छठी बार सिद्दीकी करेंगे जोर आजमाइश
विधानसभा की कोई सीट छोटी या बड़ी नहीं होती है. पर कुछ ही सीटें ऐसी होती हैं, जिसकी चरचा राज्य स्तर पर की जाती है. बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से कुछ सीटों को इसलिए चुनिंदा माना जाता है कि उसका प्रतिनिधि कौन है? उसकी छवि कैसी है और उसका राजनीतिक सफर किस तरह […]
विधानसभा की कोई सीट छोटी या बड़ी नहीं होती है. पर कुछ ही सीटें ऐसी होती हैं, जिसकी चरचा राज्य स्तर पर की जाती है. बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से कुछ सीटों को इसलिए चुनिंदा माना जाता है कि उसका प्रतिनिधि कौन है? उसकी छवि कैसी है और उसका राजनीतिक सफर किस तरह आगे बढ़ा है. इन चुनिंदा सीटों पर राज्य के आम लोगों की नजर रहती है, वे जानना चाहते हैं कि वहां के सियासी हलकों की गरमाहट कैसी चल रही है.
इन सीटों के बारे में वे भी जानना चाहते हैं जो राजनीति की सीढ़ी चढ़ने की तैयारी कर रहे हैं. इन चुनिंदा सीटों के जनप्रतिनिधियों-राजनीतिज्ञों के बारे में जानना-समझना एक नयी समझ भी पैदा करेगा. आखिर इतना तो तय है कि कोई उम्मीदवार अगर किसी सीट से लगातार चुनाव जीतरहा है, तो इसकी कोई खास वजह भी होगी. प्रभात खबर में आज से पढ़िए ऐसी ही चुनिंदा सीटों के बारे में ग्राउंड रिपोर्ट.
स्पेशल सेल
अलीनगर विधानसभा सीट पर इस बार भी सूबे के लोगों की निगाहें टिकी रहेंगी. यह सीट राजद विधायक दल के नेता अब्दुल बारी सिद्धीकी को लेकर अहम माना जाता है. सिद्धीकी यहां से अब तक पांच बार विधायक चुने गये हैं. अगर इस बार भी जीते, तो डबल हैट्रिक होगा.
इस विधानसभा क्षेत्र में दरभंगा जिले के तीन प्रखंड अलीनगर, घनश्यामपुर एवं तारडीह आते हैं. पहले यह बेहड़ा विधानसभा क्षेत्र के रूप में जाना जाता था. नये परिसीमन में यह अलीनगर विधानसभा क्षेत्र बना. सिद्धीकी 1995, 2000 एवं 2005 (फरवरी व अक्तूबर) में लगातार चार बार विधायक निर्वाचित हुए.
2010 के चुनाव में अलीनगर विधानसभा क्षेत्र बना, तो वहां के पहले विधायक वही बने. 2010 के चुनाव को छोड़ दें, तो हर बार इनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार से होता रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा एवं जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इसलिए जदयू ने अपना उम्मीदवार दिया था और प्रभाकर चौधरी उसके उम्मीदवार बने थे. उस बार भी इन्हें कड़ी टक्कर मिली थी. महज चार हजार 989 मतों से वे चुनाव जीते थे.
ब्राह्मण बाहुल्य है यह क्षेत्र
सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस विधानसभा क्षेत्र से सिद्धीकी लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं, वह ब्राह्मण बाहुल्य है. यहां करीब 67 हजार ब्राह्मण वोटर हैं. मुसलिम वोटरों की संख्या उसके बाद आती है. इनके वोटरों की तादाद 64 हजार के करीब है. इसके अलावा 39 हजार यादव, 65 हजार अत्यंत पिछड़ा एवं इतने ही महादलित वोटर भी हैं. इनके बाद अन्य जाति के वोटर हैं.
पूरे विधानसभा क्षेत्र में कुल 34 पंचायत हैं. पिछले चुनावों का विेषण करें, तो यहां के मतदाता दो ध्रुव में बंटकर मतदान करते आये हैं. वोटों के ध्रुवीकरण में सिद्धीकी अब तक भारी पड़ते रहे हैं. इस बार क्या होता है, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन मतों का दो ध्रवों में बंटने वाली स्थिति कमोबेश इस बार भी वैसी ही रहेगी. एक तरफ महागंठबंधन होगा, तो दूसरी तरफ एनडीए. अन्य दलों की यहां वैसी मजबूत पकड़ नहीं है.
राहत देने वाली बात
अब्दुलबारी सिद्धीकी के लिए राहत देने वाली बात यह है कि उनके साथ अब जदयू एवं कांग्रेस भी हैं. दूसरी ओर दलित एवं महादलित वोटों को लेकर कोई दावा करने की स्थिति में नहीं है. इस वोट पर सभी राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना प्रभाव बता रहा हैं. इस लिहाज से वोटों के जातीय ध्रवीकरण का समीकरण नया होगा.
एनडीए की ओर से पये समीकरणों पर आधारित वोटों के दावे किये जा रहे हैं तो महागंठबंधन का अपना दावा है. इन दावों की परख तो चुनाव में होगी, पर अभी दोनों ओर से किये जा रहे दावों के खारिज करना भी मुनासिब नहीं होगा. जानकारों का मानना है कि चुनाव आते-आते कई समूहों को इस खाने से उस खाने देर नहीं लगती. राजनीतिक दलों को इस उलट-फेर का अंदाजा है और शायद इसीलिए यह भी कहा जा रहा है कि मतदान तक सभी चीजों को ठीक कर लिया जायेगा.
एनडीए ढूंढ रहा जिताऊ उम्मीदवार
सिद्धीकी के खिलाफ इस बार एनडीए वैसे उम्मीदवार की तलाश में है, जो इस सीट को निकाल सके. वह दूसरे दल के मजबूत नेता पर बाजी लगा सकता है. लिहाजा, ऐसे नेताओं पर इसकी नजर है. वैसे वर्तमान में भाजपा की ओर से दिगंबर यादव, वैद्यनाथ यादव, अनिल झा एवं रामाकांत चौधरी के नामों की चरचा उम्मीदवार के रूप में की जा रही है.
वहीं, राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि पिछले चुनाव में सिद्धीकी को टक्कर देने वाले पूर्व विधायक प्रभाकर चौधरी पर भी एनडीए डोरा डाले हुए है. यदि यह सीट भाजपा के खाते में रहती है, तो फिर भाजपा से उन्हें उम्मीदवार बनाया जा सकता है या फिर गठबंधन के दूसरे घटक दल के खाते में सीट जाती है, तो उन्हें उसमें शामिल करा कर उन्हें एनडीए उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा जा सकता है.
चौधरी फिलहाल जदयू में हैं और उन्हें भरोसा है कि जदयू इस बार उन्हें इस सीट से फिर चुनाव लड़ायेगा. यह बड़ा पेच है, क्योंकि जदयू और राजद अब एक साथ हैं. सिद्धीकी की छवि आम राजनीतिज्ञों से जरा हटकर है और यह बात प्रतिद्वंद्वी शिविर को परेशान करती है.
बहरहाल, दरभंगा की इस महत्वूपर्ण सीट को लेकर सभी सियासी हलकों में सरगर्मी तेज है. आम वोटर भी जानना चाहता है कि सिद्धीकी के खिलाफ किस दल से कौन उम्मीदवार सामने आता है. दोनों गंठबंधन सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में होने का दावा भी कर रहे हैं.
मालूम हो कि यहां की लोकसभा पर भाजपा के कीर्ति आजाद निर्वाचित हुए थे. इस लिहाज से भाजपा इस जिले की सभी सीटों पर अपना या घटक दलों का कब्जा चाहती है. पर इस क्षेत्र में जदयू-राजद की भी अच्छी पैठ रही है. अब तक के रूझानों से साफ है कि चुनाव में दो ही कोणों के बीच मुकाबला होने जा रहा है.
तीसरे कोण के तौर पर कुछ राजनीतिक समूह कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उनकी ऐसी ताकत नहीं बन पायी है जो लड़ाई को तिकोना बना सके. इसलिए लड़ाई के रोचक होने के आसार हैं.
इनपुट : दरभंगा से विनोद कुमार गिरि
2,48,165 मतदाता
इस बार के विधानसभा चुनाव में अलीनगर विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 48 हजार 165 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इन में 1.30 लाख के करीब पुरु ष हैं और करीब 1.18 लाख महिला वोटर हैं.
बड़ा सवाल -एनडीए की ओर से कौन होगा प्रत्याशी
एक दिलचस्प बात और भी है. यह देखना होगा कि यादव मतदाताओं का रूझान कैसा रहता है. इस बिरादरी को अपने प्रभाव में लेने के लिए महागंठबंधन को छोड़कर दूसरी पार्टियां भी काफी कोशिश कर रही हैं. भाजपा ने दो-तीन यादव नेताओं को अपने साथ जोड़ा है.
लेकिन राजद की ओर से भी भाजपा की इस रणनीति पर नजर रखी जा रही है और उसकी काट तैयार की जा रही है. सिद्दीकी के खिलाफ एनडीए किस उम्मीदवार को मैदान में उतारता है, बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा. वैसे चुनाव आने तक किस प्रकार का समीकरण बनता है, यह अभी बहुत स्पष्ट नहीं है. पर दोनों गंठबंधनों की ओर से सामाजिक आधारों को अपने-अपने पक्ष में करने की कोशिश की जा रही है.
कई टास्क अधूरे
ऐसा नहीं है कि अब तक विकास का कोई काम नहीं हुआ है. पिछले दस सालों में छोटे-बड़े कई काम हुए हैं. मुख्य सड़कें बनी हैं.अस्पताल एवं स्कूलों को अपना भवन मिला है. बिजली की स्थिति में सुधार आया है, लेकिन औद्योगिक विकास को लेकर कुछ विशेष नहीं हुआ.
यह क्षेत्र आज भी उद्योगविहीन है. लोग मूल रूप से खेती पर निर्भर है. कृषि के आधुनिकीकरण का प्रभाव भी नहीं के बराबर है. लिहाजा, युवाओं के पलायन की दर में कमी नहीं आयी है.
जानकारों का कहना है कि पहले की तुलना में कई मोरचे पर हालात बदले हैं. लेकिन इस बदलाव की गति को अब ऊंचाई देने की जरूरत है.खेती को बाजार से जोड़ने जरूरत बतायी जा रही है ताकि आर्थिक गतिविधियां तेज हों.