खुश रहने के लिए करें खुद की प्रोग्रामिंग

।।दक्षा वैदकर।। एक बच्ची को उसकी मां ने समझाया, ‘जीवन में खुश रहना सबसे ज्यादा जरूरी है. इनसान अगर खुश नहीं है, तो उसका जीवन बेकार है.’ बच्ची को एक दिन टीचर ने पूछा ‘बड़ी होकर क्या बनना चाहोगी?’ बच्ची बोली ‘खुश इनसान’. टीचर ने कहा, ‘तुमने मेरे सवाल को ठीक से समझा नहीं.’ बच्ची […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2013 4:32 AM

।।दक्षा वैदकर।।

एक बच्ची को उसकी मां ने समझाया, ‘जीवन में खुश रहना सबसे ज्यादा जरूरी है. इनसान अगर खुश नहीं है, तो उसका जीवन बेकार है.’ बच्ची को एक दिन टीचर ने पूछा ‘बड़ी होकर क्या बनना चाहोगी?’ बच्ची बोली ‘खुश इनसान’. टीचर ने कहा, ‘तुमने मेरे सवाल को ठीक से समझा नहीं.’ बच्ची ने जवाब दिया, ‘आपने जिंदगी को ठीक से नहीं समझा.’ दरअसल, उसकी टीचर इंजीनियर, डॉक्टर आदि जवाबों की उम्मीद कर रही थी, इसलिए उसे बच्ची का जवाब गलत लगा. लेकिन सच तो यह है कि बच्ची ने ही सबसे सही जवाब दिया. आखिर हम सभी अच्छा डॉक्टर, इंजीनियर आदि क्यों बनना चाहते हैं? हमें लगता है कि यह बन जाने से हमें ढेरों रुपये मिल जायेंगे, अच्छा घर ले लेंगे, जीवनसाथी मिल जायेगा, बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल जायेगी. कुल मिला कर हम खुश हो जायेंगे. ‘खुशी’, यही तो हम अंत में चाहते हैं. बच्ची ने पहले ही इसका जवाब दे दिया, तो क्या गलत किया?

हम सभी ने अपनी जिंदगी की प्रोग्रामिंग कुछ इस तरह की है- ‘जब मुङो फलां चीज मिल जायेगी, तो मैं खुश हो जाऊंगा.’ यानी जब तक वह चीज नहीं मिलेगी, मैं खुश नहीं होऊंगा. लेकिन क्या आपको पता है, इस तरह हम लक्ष्य नहीं तय करते, बल्कि खुशियों को टालते हैं. हम अपनी प्रोग्रामिंग इस तरह क्यों नहीं करते कि ‘मैं हर रोज, हर पल खुश रहूंगा, चाहे कुछ भी हो जाये.’

आपको अपना नजरिया बदलते हुए खुद को 24 घंटे खुश रखने की प्रोग्रामिंग करनी होगी. दो दोस्तों को ही लें. दोनों को एक स्थान पर पहुंचना है और बारिश हो रही है. एक दोस्त कहता है, ‘यार, बारिश को भी अभी होना था. थोड़ी देर बाद होती, तो इसका क्या बिगड़ जाता. भगवान हमेशा मेरे काम ऐसे ही बिगाड़ता है. पूरे कपड़े खराब हो गये. हर तरफ कीचड़ हो गया है. ऊपर से अब सर्दी भी हो जायेगी.’ वहीं दूसरा दोस्त कहता है, ‘यार, क्या शानदार मौसम है. बहुत दिनों बाद बारिश में भीगने का मौका मिला. कीचड़ में उछल-कूद किये तो जमाना गुजर गया. आसपास के पेड़ों को देखो, कितने तरोताजा लग रहे हैं. भगवान यह पल, यहीं रुक जाये.’ तो यह है जिंदगी की असली खुशी के मायने.

बात पते की..

-हम संषर्घ का पीरियड लंबा और खुशी का पीरियड छोटा क्यों बनाते हैं? इस तरह तो हम जीवन के 25 प्रतिशत हिस्से में भी खुश नहीं रह पायेंगे.

-जीवन स्मूद हाइवे नहीं, उबड़-खाबड़, कांटोंवाली सड़क है. इसमें अनुकूल परिस्थितियां आपको हमेशा नहीं मिलतीं. खुद के नजरिये को बदलें.

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