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अब सीधे अकाउंट में जायेगा सहियाओं का इन्सेंटिव

सहिया दीदी गांव की ऐसी महिला है जिसके कंधे पर गांव की महिलाओं और बच्चों के सेहत की बड़ी जिम्मेदारी है. जैसी खबरें हैं सहिया दीदी अपनी इस जिम्मेदारी को कुशलता पूर्वक निभा भी रही हैं. राज्य स्तर पर सहियाओं के काम-काज को देखने-समझने और उन्हें सहयोग करने का जिम्मा झारखंड राज्य ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन […]

सहिया दीदी गांव की ऐसी महिला है जिसके कंधे पर गांव की महिलाओं और बच्चों के सेहत की बड़ी जिम्मेदारी है. जैसी खबरें हैं सहिया दीदी अपनी इस जिम्मेदारी को कुशलता पूर्वक निभा भी रही हैं. राज्य स्तर पर सहियाओं के काम-काज को देखने-समझने और उन्हें सहयोग करने का जिम्मा झारखंड राज्य ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन सोसाइटी के पास है. सोसाइटी के निदेशक प्रमुख डॉ प्रवीण चंद्रा इस काम को पूरी गंभीरता से देख भी रहे हैं. इस मसले पर पुष्यमित्र ने उनसे विस्तार से बातचीत की है. पेश है इस बात-चीत के प्रमुख अंश :

गांव में सेहत की जिम्मेदारी सहियाओं के हाथों में है, आप उनके काम-काज से कितने संतुष्ट हैं?
ऐसा कहना ठीक नहीं है कि सेहत की पूरी जिम्मेदारी सहियाओं के कंधे पर है. वे लिंक परसन के तौर पर काम करती हैं. उनका काम अस्पतालों और गांव के लोगों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाना है. इसे इस रूप में देखा जाना चाहिये कि ग्रासरूट पर वे हमारी सबसे निचली स्टॉफ हैं. उनकी बड़ी संख्या है और निश्चित तौर पर उनकी भूमिका से राज्य को बड़ा फायदा हुआ है. सेहत से संबंधित राज्य के हर इंडिकेटर में सुधार हुआ है. चाहे शिशु मृत्यु दर का मसला हो या मातृत्व सुरक्षा की दर. और इसमें क्रेडिट उनको ही दिया जाना चाहिये.

ऐसा कहा जाता है कि आशा और सहिया के कॉन्सेप्ट में कुछ बुनियादी फर्क है. आपका इस संबंध में क्या मानना है?

नहीं ऐसा नहीं है. आशा और सहिया में कोई खास फर्क नहीं है. फर्क सिर्फ नाम का है. सहिया झारखंड का स्थानीय नाम है. इसी तरह ओड़िशा और छत्तीसगढ़ में भी आशा को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, मगर इससे यह नहीं समझना चाहिये कि दोनों अलग हैं. दोनों का काम एक ही है.

कई बार ऐसी सूचना मिलती है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारी सहियाओं से अच्छा व्यवहार नहीं करते. दरअसल हमलोग सहियाओं को जो प्रोत्साहन राशि देते हैं वह कई दफा समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है. इससे कई बार कुछ कंफ्यूजन क्रियेट होता है. मगर इसके लिए हमने एक तरीका निकाला है. हर सोमवार को हम बैकलॉग को क्लीयर कर देते हैं. शनिवार तक जो शिकायत हमारे पास आती

है, हम सोमवार को उसका निबटारा कर देते हैं. और चूंकि वे भी हेल्थ वर्कर ही हैं तो कई दफा आपस में कुछ ऊंच-नीच हो सकता है. मगर यह कोई बड़ा मसला नहीं है.

फस्र्ट एड बॉक्स का भी कुछ मसला होता है..

हां. दरअसल सहिया लोगों को सहिया किट जारी किया जाता है. उसमें प्राथमिक उपचार की कुछ दवाइयां, जैसे पारासिटामोल, बेंड-एड, डिटौल आदि चीजें होती हैं, ताकि वह प्राथमिक उपचार कर सके. वह तो सभी सहियाओं को जारी हो गया है. मगर उसके रिफिलिंग का मसला होता है. वह कहीं-कहीं नहीं हो पा रहा है. इस बात की सूचना हमें है और हम इसका समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं.

सहियाओं की अपनी सुरक्षा भी एक मसला है. कई स्थानों से सहियाओं के साथ अपराधिक घटनाओं की भी सूचनाएं हैं. इसके लिए स्वास्थ्य मिशन की ओर से क्या किया जा रहा है?

कई दफा एक्सीडेंट होने या चोट लगने जैसी घटनाएं होती हैं. उसके लिए हमने एक कॉर्पस फंड बनाया है, ताकि उनकी सहायता की जा सके. मगर जहां तक आपराधिक घटनाओं से सुरक्षा देने का मामला है, उस मामले में तो हम कुछ नहीं कर सकते. इस तरह की घटना जैसे आमलोगों के साथ होती है, वैसे ही सहियाओं के साथ भी हो जाती है. इसका समाधान पुलिस ही कर सकती है. इस मसले में पुलिस ही उन्हें सुरक्षा दे सकती है.

सहियाओं के काम-काज के हिसाब से उन्हें क्या समुचित आय हो पाती है?
आम तौर पर एक सहिया को 160 घरों की देखभाल करना होता है. इसके लिए हर प्रोग्राम में कुछ इन्सेंटिव है. यही उसकी आय होती है. अगर कोई सहिया ठीक से अपना काम करे तो वह हर महीने आम तौर पर तीन हजार रुपये तो कमा ही सकती है. इसके अलावा सहियाओं के लिए कोई मानदेय या वेतन नहीं है. न ऐसी कोई योजना ही है. उसे इन्सेंटिव से ही कमाई करना है और यह उस पर निर्भर है कि वह कितनी ईमानदारी से काम करती है, ताकि वह अपने लिए अधिक से अधिक आय अर्जित कर सके.

पंचायत और सहिया के बीच कैसे अंतर संबंध हैं?
सहिया की नियुक्ति ग्राम सभा की सहमति से ग्राम स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति द्वारा ही की गयी है. बाद में इस समिति में पंचायत प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया है. गांव के स्वास्थ्य का काम-काज यही समिति देखती है. सहिया भी इन्हीं समितियों के प्रति जिम्मेदार है.

सहियाओं के फायदे के लिए भविष्य की कोई योजना है क्या?
फिलहाल तो कोई ऐसी योजना नहीं है. यह योजना केंद्र सरकार की योजना के अनुरूप ही संचालित होती है. अगर वहां कोई योजना बनती है तो निश्चित तौर पर उसे झारखंड में भी लागू किया जायेगा. मगर ऐसा सोचा जाना कि वे परमानेंट हो जायेंगी या उन्हें वेतन मिलने लगेगा, अभी मुमकिन नहीं है. उनके लिए कुछ कार्पस फंड जरूर है. हां, हमलोग बहुत जल्द उनके इंसेंटिव को सीधे अकाउंट में ट्रांसफर करने जा रहे हैं. अभ तक हम उन्हें अकाउंट पेयी चेक देते रहे हैं, जिसके भुगतान में कुछ वक्त लग जाता है. अब उनके अकाउंट को आधार नंबर से लिंक करके हम उन्हें बहुत जल्द यह सुविधा देने जा रहे हैं.

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