतिकार करने को खड़े हों!
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