असंतोष नेपाल की अपनी समस्या है

आनंद स्वरूप वर्मा संविधान की घोषणा के बाद नेपाल से असंतोष एवं हिंसा की खबरें आ रही हैं. भारत एवं नेपाल में समान रूप से पढ़ी जानेवाली पत्रिका ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा इन दिनों काठमांडू में हैं और नेपाल के घटनाक्रम पर बारीक नजर रख रहे हैं. मौजूदा हालात पर उनसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 25, 2015 9:04 AM
आनंद स्वरूप वर्मा
संविधान की घोषणा के बाद नेपाल से असंतोष एवं हिंसा की खबरें आ रही हैं. भारत एवं नेपाल में समान रूप से पढ़ी जानेवाली पत्रिका ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा इन दिनों काठमांडू में हैं और नेपाल के घटनाक्रम पर बारीक नजर रख रहे हैं. मौजूदा हालात पर उनसे बातचीत की रंजन राजन ने.
– नेपाल के नये संविधान पर आपकी प्रतिक्रिया?
नेपाल में संविधान का बहुत दिनों से इंतजार था. वर्ष 2006 में जब माओवादियों के साथ शांति समझौता हुआ, तब एक अंतरिम संविधान बना और 2008 में गणराज्य की घोषणा के साथ यह तय किया गया था कि संविधान सभा के चुनाव के जरिये नेपाल को एक संविधान दिया जायेगा. संविधान सभा का चुनाव हुआ, पर पहली संविधान सभा में संविधान नहीं बन सका. फिर से चुनाव हुआ और दूसरी संविधान सभा के तहत जो संविधान बना है, वह काफी हद तक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य की प्रस्तावना को प्रतिनिधित्व देनेवाला है.
हम सभी लोग, जो नेपाल से बाहर के हैं, लोकतांत्रिक फोर्सेस हैं, इसका स्वागत करते हैं. भारत की ओर से नेपाल के तराई इलाकों में आकर बसे लोग इस संविधान से असंतुष्ट हैं. उनका कहना है कि उनकी भावनाओं को नहीं समझा गया और इसीलिए वे पिछले करीब डेढ़ माह से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
– संविधान तराई के लोगों को क्यों नहीं संतुष्ट कर पाया?
संविधान लेखन समिति में मधेसी समुदाय और मधेस केंद्रित पार्टियों के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया था. संविधान निर्माण में देश की तीन प्रमुख पार्टियां शामिल हैं- नेपाली कांग्रेस, नेकपा एमाले यानी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत माओवादी लेनिनवादी) और एनेकपा माओवादी पार्टी. इन तीनों प्रमुख पार्टियों को मिला कर दो-तिहाई बहुमत हो जाता है.
इसके नेताओं का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा मांगों को इसमें रखा गया है, लेकिन जहां तक सीमांकन (किन-किन इलाकों या जिलों को किन राज्यों में शामिल किया जाये), के संबंध में असंतुष्टि का मामला है, इन पार्टियों के नेताओं का कहना है कि इसके लिए वे एक आयोग का गठन करने को तैयार हैं और यह मसला इतना ज्यादा गंभीर नहीं है कि इसके विरोध में इतना बड़ा आंदोलन किया जाये.
– मौजूदा परिदृश्य में भारत की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
बहुत से लोगों का कहना है कि भारत का सत्तापक्ष इस मसले को हवा दे रहा है, क्योंकि भारत इस संविधान से संतुष्ट नहीं है. भारत की असंतुष्टि का पता इससे भी चलता है कि जिस दिन संविधान की घोषणा होनी थी, ठीक उसके एक दिन पहले विदेश सचिव जयशंकर नेपाल आये और नेताओं से मिल कर कहा कि जब तक मधेसियों की समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता, जब तक संविधान की घोषणा रोक देनी चाहिए. लेकिन इससे पहले संविधान सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर संविधान को घोषित कर दिया था. ऐसे में संविधान की घोषणा को रोकना संभव नहीं था.
इन पार्टियों के नेताओं ने जयशंकर की बात को मानने से इनकार कर दिया. प्रचंड ने तो यहां तक कहा कि यदि आपको यह बात कहनी ही थी तो आप 15 दिन पहले आये होते या अपनी टिप्पणी 15 दिन बाद करते. आप आज आकर हमसे क्या उम्मीद करते हैं कि हम नेपाल की जनता की आकांक्षा, नेपाल की संप्रभुता, इन सबके साथ खिलवाड़ करते हुए आपकी बात मान लें और संविधान की घोषणा नहीं करें.
दूसरी बात, जब से मोदीजी प्रधानमंत्री बने हैं, कई बार नेपाल आ चुके हैं. इस बीच विश्व हिंदू परिषद सरीखे भाजपा के आनुषंगिक संगठनों के अनेक नेता नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने के पक्ष में बयान देते रहे हैं. गृहमंत्री बनने से पहले राजनाथ सिंह भी कहते रहे हैं कि नेपाल यदि हिंदू राष्ट्र बन जाये, तो उन्हें खुशी होगी. अशोक सिंघल ने राजा ज्ञानेंद्र को हिंदू हृदय सम्राट की संज्ञा दी थी.
इन लोगों की इच्छा थी कि जब अपने देश में मोदी का शासन कायम हो गया है, तो नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाया जा सकता है. ये लोग चाहते थे कि नेपाल के संविधान से धर्मनिरपेक्षता शब्द को हटाया जाये. लेकिन नेपाल की जनता की आकांक्षा को देखते हुए संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्षता शब्द को बरकरार रखा और एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में ही नेपाल को बने रहने दिया. इससे भारत सरकार को परेशानी हो रही है.
– नेपाल में तराई इलाके में हिंसा से क्या संकेत उभर रहे हैं?
तराई इलाके में आंदोलन काफी हद तक अराजक हो गया है. हालांकि, जनता की मांगें बहुत हद तक जायज हैं, लेकिन वहां का नेतृत्व जनता की नजरों में भरोसेमंद नहीं समझा जा रहा है.
मधेसी नेता के रूप में वहां जो नेतृत्व कर रहे हैं, वे अविश्वसनीय हैं. ऐसे में आंदोलन जब अनायास अराजक हो जाता है, तो आंदोलनकारी पुलिस थानों पर हमला तक करने जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं. सरकार को इन स्थितियों से जिस संयम से निबटना चाहिए, वैसा नहीं हो रहा है. तत्काल बातचीत की बजाय वहां दमन और प्रतिरोध का सिलसिला शुरू हो गया. हालांकि, दोनों ओर से बातचीत की तैयारी हो रही है.
एक भारतीय के रूप में हमें यह समझना होगा कि यह नेपाली जनता की समस्या है और इसका समाधान भी नेपाल का नेतृत्व ही कर सकता है. दरअसल, भारत सरकार बिहार विधानसभा चुनावों तक नेपाल में संविधान की घोषणा नहीं होने देना चाहती थी, क्योंकि यदि बिहार में भाजपा जीत कर आयेगी, तो उसे मधेस को सामने रख कर हिंदू राष्ट्र या अन्य चीजों को संविधान में शामिल करवाने में आसानी हो सकती थी. ऐसा नहीं हो पाया है.
– असंतोष और हिंसा के बीच आगामी संभावनाएं क्या-क्या दिख रही हैं?
मधेस इलाके में हिंसा के दौरान 40 से अधिक लोगों की मौत होना बहुत ही दुखद है. यह आंदोलन के दौरान पुलिस की गोली से मारे जाने की घटना है, एथनिक हिंसा या दंगा नहीं है. इसे जिस तरह से नरसंहार के तौर पर बताया जा रहा है, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.
कुछ नेता इसे ‘एथनिक क्लिंजिंग’ बताते हुए कह रहे हैं कि इससे पूरे मधेस का सफाया हो जायेगा और हो सकता है आनेवाले दिनों में मधेसियों के लिए बिहार में शरणार्थी शिविर लगाने पड़ें. इस तरह के बयान गलत हैं. मुझे लगता है कि ऐसा रणनीति के तहत इसलिए कहा जा रहा है, ताकि इसमें विदेशी हस्तक्षेप हो और विदेश हस्तक्षेप का मतलब भारत के हस्तक्षेप से है.
भारतीय हस्तक्षेप का एक रूप दो-तीन दिन पहले दिखा, जब भारत की ओर से आर्थिक नाकेबंदी की खबर आयी. इसके खिलाफ सोशल मीडिया समेत अनेक मंचों पर नेपाल के लोगों ने अपना व्यापक विरोध दर्ज किया. आखिरकार भारत सरकार को बयान देना पड़ा कि किसी प्रकार की आर्थिक नाकेबंदी नहीं की गयी थी, महज सुरक्षा कारणों से कुछ वाहनों को रोक दिया गया था. कुल मिला कर मौजूदा दौर में भारत को अपनी ओर से कोई भी कदम बहुत सोच-समझ कर उठाना होगा, न कि उत्तेजना में.
संविधान सभा के अध्यक्ष सुभाष चंद्र नेमबांग
नेपाल में पूर्ण संविधान बनने की प्रक्रिया संविधान सभा के अध्यक्ष सुभाष चंद्र नेमबांग की अगुवाई में संपन्न हुई है. नेमबांग पहली संविधान सभा के भी प्रमुख रहे थे. संविधान सभा में विभिन्न पार्टियों के 601 सदस्य हैं और यह देश के संसद के रूप में भी काम करती है. इस प्रकार नेमबांग संसद के अध्यक्ष भी हैं. वे नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) से संबद्ध हैं. छात्र जीवन से ही सक्रिय राजनीति से जुड़े नेमबांग पेशे से वकील हैं.
वे 1990 के लोकतांत्रिक आंदोलन में प्रमुख युवा नेता के रूप में उभरे और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता और पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल के सानिध्य में मुख्यधारा की राजनीति से जुड़े. वर्ष 1990 के आंदोलन के बाद 1991 में और फिर 1999 में संसद के लिए निर्वाचित हुए. संसद में वे लोक लेखा समिति के प्रमुख और संसद के अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके हैं.
हालांकि पहली संविधान सभा के मुखिया के रूप में उनके कामकाज और रवैये की आलोचना भी खूब हुई, फिर भी वे सर्वसम्मति से दूसरी संविधान सभा के प्रमुख के रूप निर्वाचित होने में सफल रहे.
तमाम गतिरोधों और विवादों के बावजूद बहुदलीय संसद में एक संतुलित संविधान तैयार करा सकने में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है. उनके व्यक्तिगत योगदान को रेखांकित कर पाना आसान नहीं है, लेकिन उनके राजनीतिक जीवन और कार्यशैली में नरमी, नागरिकों के अधिकारों के प्रति उनका समर्पण और मतभेदों को सुलझाने की उनकी क्षमता की निश्चित ही संविधान-निर्माण की प्रक्रिया में बड़ी भूमिका रही है.
संविधान की खास बातें
– नेपाल में राजशाही खत्म होगी. राष्ट्रपति देश के संवैधानिक राष्ट्राध्यक्ष होंगे, जबकि कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री के पास होंगी.
– सत्ता का विकेंद्रीकरण होगा. केंद्र में संघीय सरकार होगी, जबकि प्रांतों में प्रांतीय सरकार होगी. जिला और ग्राम स्तर पर भी शासन व्यवस्था होगी.
– सात प्रांतों के राष्ट्र में बहुमत आधारित ‘सुधरा हुआ बहुदलीय प्रजातंत्र’ होगा. हालांकि राज्यों के नाम और सीमाएं अभी तय नहीं हैं. यह बेहद जटिल और विवादित मुद्दा है.
– 37 अध्यायों वाले संविधान में दो सदनों वाली संसद, एक सदन वाली विधानसभा और तीन स्तरीय – जिला, प्रांतीय और संघीय- न्यायपालिका का प्रावधान है.
– नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र होगा, जिसमें सभी धर्मों को स्वतंत्रता तो होगी, पर राष्ट्र का कर्तव्य सनातन धर्म और उसकी संस्कृति को बचाना होगा.
– नेपाली हिंदुओं की पूजनीय गाय राष्ट्रीय पशु होगी.
– नेपाली देश की राष्ट्रीय भाषा बनी रहेगी. हालांकि सभी जातीय भाषाओं को भी मान्यता दी गयी है और प्रांतीय सभाओं को अपनी आधिकारिक भाषा चुनने का अधिकार होगा.
– नेपाल में 100 से ज्यादा जातीय समूह और कई भाषाएं हैं. आरक्षण और कोटा व्यवस्था के जरिये वंचित, क्षेत्रीय और जातीय समुदायों के सशक्तिकरण की व्यवस्था भी की गयी है.
– संविधान में तीसरे लिंग यानी थर्ड जेंडर को भी मान्यता दी गयी है.

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