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…तो मुग़लों से आज़ादी का जश्न मनाया जाता?

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली सैफ़ अली ख़ान ने अपनी एक आने वाली फ़िल्म के प्रमोशन के दौरान एक आर्टिस्ट वाली मासूमियत से वो बात कह डाली जो हिंदुत्व परिवार के कानों में मिस्री घोलने के बराबर थी. लेकिन पाकिस्तानियों को इस पर बहुत बुरा लगा होगा. उन्होंने कहा, "पाकिस्तान भी इंडिया का ही […]

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सैफ़ अली ख़ान ने अपनी एक आने वाली फ़िल्म के प्रमोशन के दौरान एक आर्टिस्ट वाली मासूमियत से वो बात कह डाली जो हिंदुत्व परिवार के कानों में मिस्री घोलने के बराबर थी.

लेकिन पाकिस्तानियों को इस पर बहुत बुरा लगा होगा. उन्होंने कहा, "पाकिस्तान भी इंडिया का ही हिस्सा तो है."

ये अब मुझे बेवकूफ़ी की बात लगती है.

मैंने भी कई साल पहले यही ग़लती की थी और वो भी लाहौर के एक मशहूर कॉलेज में.

मैं बीबीसी के लिए रिपोर्टिंग करने गया था जहाँ एक सभा में मैंने अपने दिल की बात कही कि, "काश हम दोनों (भारत और पाकिस्तान) एक बार फिर से मिल जाएँ, क्योंकि हमारा डीएनए तो एक ही है."

उस समय भारत में भी आम सोच यही थी. इस पर जो प्रतिक्रियाएं आईं उससे मैं हैरान हो गया.

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मुझे पहली बार एहसास हुआ कि पाकिस्तान में भारत के लोगों के प्रति भाईचारगी तो है, लेकिन उनका आज़ाद देश भारत से काफी दूर जा चुका है.

अब इसकी एक अलग पहचान है. वो आज़ाद है.

एक विद्यार्थी ने उस दिन मुझसे कहा था कि, "पाकिस्तान जैसा भी है उसकी अब एक अंतरराष्ट्रीय पहचान है और वो एक आज़ाद मुल्क है."

कई साल पहले भारत में पाकिस्तान के दूत रहे रियाज़ खोखर को भी इसका पाठ पढ़ाया गया था.

वो दिल्ली में एक ईद समारोह में शामिल थे. उस समय उनकी मुलाक़ात भारतीय जनता पार्टी के एक सीनियर मंत्री से कराई गई.

उन्होंने कूटनीति को किनारे करके दो टूक शब्दों में कहा, "अपने ही देश का कोई दूत होता है?"

खोखर ये सुन कर परेशान हुए. भाजपा नेता ने अपनी बात जारी रखते हुए उन्हें और हैरान कर दिया.

उन्होंने कहा, "पाकिस्तान भारत का हिस्सा ही तो है. हम एक लोग ही तो हैं. हमारा डीएनए एक ही तो है."

अखंड भारत की कल्पना

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रियाज़ खोखर को जो सीख मिली वो उस अखंड भारत के विचार का हिस्सा है जिसकी कल्पना और वकालत हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी जैसी संस्थाएं करती आई हैं.

इस अखंड भारत की प्रेरणा प्राचीन काल से ली जाती है. उस समय के भारत में आज के कई देश आते हैं.

लेकिन ये हाल की एक सक्रिय सियासी सोच है. इसकी वकालत अंग्रेज़ों से आज़ादी हासिल करने और भारत को विभाजित होने से बचाने के लिए की गई थी.

और अगर आज के हिन्दू राष्ट्रवादी दीनानाथ बत्रा इसके एक बड़े चैंपियन हैं.

उनके अखंड भारत में पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के अलावा श्रीलंका, भूटान, नेपाल, बर्मा और तिब्बत भी शामिल हैं.

आकार में आज का भारत बत्रा के अखंड भारत के आधे से भी कम है.

अंग्रेज़ न आते तो…

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पिछले एक हज़ार साल के इतिहास में दीनानाथ बत्रा के अखंड भारत से मुक़ाबला केवल मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब का भारत ही कर सकता है, जब इस देश की सरहदें अफ़ग़ानिस्तान से बंगाल तक और कश्मीर से दखिन तक फैली थीं.

लेकिन क्या बत्रा साहब को ये कड़वा सच स्वीकार होगा?

हम हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस अंग्रेज़ों से आज़ादी हासिल करने की वजह से मनाते हैं.

लेकिन अगर अंग्रेज़ भारत न आते तो मुग़लों से आज़ादी का जश्न मनाया जाता? तो क्या ऐसे में पाकिस्तान होता?

और क्या 14 अगस्त को इसका स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता?

इसी तरह से क्या बांग्लादेश होता और इसकी आज़ादी का हर साल जश्न मनाया जाता?

ये काल्पनिक बातें हैं, लेकिन अगर अंग्रेज़ न आते तो शायद आज के भारत का आकार दीनानाथ बत्रा के अखंड भारत से अधिक छोटा न होता.

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