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शुरू हुआ प्रचार, मिलने लगा रोजगार

पटना : यों चुनाव एक ऐसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जिसमें आम आदमी शामिल होकर अपनी सरकार बनाता है. चुनाव के दौरान प्राय: सभी पार्टियां नौजवानों को रोजगार देने ककी बात करती हैं. बेरोजगारी चुनाव का बड़ा मुद्दा भी होता है. लेकिन चुनाव प्रक्रिया के दौरान पार्टियों के प्रचार अभियान से बड़ी संख्या में नौजवानों को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 8, 2015 11:26 PM
पटना : यों चुनाव एक ऐसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जिसमें आम आदमी शामिल होकर अपनी सरकार बनाता है. चुनाव के दौरान प्राय: सभी पार्टियां नौजवानों को रोजगार देने ककी बात करती हैं.
बेरोजगारी चुनाव का बड़ा मुद्दा भी होता है. लेकिन चुनाव प्रक्रिया के दौरान पार्टियों के प्रचार अभियान से बड़ी संख्या में नौजवानों को रोजगार मिल जाता है. राजनीति पार्टियों के प्रचार अभियान में बड़ी धनराशि खर्च होती है. प्रचार के विभिन्न रूपों के साथ रोजगार के मौके भी पैदा होते हैं.
आधुनिक संचार माध्यमों को हैंडिल करने की बात हो या पोस्टर चिपकाने की, प्रचार गाड़ियों के संचालन का दायित्व हो या फ्लैक्स लगाने की. इस तरह के काम अब कार्यकर्ता नहीं करते.
उसकी जगह ले ली है काम कराने वाली एजेंसियों ने. ये एजेंसियां युवाओं को अपने साथ जोड़ती हैं और प्रतिदिन या साप्ताहिक के आधार पर पैसों का भुगतान करती हैं. दीवालों पर नारे लिखने में ऐसे नौजवानों का सहारा लिया जाता है. अब पेंट और कूची से दीवाल लेखन का दौर नहीं रहा. सो, इसके लिए फर्मा तैयार होता है. रंग और फर्मा के साथ दीवालों पर नारे उतारे जाते हैं.
राजनीतिक दलों का मानना है कि अब एक नारे के लिखने पर ज्यादा समय देने का दौर नहीं रहा. वह दौर दूसरा था जब दिन भर में मुश्किल दो-तीन नारे ही लिख जाते थे. अब दिन भर में दो-ढ़ाई सौ नारे दीवालों पर उतारे जाते हैं. इसके एवज में एजेंसी को भुगतान किया जाता है.
एक राजनीतिक पार्टी के प्रचार का काम संभालने वाली एजेंसी के अधिकारी ने कहा: हम कई तरह की सेवाएं देते हैं. उन सेवाओं के हिसाब से हमने लोगों अपनी टीम में रखा है. इसमें कॉलेज में पढ़ने वाले युवा भी शामिल हैं. काम के हिसाब से अलग-अलग लोगों को जिम्मेदारी दी जाती है. दूसरे जिलों में भी यहीं से नौजवानों को भेजा जाता है. संबंधित एजेंसी पारिश्रमिक के अलावा उनके रहने-खाने का इंतजाम करती है. साईं ट्रेडर्स चला रहे बबलू शर्मा ने बताया कि 2001 में प्रचार एजेंसी की शुरुआत की थी.
शुरुआत में तो बस कागज पर ही चुनाव से संबंधित गतिविधियों का इस्तेमाल होता था. लेकिन समय के साथ सब बदलता चला गया. अब एक हजार आयटम तक हमलोग बनाते है. इसमें हर तरह की चीजों को इस्तेमाल किया जाता है. उनके मुताबिक प्रचार का बड़ा बाजार विकसित हुआ है. इस काम में बड़ी संख्या में पार्ट टाइम करने वाले जुड़े हुए हैं.
हर ग्रुप में काम का बंटवारा
प्रचार में तकनीक का इस्तेमाल अब खूब हो रहा है. इसकी जरूरत के हिसाब से कार्य पद्धति विकसित की गयी है. ऐसे कई ग्रुप काम करते है जो अलग-अलग माध्यमों के जरिय प्रचार करते हैं. कोई एसएमएस और वाइस कॉल से राजनीतिक पार्टियों की मदद करने में लगा है, तो कोई एफबी-ट्विटर हैंडल कर रहा है.
ऑडियो-विजुअल का जमाना
कई उम्मीदवारों ने खुद पर केंद्रित ऑडियो-विजुअल बनवाया है. उसे गांव-गांव में लोगों को दिखाया जाता है ताकि उम्मीदवार की बात अधिक लोगों तक और प्रभावी तरीके से पहुंचायी जा सके. उम्मीदवारों पर डॉक्यूमेंट्री बनाने वाली एजेंसी पेशेवर अंदाज में काम करती है. प्रचार के इस तरीके को प्रभावी माना जा रहा है.

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