मोदी पर भारी पड़ती आडवाणी-जोशी की कमी?
ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली क्या भारतीय जनता पार्टी को अपने पुराने नेताओं की याद आ रही है? संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र में इसके प्रदर्शन को देखकर ऐसा लगता है कि पार्टी विपक्ष को अपने मकसद में कामयाब होने से रोकने में बुरी तरह से नाकाम रही है. कांग्रेस पार्टी लोक सभा में […]
क्या भारतीय जनता पार्टी को अपने पुराने नेताओं की याद आ रही है? संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र में इसके प्रदर्शन को देखकर ऐसा लगता है कि पार्टी विपक्ष को अपने मकसद में कामयाब होने से रोकने में बुरी तरह से नाकाम रही है.
कांग्रेस पार्टी लोक सभा में केवल 44 सदस्यों के बावजूद पूरे सत्र की कार्यवाही को रोकने में कामयाब रही. राज्य सभा में भी जहाँ भाजपा का बहुमत नहीं है, सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस को रोक नहीं सकी है.
कांग्रेस पार्टी ने पिछले साल आम चुनाव में करारी हार के बावजूद अपने वरिष्ठ नेताओं को रिटायर नहीं किया है.
चुनाव से पहले राहुल गांधी वरिष्ठ नेताओं को हटाना चाहते थे लेकिन अब राय ये बनी है कि पार्टी को अनुभव की ज़रूरत है ख़ास तौर से विपक्ष में रह कर.
मोदी की मुश्किलें
संसद के मॉनसून सत्र में 11 बिल पारित होने हैं, लेकिन अब ये संभव नहीं लगता. संसद का मौजूदा सत्र 13 अगस्त को ख़त्म हो जाएगा. हर बीतते दिन के साथ मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ रही हैं.
भूमि अधिग्रहण बिल में भी भाजपा को अपने रुख़ से पीछे हटना पड़ा है. कई विशेषज्ञ कहते हैं कि नरेंद्र मोदी को अपने साथियों से सही सलाह नहीं मिल रही है.
लेकिन क्या इसके ज़िम्मेदार खुद मोदी नहीं हैं? प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ साथियों को हाशिए पर लाना शुरू कर दिया.
इनमें लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे.
मुरली मनोहर जोशी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री थे. अब ऐसा लगता है पार्टी को उनकी ज़रूरत नहीं.
उनके करीबी लोग कहते हैं कि वो पार्टी की मौजूदा लीडरशिप से सख्त नाराज़ हैं, लेकिन वो हाशिए पर रहने के बावजूद आत्मविश्वास से भरे हैं.
कामकाज से बेदखल
भारतीय जनता पार्टी ने हाशिए पर भेजे नेताओं को सम्मान देने के इरादे से ‘मार्ग दर्शक मंडल’ का गठन किया था लेकिन एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "ये हमारे लिए पैग़ाम था कि शुक्रिया अब आपकी पार्टी में ज़रूरत नहीं. आप आराम करें. ये सम्मान नहीं अपमान था."
आरिफ़ बेग भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक हैं और अब पार्टी के कामकाज से बेदखल महसूस करते हैं.
वो कहते हैं, "लाल कृष्ण अडवाणी जैसे वरिष्ठ नेता को दरकिनार करना मोदी की एक बड़ी भूल है. आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आडवाणी जी की देन हैं."
बेग ने बताया, "गुजरात के दंगों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी मोदी जी को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे. उस समय आडवाणी जी ने उनकी वकालत की थी."
आरिफ़ बेग आगे कहते हैं, "प्रधानमंत्री खुद सोचें कि जिस व्यक्ति ने आपकी हमेशा सरपरस्ती की, जिसकी वजह से आज प्रधानमंत्री बने तो उसको अगर नज़रअंदाज़ करोगे तो आने वाले दिनों आप भी नज़रअंदाज़ किए जाएंगे."
बेताज बादशाह
एक ज़माने में लाल कृष्ण अडवाणी पार्टी के बेताज बादशाह थे. उनका क़द आसमान को छू रहा था लेकिन आज उनसे पार्टी किसी विषय पर सलाह भी नहीं लेती.
आरिफ बेग कहते हैं अडवाणी जी आज भी चुस्त हैं, एक्टिव हैं और स्वस्थ हैं. वो पार्टी को बड़ी से बड़ी कठिनाइयों से निकालने की क्षमता रखते हैं.
लेकिन भाजपा के युवा नेताओं के विचार में पार्टी का सरकार से बाहर प्रदर्शन संतोषजनक रहा है.
एक नेता ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा को पहली बार एक अखिल भारतीय स्तर की पार्टी बना दिया है जिसका वजूद अब उत्तर-पूर्वी राज्यों से लेकर केरल तक है. इस नेता का कहना था कि केंद्र में सभी मंत्री एकजुट होकर काम कर रहे हैं.
किनारे रखने का मतलब
दिल्ली से भाजपा के एक सांसद ने स्वीकार किया कि संसद में पार्टी का ‘फ्लोर मैनेजमेंट’ बेहतर हो सकता था और इस सत्र की कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिए विपक्ष को साथ लेने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए थी.
युवा नेता कहते हैं कि पार्टी के नए सांसदों और मंत्रियों का अनुभव बढ़ेगा जिससे भविष्य में पार्टी और सरकार का प्रदर्शन बेहतर होगा.
लेकिन यही तो वरिष्ठ नेता कह रहे हैं कि जब पार्टी के पास इतने अनुभवी नेता मौजूद हैं तो उन्हें किनारे रखने का क्या मतलब?
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)