आज की राजनीति के पास कोई सपना नहीं बचा

रामजीवन सिंह पूर्व विधायक व पूर्व सांसद दो बार सांसद, पांच बार विधायक और तीन बार मंत्री रहे समाजवादी रामजीवन सिंह राजनीति का मौजूदा हाल देखकर कहते हैं- ‘आज राजनीति नहीं, रणनीति की राजनीति हो रही है. यह रणनीति ही है जिसके दरवाजे सत्ता की चौखट पर खुलते हैं. सबको सत्ता चाहिए. जनता के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2015 12:37 AM
रामजीवन सिंह
पूर्व विधायक व पूर्व सांसद
दो बार सांसद, पांच बार विधायक और तीन बार मंत्री रहे समाजवादी रामजीवन सिंह राजनीति का मौजूदा हाल देखकर कहते हैं- ‘आज राजनीति नहीं, रणनीति की राजनीति हो रही है. यह रणनीति ही है जिसके दरवाजे सत्ता की चौखट पर खुलते हैं. सबको सत्ता चाहिए. जनता के लिए राजनीति कहां हो रही है? जब जनता ही गायब है, तो राजनीति रणनीति की हो रही है.
यही कारण है कि सत्ता की देहरी तक पहुंचने की आपाधापी में हर तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं. पैसों का प्रभाव बढ़ना इसी का द्योतक है.
आज की सियासत में न सिद्धांत है न नीति. कार्यक्रम भी नहीं है. जब राजनीतिक दर्शन ही गायब है, तो राजनीति का पूरा उपक्रम सत्ता हासिल करना बन गया है. कोई सपना नहीं है. यह खतरनाक स्थिति है.’
सिंह ने डॉ लोहिया और जयप्रकाश नारायण के सानिध्य में काम किया. उनका कहना है कि तब समाज और जनता के मुद्दों पर राजनीति होती थी. सिद्धांत, सेवाभाव और सम्मान
के लिए लोग राजनीति में आते थे. अब राजनीति निजी प्रतिष्ठा व कारोबार का जरिया बन गयी है.सिंह 1948 में सोशलिस्ट मूवमेंट में शामिल हो गये थे. 1967, 1969 और 1972 का चुनाव लड़ने वाले रामजीवन सिंह ने बताया कि तब साइकिल और टमटम से चुनाव प्रचार किया था. बेगूसराय के चेरिया-बरियारपुर सीट से चुनाव जीतने वाले सिंह ने बताया कि 1967 के चुनाव में उन्होंने महज साढ़े पांच हजार खर्च किया था.
बाद में जेपी के आह्वान पर 1974 में विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने वाले छह विधायकों में रामजीवन सिंह भी एक थे. आपातकाल में जेल भी गये. वह कहते हैं – भ्रष्टाचार ने राजनीति को गहरे रूप में प्रभावित किया है. चुनाव जीतने के लिए आज असीमित पैसे खर्च किये जा रहे हैं. वह पैसा कहां से आ रहा है?
तब के राजनीतिक नारों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि आज नारा है ही नहीं. नारे किसी राजनीति दल की नीतियों का बयान होते हैं. यह बयान सिरे से गायब हो चुका है. वह 1990 व 1995 में भी विधायक रहे जबकि 1977 व 2004 में लोकसभा सदस्य चुने गये.

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