लगातार घट रही खेती की जमीन

विप्लव ढाक सहायक प्रोफेसर, एएन सिन्हा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल साइंस बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. राज्य में खनिज हैं नहीं. जमीन बहुत उपजाऊ है. इसलिए यहां बड़े उद्योगों की संभावना बहुत कम है. लेकिन, कृषि के विकास में दो चीजें बाधक बन रही हैं. पहला -प्रति व्यक्ति भूमि का कम होना. दूसरा- जनसंख्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 17, 2015 5:22 AM
विप्लव ढाक
सहायक प्रोफेसर, एएन सिन्हा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल साइंस
बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. राज्य में खनिज हैं नहीं. जमीन बहुत उपजाऊ है. इसलिए यहां बड़े उद्योगों की संभावना बहुत कम है. लेकिन, कृषि के विकास में दो चीजें बाधक बन रही हैं. पहला -प्रति व्यक्ति भूमि का कम होना. दूसरा- जनसंख्या का तेजी से बढ़ना.
बिहार में औसतन एक व्यक्ति के पास आधा हेक्टेयर से भी कम जमीन है. बिहार में आज भी 80 फीसदी से ज्यादा लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. उनके जीवनयापन का एकमात्र जरिया कृषि है. लेकिन, जमीन इतनी कम है कि सभी को रोजगार नहीं मिल पाता है. यहीं से शुरू होता है पलायन. बिहार में पलायन भी दो तरह का है. पहला-स्थायी पलायन. इसमें वैसे लोग हैं जो कहीं जाकर बस गये हैं और सिर्फ मिलने-जुलने के लिए आते हैं.
दूसरा-मौसमी पलायन. इसमें ज्यादातर वैसे लोग आते हैं जिनके पास कोई हुनर नहीं है या कोई छोटा मोटा काम जानते हैं. जब यहां पर रोजगार नहीं मिलता है, तब ऐसे लोग कमाने के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करते हैं. वहां वे खेती तथा निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करते हैं. उनका मुख्य उद्देश्य वैसे समय में पैसा कमाना होता है, जब यहां खेती का काम नहीं होता है या खेती में उन्हें काम नहीं मिल पाता है. ऐसे लोग तीन-चार माह के बाद लौट आते हैं. उनके आने-जाने का सिलसिला चलता रहता है.
इस तरह के अकुशल मजदूरों के पलायन का ट्रेंड बदला है. पहले ऐसे लोग कोलकाता या मुंबई जाते थे. अब पंजाब, हरियाण, गुजरात और दिल्ली जाने लगे हैं. ऐसे लोगों को असंगठित क्षेत्र में ही काम मिलता है. बिहार में पलायन के बढ़ने की मुख्य वजह है कृषि योग्य भूमि का कम होते जाना. इससे अर्थव्यवस्था पर बोझ भी बढ़ा है क्योंकि बढ़ती जनसंख्या ने कृषि को अनुत्पादक बना दिया है.
बिहार को विकास करने के लिए सबसे पहले प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादकता को बढ़ाना होगा. इसके लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है. बिहार में आज जन्मदर चार से ज्यादा है. जीवनयापन के लिए कृषि पर आधारित आबादी में यह और अधिक है. इसलिए गरीबी भी उसी आबादी के बीच ज्यादा है.
जिस तेजी से बिहार में जनसंख्या बढ़ी हैं, उसे देखकर तो लगता है कि यहां जनसंख्या नियंत्रण के सारे उपाय फेल कर गये हैं. इसके पीछे शिक्षा और जागरुकता बड़ी वजह है. बिहार आज भी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में कई राज्यों से पीछे है. महिला साक्षरता मात्र 51.50} है. यानी सौ में से 49 महिलाएं आज भी निरक्षर हैं. ऐसे में जनसंख्या पर नियंत्रण संभव नहीं है. जनसंख्या को कम करने के लिए महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ ग्रामीण समाज को जागरुक करने की भी जरूरत है.
एक बात और ध्यान देने की जरूरत है. कोई भी अर्थव्यवस्था सभी लोगों को रोजगार देने में सक्षम नहीं हैं. रोजगार की तलाश में लोग बाहर जाएंगे ही. लेकिन, बिहार के मामले में स्थिति कुछ और है. यहां अकुशल मजदूर रोजगार की तलाश में ज्यादा जाते हैं.
बिहार में भी दूसरे प्रदेश से लोग काम करने आते हैं, लेकिन यहां पर आपको दूसरे प्रदेश का मजदूर शायद ही मिले. लेकिन, पंजाब, हरियाणा से लेकर लेह, लद्दाक तक आपको बिहार के मजदूर मिल जाएंगे. इस ट्रेंड को बदलने की जरूरत है. इसके लिए जरूरी है सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले. अच्छी शिक्षा मिलेगी, तभी यहां से भी ट्रेंड लोग बाहर जाएंगे.

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