हर चीज कबाड़ नहीं, इनमें यादें बसती हैं

दक्षा वैदकर पिछले साल की बात है. त्योहार नजदीक आ रहे थे. अर्चना के घर में भी सफाई शुरू हो गयी थी. सभी भाई-बहन बिस्तर के नीचे, अलमारी के ऊपर और कई जगहों पर धूल खा रहे सामान निकाल कर बाहर रख रहे थे. तभी सभी को पुराने पीतल के ढेर सारे बर्तन, ड्रम, लकड़ी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 10, 2015 4:06 AM

दक्षा वैदकर

पिछले साल की बात है. त्योहार नजदीक आ रहे थे. अर्चना के घर में भी सफाई शुरू हो गयी थी. सभी भाई-बहन बिस्तर के नीचे, अलमारी के ऊपर और कई जगहों पर धूल खा रहे सामान निकाल कर बाहर रख रहे थे. तभी सभी को पुराने पीतल के ढेर सारे बर्तन, ड्रम, लकड़ी का झूला जैसी कई चीजें दिखीं.

सभी ने एक सुर में कहा, ये सारी चीजें जगह घेर रही हैं और घर में गंदगी फैला रही हैं. अब इन चीजों को रखने का कोई मतलब भी नहीं है. इन्हें कोई इस्तेमाल भी नहीं करता है. इन्हें कबाड़ी वाले को दे देना चाहिए.

ये सब सुन उनकी मां ने कहा कि रहने दो चीजें. मत दो, लेकिन सभी बच्चे सुनने को तैयार नहीं थे. उन्होंने सामान उठाया और बाहर जाने लगे. तभी मां फूट-फूट कर रोते हुए अपने कमरे में चली गयी. उनके पति भी उन्हें मनाने पीछे गये. बच्चे भी भाग कर वापस आये. उन्होंने मां को पिताजी से कहते सुना- तुम सभी के लिए ये सब कचरा है, गंदगी है, लेकिन मेरे लिए ये यादें हैं.

इन्हें जब-जब देखती हूं, मुझे मेरे माता-पिता की याद आती है. उन्होंने शादी के वक्त बहुत प्रेम से मुझे ये बर्तन दिये थे. ये उनकी निशानी हैं. इन बर्तनों में छोटे चम्मच, कटोरियां हैं, जिनसे मैंने अपने इन्हीं बच्चों को खाना खिलाया है. झूला है, जिसमें ये तीनों झूल कर बड़े हुए हैं. ये सारी चीजें मुझे जान से भी ज्यादा प्यारी है.

इनमें मेरे बच्चों का बचपन समाया है. वे आज भले ही बड़े हो गये हैं और मुझसे बहस करते हैं, लेकिन आज भी जब-जब सफाई के दौरान ये चीजें मुझे दिखती हैं, तो लगता है कि बच्चे दोबारा बच्चे बन गये हैं. मां की इन बातों को सुन बच्चों को अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्होंने वादा किया कि अब कभी भी इन चीजों को फेंकने का विचार मन में नहीं लायेंगे.

दोस्तों, साफ-सफाई के दौरान इस तरह की लड़ाई हर घर में होती है. बच्चे घर में पुरानी चीजें नहीं रखना चाहते, लेकिन वे भूल जाते हैं कि उन्हें भी किसी न किसी चीज से प्यार है ही. अपने बचपन का खिलौना हो या कोई पुस्तक. जब वे उन चीजों को संभाल कर रख सकते हैं, तो मां क्यों नहीं रख सकती?

daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

बात पते की..

– हर व्यक्ति का किसी न किसी चीज से जुड़ाव होता ही है. इसे हम नहीं समझ सकते. बेहतर है कि उनकी चीजों को उनके पास ही रहने दें.

– अभी आप माता-पिता नहीं बने हैं. न ही आपने संघर्ष कर इन चीजों को खरीदा था, इसलिए आपको इन चीजों की कीमत समझ नहीं आयेगी.

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