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स्वाभाविक है समाजवादियों में टूट

एमएन कर्ण, समाजशास्त्री समाजवादियों में टूट पर चर्चा से पहले सामजवाद के बारे में जानना होगा. मार्क्‍सवाद में भी समाजवाद है. लेकिन, भारत में कम्युनिज्म को साम्यवाद कहा जाता है समाजवाद नहीं. हिन्दुस्तान में ज्यादातर सामजवादी कांग्रेस से ही आये है. कांग्रेस कोई राजनीतिक पार्टी नहीं थी, एक विचारधारा थी. जितने भी पुराने समाजवादी थे, […]

एमएन कर्ण, समाजशास्त्री

समाजवादियों में टूट पर चर्चा से पहले सामजवाद के बारे में जानना होगा. मार्क्‍सवाद में भी समाजवाद है. लेकिन, भारत में कम्युनिज्म को साम्यवाद कहा जाता है समाजवाद नहीं. हिन्दुस्तान में ज्यादातर सामजवादी कांग्रेस से ही आये है. कांग्रेस कोई राजनीतिक पार्टी नहीं थी, एक विचारधारा थी. जितने भी पुराने समाजवादी थे, उनमें ज्यादातर कांग्रेसी थे. समाजवादियों में टूट स्वाभाविक है क्योंकि उनके विचारों में जड़ता नहीं है.
आपने किसी भी कंजरवेटिव विचार वाली पार्टी या संगठन को टूटते नहीं देखा होगा. ऐसा इसलिए कि उसके पास नया कुछ नहीं रहता है. और नयी सोच वालों को अपने यहां आने नहीं देते हैं. समाजवादियों के साथ ऐसा नहीं है. वहां नये विचारों को आने से रोका नहीं जाता है, इसलिए मतभेद स्वाभाविक है. यह भी सही नहीं है कि मतदाताओं का भरोसा समाजवादियों पर से उठ रहा है. लोकतंत्र में हार-जीत का सिलसिला चलता रहता है.

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