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‘निजता का अधिकार’ मौलिक अधिकार है या नहीं

सलमान रावी बीबीसी संवाददाता, दिल्ली हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार के तहत नहीं आता है क्योंकि संविधान के तीसरे खंड में इसकी अलग से व्याख्या नहीं की गई है. मुद्दे को लेकर चल रही बहस के बीच मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 11, 2015 1:59 PM
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हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार के तहत नहीं आता है क्योंकि संविधान के तीसरे खंड में इसकी अलग से व्याख्या नहीं की गई है.

मुद्दे को लेकर चल रही बहस के बीच मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट इस पर फ़ैसला सुना सकती है.

आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि निजता के अधिकार जैसी कोई चीज़ संविधान में उल्लेखित नहीं है.

ऊहापोह

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लेकिन न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है.

सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में यह दलील रखने वाले भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी का कहना है कि निजता के अधिकार को लेकर असमंजस है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न खंडपीठों ने इसको अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया है.

कभी संवैधानिक पीठों ने कहा कि यह मौलिक अधिकार नहीं है तो कभी इसे मौलिक अधिकार माना गया है.

रोहतगी का कहना था कि 1954 और 1963 में सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग खंडपीठों ने अपने फ़ैसलों में कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. उनका कहना था कि अदालतों के अलग-अलग रुख़ की वजह से एक उहापोह की स्थिति बन गई है.

दलील

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अटॉर्नी जनरल ने कहा, "हमने अदालत से कहा है कि निजता के अधिकार पर कुछ भी स्पष्ट नहीं है. यह बहुत कन्फ़्यूज़िंग है. आधार कार्ड के मामले की वजह से ही सही, इस पर क़ानूनी स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए."

अटॉर्नी जनरल का तर्क है कि चूँकि आठ सदस्यों वाली और फिर छह सदस्यों वाली खंडपीठ ने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए इस मामले को नौ सदस्यों वाली खंडपीठ के पास भेजा जाना चाहिए ताकि इस पर क़ानून स्पष्ट हो.

लेकिन ‘कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ के वेंकटेश नायक कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग खंडपीठों के फैसलों को साथ में पढ़ने की ज़रूरत है और यह भी कि सरकार की दलील में दम नहीं है.

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नायक का कहना है कि पूरा मामला आधार कार्ड के खिलाफ दायर याचिका की वजह से सामने आया है क्योंकि याचिकाकर्ताओं को लगता है कि यह पूरी प्रक्रिया ‘निजता के अधिकारों’ का अतिक्रमण है.

ज़ाहिर है कि लोगों की इस तरह की बिलकुल ही निजी जानकारी इकठ्ठा करने के लिए किसी भी तरह का क़ानूनी अनुमोदन नहीं कराया गया है.

वो कहते हैं, "बिना क़ानूनी अधिकार लिए इस तरह की निजी जानकारी इकठ्ठा करने की वजह से आधार ‘निराधार’ बन गया है." हालांकि नायक को लगता है कि निजता का अधिकार पहले से ही है मगर सुप्रीम कोर्ट इसे अगर परिभाषित कर देता है तो फिर आधार कार्ड जैसी प्रक्रिया खटाई में जा सकती है.

तो सवाल उठता है कि निजता का अधिकार अगर परिभाषित कर दिया जाता है और क़ानून बन जाता है तो क्या होगा?

क़ानून के जानकारों को लगता है कि ऐसी सूरत में ‘मॉरल पोलिसिंग’ करने वालों पर शिकंजा तो कसेगा ही, साथ ही बिना क़ानूनी अनुमति के किसी व्यक्ति की निजता और उससे जुड़ी निजी जानकारियों को इकठ्ठा करना भी मुमकिन नहीं हो पाएगा.

आश्चर्यजनक रूप से ख़ुद अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सोमवार को पोर्न पर प्रतिबन्ध के मामले में चल रही बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ‘सरकार मॉरल पुलिस नहीं बन सकती और हर घर में तांक झाँक नहीं कर सकती’.

बुनियादी अधिकार

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वेंकटेश का कहना है कि बहुत सारे मौलिक अधिकार ऐसे भी हैं जिनका उल्लेख संविधान में नहीं किया गया है लेकिन वो हैं और मज़बूती के साथ हैं जैसे स्वास्थ्य और जीने के अधिकार.

आज़ादी से पहले भी निजता के अधिकारों की वकालत ज़ोरदार ढंग से होती रही है. 1895 में लाए गए भारतीय संविधान बिल में भी निजता के अधिकार की वकालत सशक्त तरीके से की गई थी.

बिल में कहा गया था कि ‘हर व्यक्ति का घर उसकी शरणस्थली होता है और सरकार बिना किसी ठोस कारण और क़ानूनी अनुमति के उसे भेद नहीं सकती’. फिर 1925 में महात्मा गांधी की सदस्यता वाली समिति ने ‘कामनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल’ को बनाते हुए भी इसी बात का उल्लेख किया था.

मार्च 1947 में भी भीमराव आंबेडकर ने निजता के अधिकार का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि लोगों को अपनी निजता का अधिकार है.

उन्होंने इस अधिकार के उल्लंघन को रोकने के लिए कड़े मापदंड तय करने की वकालत की थी. मगर उनका यह भी कहना था कि अगर किसी कारणवश उसे भेदना सरकार के लिए ज़रूरी हो तो सबकुछ न्यायलय की कड़ी देख रेख में होना चाहिए.

इस बीच मंगलवार को न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने आधार कार्ड के लिए जुटाई जा रही जानकारी को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ को भेजने की सिफारिश की है.

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