कौन बतायेगा अशोक पेपर मिल बंद है या चालू

अकराहा घाट के निकट करीब 400 एकड़ में फैला अशोक पेपर मिल रामेश्वरनगर की स्थापना 1957 में दरभंगा महाराज ने की़ उम्दा क्वालिटी के राइटिंग पेपर, क्राफ्ट पेपर सहित कई तरह के पेपर के लिए यह मशहूर था, लेकिन 1983 में मिल में उत्पादन बंद हो गया़ लड़ाई लेबर कोर्ट पहुंची. उच्चतम न्यायालय ने मिल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 8, 2015 12:10 AM

अकराहा घाट के निकट करीब 400 एकड़ में फैला अशोक पेपर मिल रामेश्वरनगर की स्थापना 1957 में दरभंगा महाराज ने की़ उम्दा क्वालिटी के राइटिंग पेपर, क्राफ्ट पेपर सहित कई तरह के पेपर के लिए यह मशहूर था, लेकिन 1983 में मिल में उत्पादन बंद हो गया़ लड़ाई लेबर कोर्ट पहुंची.

उच्चतम न्यायालय ने मिल को निजी कम्पनी को देने का आदेश दिया. 1977 में एनसीएफएल कम्पनी को करीब छह करोड़ में बेचा गया़ इसका भुगतान 16 किस्तों में होना था, मगर अब तक दो किस्त ही जमा किया गया है़ 2003 में मिल चालू करने के लिए आइडीबीआइ और यूडीआइ बैंक ने करीब 29 करोड़ रुपये.

इससे पहले फेज में मिल 18 माह चलनी थी. मजदूरों का बकाया भुगतान होना था, लेकिन न तो ठीक से मिल चली, ना ही मजदूरों का भुगतान हुआ. अलबत्ता स्क्रैप को निकालने का विरोध करने पर 10 नवम्बर 2012 को पुलिस की गोली से एक मजदूर पुत्र सुशील साह की मौत हो गयी.

तब से आज तक मिल न तो बन्द है न खुला हुआ़ मिल जिला प्रशासन के लिए सिरदर्द है. सरकार एवं स्थानीय नेता चुप्पी साधे हुए है़ं किसी के पास कोई जबाब नहीं है़ इस चुनाव में यहां की जनता हर नेता से केवल इस बारे में सवाल करने वाली है़

मिल भले कागज तैयार नहीं कर पा रही हो, पर दो विधायक व मंत्री जरूर बने

1977 के विधानसभा चुनाव में कफील अहमद कैफी अशोक पेपर मिल के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में कूदे, मगर हार गये. 1985 के चुनाव में दोनों यूनियन के नेता उमाधर प्रसाद सिंह और कफील अहमद कैफी आमने-सामने थे.

सिंह विधायक चुने गये. 1990 में कैफी ने जनता दल से टिकट पर उमाधर प्रसाद सिंह को हराया और मंत्री बऩे 1995 में मिल के ही मुददे पर उमाधर प्रसाद सिंह फिर चुनाव लड़े, मगर हरिनंदन यादव से हार गये.

2000 में सिंह न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के टिकट पर मिल के मुद्दे को लेकर फिर जीते. 2005 में पूर्व मंत्री कैफी के पुत्र व मजदूर पंचायत यूनियन के अध्यक्ष डॉ शाहनवाज अहमद कैफी चुनाव मैदान में उतरे, मगर हार गये. 2010 के चुनाव में डॉ कैफी लोजपा के टिकट लड़े और दूसरे स्थान पर रहे, मगर 2001 में वह हायाघाट से जिला पार्षद के चुनाव में भारी मतों से विजयी हुए़

मजदूरों की दुखती रग पर कोई नहीं लगा सके मरहम

हायाघाट प्रखंड के पश्चिमी विलासपुर गांव के साधारण परिवार में जन्मे स्व कफिल अहमद कैफी ने मजदूर नेता के रूप में कैरियर अशोक पेपर मिल से शुरू किया.1968 में अशोक पेपर मिल मजदूर पंचायत यूनियन के अध्यक्ष बने और मजदूरों के हक के लिए आवाज उठायी.

1977 में वह मिल के मुद्दे पर विस चुनाव लड़े, लेकिन हार गये. 1978 में उमाधर प्रसाद सिंह ने भी अशोक पेपर मिल कामगार यूनियन के नाम से अलग संघ बनाया. आज भी दोनों नेताओं को मजदूरों के परिजनों ने दिलों में बसा रखा है. मिल के मजदूरों की समस्या को लेकर दोनों ने विधानसभा तक का सफर तय किया़, लेकिन जमीनी तौर पर मजदूरों की दुखती रग पर कोई मरहम नहीं लगा सक़े

(इनपुट : दरभंगा से विनोद कुमार गिरि)

मैंने विधानसभा में मुद्दा उठाया

विधानसभा में मेरे ध्यानाकर्षण के जवाब में सरकार ने कहा कि मिल चालू है. इसपर मैंने विरोध जताया. प्रशासन सरकार को गुमराह कर रही है. पांच हजार मजदूर की जगह 20-25 काम कर रहे हैं. वह भी सिर्फ दिखावा के लिए. सुप्रीम कोर्ट में मामला है. इस पर बहुत ज्यादा करना भी संभव नहीं हो पा रहा है.

अमरनाथ गामी, विधायक, हायाघाट

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