सिर्फ 3500 रुपये खर्च कर जीता विधानसभा चुनाव

देवनाथ प्रसाद पूर्व विधायक, बिहारशरीफ 1970-80 के दशक का चुनाव और आज के चुनाव में जमीन आसमान का अंतर था. 1977 में पहली बार सीपीआई के टिकट से बिहारशरीफ विधान सभा का चुनाव जीतने वाले देव नाथ प्रसाद बताते हैं कि तब चुनाव में आज जैसा नजारा देखने को नहीं मिलता था. 81 वर्षीय वयोवृद्ध […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 20, 2015 2:26 AM
देवनाथ प्रसाद
पूर्व विधायक, बिहारशरीफ
1970-80 के दशक का चुनाव और आज के चुनाव में जमीन आसमान का अंतर था. 1977 में पहली बार सीपीआई के टिकट से बिहारशरीफ विधान सभा का चुनाव जीतने वाले देव नाथ प्रसाद बताते हैं कि तब चुनाव में आज जैसा नजारा देखने को नहीं मिलता था.
81 वर्षीय वयोवृद्ध नेता श्री प्रसाद बताते हैं कि उन्हें अपने पहले विधान सभा चुनाव में 3500 रुपये खर्च करने पड़े थे. बिहारशरीफ विधान सभा का चार बार प्रतिनिधित्व करने वाले देवनाथ प्रसाद बताते हैं कि उस वक्त चुनाव में पैसे की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती थी.
लोग स्वच्छ छवि व काम करने वालों को स्वत: खुल कर मदद किया करते थे. टिकट कंफर्म होते ही लोग चंदा एकत्र कर मदद किया करते थे. चंदा के रूप में चावल-गेहूं दिया जाता था. अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए श्री प्रसाद बताते हैं कि उस वक्त चुनाव प्रसार पैदल एवं साइकिल से होता था. साइकिल से लोग गांव-गांव व मोहल्ले में जा कर चुनाव प्रसार किया करते थे. पोलिंग एजेंट उस वक्त पैसे नहीं लेते थे. एक्का टुक्का मोटरसाइकिल भी होता था.
1977, 1980, 1990 व 1995 में बिहारशरीफ विधान सभा का प्रतिनिधित्व कर चुके देवनाथ प्रसाद बताते हें कि 1995 में राजद से जीते और विधि मंत्री बने. पहले चुनाव में आज जैसी स्थिति नहीं थी. 2000 के विधान सभा चुनाव से पैसों का प्रचलन तेजी से बढ़ा. इसके पूर्व जनता बिना लोभ या किसी आर्थिक अपेक्षा के मदद करती थी.
आज के चुनाव का जिक्र करते हुए श्री प्रसाद बताते हैं कि अब तो पैसे वालों को ही टिकट मिलता है. टिकट देने से पूर्व पार्टियों द्वारा प्रत्याशियों की आर्थिक हैसियत देखी जाती है. आज गरीब लोगों को विधान सभा का चुनाव लड़ना मुश्किल हो गया है. प्रचार में कार्यकर्ताओं से ज्यादा गाड़ियां दौड़ती हैं.
भीड़ भी नेताओं को सुनने नहीं गाड़ियों और हेलिकॉप्टर देखने आती है. आज का वोटर पहले की तुलना में ज्यादा शिक्षित है, लेकिन जाति और धर्म से जल्दी प्रभावित होता है. पहले के मतदाताओं को इस मुद्दे पर प्रभावित करना आसान नहीं था.

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