ग्रामीण ही कार्यकर्ताओं के खाने का इंतजाम करते थे
सुरेंद्र प्रसाद तरुण,पूर्व विधायक,अतरी पहली बार 1980 में अतरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक बने सुरेंद्र प्रसाद तरूण आज के बदलते राजनीतिक व्यवस्था से नाराज हैं.वह कहते हैं कि समय के साथ चुनाव व्यवस्था भी बदल गयी है. पहले प्रजातंत्र का चुनाव होता था. अब व्यक्ति तंत्र का चुनाव होता है. इससे प्रजातंत्र को धक्का […]
सुरेंद्र प्रसाद तरुण,पूर्व विधायक,अतरी
पहली बार 1980 में अतरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक बने सुरेंद्र प्रसाद तरूण आज के बदलते राजनीतिक व्यवस्था से नाराज हैं.वह कहते हैं कि समय के साथ चुनाव व्यवस्था भी बदल गयी है. पहले प्रजातंत्र का चुनाव होता था. अब व्यक्ति तंत्र का चुनाव होता है. इससे प्रजातंत्र को धक्का लगा है. चुनाव में अब नीति और सिद्घांत कोई मायने नहीं रखता है. बाहुबल और धनबल के आधार पर चुनाव जितने की परंपरा चल पड़ी है. पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री सुरेंद्र प्रसाद तरूण ने दो बार चुनाव जीता था. इस बाबत वह बताते है कि चुनाव के दौरान वे अपने विधान सभा क्षेत्र में रहते थे. चुनाव लड़ने में मात्र 40 हजार रुपये खर्च हुए थे. यह धन उन्हें जनता के सहयोग व चंदे से मिले थे.
तरूणजी कांग्रेस के महेश्वर प्रसाद सिंह को पराजित कर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे. वह एक जीप से चुनाव प्रचार करते थे. उनके कार्यकर्ता और समर्थक पैदल और साइकिल से गांव-गांव चुनाव प्रचार करते थे. ग्रामीण ही कार्यकर्ताओं को खाने और सोने का प्रबंध करते थे. वह कहते हैं कि आज राजनीति में धनबल, बाहुबल और जातिवाद का बोलबाला है. पहले कर्मठ और जुझारू उम्मीदवार को तरजीह दी जाती थी. उम्मीदवार भी कुछ करने का जज्बा रखते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. परिवारवाद, जातिवाद, गुंडों और धनकुबेरों को टिकट में प्राथमिकता दी जाती है. प्रत्याशी का चयन और चुनाव परिणाम भी बाहुबल और धनबल के आधार पर ही होता है.
तरूण कहते हैं कि 1985 में हिलसा विधान सभा क्षेत्र से दूसरी बार कांग्रेस विधायक चुने गये. इस बार उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के जगदीश प्रसाद यादव को शिकस्त दी थी. इस बार उन्हें शिक्षा राज्य मंत्री बनाया गया. वे कहते हैं कि अतरी की तरह हिलसा के लोगों ने भी उन्हें काफी स्नेह दिया और हाथों-हाथ लिया. अपने खर्चे से लोग उनका चुनाव प्रचार करते थे. वे कहते हैं कि अब के नेता बात तो विकास की करते हैं लेकिन, काम जाति-धर्म और निजी लाभ-हानि के आधार पर करते हैं. तरूणजी कहते हैं कि विधायक प्रत्याशी की भी योग्यता निर्धारित होनी चाहिए
सजायाफ्ता की तरह जेल जा चुके अपराधियों का चुनाव लड़ने पर वैन लगना चाहिए. प्रजातंत्र की राजनीति में अब वंशवाद हावी हो गया है। इस समय राजनेता पहले अपने परिवार को बाद में पार्टी के अन्य लोगों को प्रत्याशी बनाते हैं, जो लोकतंत्र के लिए घातक से कम नहीं है.तरूणजी ने कहा कि वंशवाद की राजनीति करनेवाले नेता अपने परिवार का तो भला कर रहे हैं. लेकिन, इससे समाज और प्रदेश-देश का विकास बाधित हो रहा है.
उनका मानना है कि चुनाव में प्रत्याशी के खर्चो पर चुनाव आयोग की पैनी नजर रहती है. उसी प्रकार आचार संहिता लागू होने की तिथि से परिणाम की घोषणा तक अवैध शराब बनाने और बेचने पर पूर्ण रोक लगायी जानी चाहिए. वे कहते हैं कि पहले पेड न्यूज नहीं होता था, लेकिन अब इसका बेखौफ इस्तेमाल हो रहा है. इससे भी चुनाव प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता है. पहले प्रधानमंत्री राज्य में दो-तीन और मुख्यमंत्री जिले में एक-दो चुनावी सभा करते थे. लेकिन, वह सब अब विरासत की बात जैसी हो गयी है. प्रधानमंत्री हर प्रमंडल और मंडल में चुनावी सभा करने के लिए आतुर हैं. इसी प्रकार मुख्यमंत्री भी एक विधानसभा क्षेत्र में एक से अधिक चुनावी सभा करते देखे जा रहे हैं.