साइकिल से प्रचार कर जीता था पहला चुनाव

गजेंद्र प्रसाद हिमांशु पूर्व विधायक, हसनपुर समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया के शिष्य व कर्पूरी ठाकुर के सहकर्मी गजेंद्र प्रसाद हिमांशु ने समस्तीपुर की हसनपुर सीट का सात बार प्रतिनिधित्व किया. 1967 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े और भारी बहुमत से जीत हासिल की. 25 वर्ष की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 22, 2015 1:03 AM
गजेंद्र प्रसाद हिमांशु
पूर्व विधायक, हसनपुर
समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया के शिष्य व कर्पूरी ठाकुर के सहकर्मी गजेंद्र प्रसाद हिमांशु ने समस्तीपुर की हसनपुर सीट का सात बार प्रतिनिधित्व किया. 1967 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े और भारी बहुमत से जीत हासिल की.
25 वर्ष की आयु में विधानसभा पहुंचे हिमांशु सबसे कम उम्र के विधायक थे. वर्षो तक सबसे कम उम्र का विधायक होने का रिकॉर्ड इनके ही नाम रहा. हिमांशु बताते हैं कि पहले चुनाव में साइकिल से प्रचार किया था. पैदल भी जाना पड़ता था.
चुनाव प्रचार के लिए जीप की कोई व्यवस्था नहीं थी. पहले चुनाव में कुल खर्च आया था 2500 रुपये. 1967 में जब बीपी मंडल संयुक्त सोशिलस्ट पार्टी को तोड़ कर बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो उनकी पार्टी में जाने के लिए गजेंद्र प्रसाद हिमांशु को उप मुख्यमंत्री पद देने की पेशकश की गयी थी, लेकिन इन्होंने उस ऑफर को ठुकरा दिया. इसका परिणाम उन्हें 1969 के चुनाव में मिला.
वो फिर भारी बहुमत से हसनपुर से चुनाव जीते. इसबार चुनाव लड़ने के लिए उन्हें नौ हजार रुपये खर्च करने पड़े. 1972 के चुनाव में हिमांशु जी ने कुल दस हजार रुपये खर्च किये थे. वर्ष 1980 के चुनाव में 22000 हजार रुपय खर्च हुए थे. 1990 में जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए 30 हजार रुपये खर्च हुये.
चुनाव लड़ने के लिए पेसे की व्यवस्था पर हिमांशु बताते हैं कि 1990 तक क्षेत्र के लोग ही चुनाव लड़ने के लिए चंदा देते थे. लेकिन, इसके बाद यह परंपरा खत्म होती चली गयी.
इसके बाद से चुनाव में खर्चा बढ़ा और वोटरों को प्रलोभन देने का दौर शुरू हुआ. वह कहते हैं कि हसनपुर के वोटरों ने हमेशा मेरा सम्मान किया, इस बात पर मुङो गर्व है. हमारे समर्थक चुनाव प्रचार करने अपने घर से खाना खा कर आते थे, साथ ही चूड़ा-गुड़ का इंतजाम साथ में रखते थे, ताकि चुनाव क्षेत्र में लेट हो जाने पर भोजन की चिंता नहीं रहे. जिस गांव में जाते थे, वहां के लोग उन्हें खाना खिला देते थे.
श्री हिमांशु बताते हैं कि बाद के चुनाव में जीप किराये पर लायी जाती थी, जो चुनाव के चार-पांच दिन पहले आती थी. तभी उससे प्रचार होता था. वह बताते हैं कि शुरू से मेरे ऊपर समाजवाद की छाप रही. नौवीं कक्षा से ऐसे आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था.
लोहिया जी का भाषण सुनने के लिए दूर-दूर तक जाते थे. चुनाव में भी मैने वैसे वादे नहीं किये जिसके पुरा नहीं होने पर मुङो शìमदा होना पड़े. आज स्थिति बदल गयी है. आज के नेता जीत के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं. चुनाव प्रचार में गाड़ियों का काफिला चलता है. कई नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं से ज्यादा गाड़ियां होती हैं.
कार्यकर्ता भी बिना कुछ लिये प्रचार में नहीं जाते हैं. उनके खाने-पीने समेत हर सुविधा का ख्याल प्रत्याशी को रखना पड़ता है. वोटरों को भी प्रलोभन दिया जाने लगा है. पैसे तक बांटे जाने लगे हैं.
वादे भी ऐसे किये जाने लगे हैं, जिन्हें पूरा करना संभव नहीं होता. प्रत्याशियों को इतनी जल्दी रहती है कि उनके पास वोटरों के लिए टाइम भी नहीं रहता है. मतदाता भी प्रत्याशियों को पहले की तरह इज्जत नहीं दे रहे हैं. लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं है.

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