विष्णु कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को पहली चुनावी जनसभा को संबोधित करने बांका पहुंचे. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी कुछ बदले बदले से और बेहद सधे सधे से नजर आये. उनकी जुबान पर पूर्व की तरह न महादलित शब्द था और न ही यदुवंशी. यानी अपने गृहप्रदेश गुजरात के द्वारिका का उल्लेख करते हुए न तो उन्होंने यादवों से नाता जोड़ने की कोशिश की और न ही जीतन राम मांझी को सीधे तौर पर महादलितबताकरदलितों व महादलितों का स्वाभिमान जगाने की कोशिश की. बस की तो विकास, विकास और विकास की बात. अपने चीर प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार व लालू प्रसाद की जोड़ी का भी उन्होंने नाम लेना भी अपनी चुनावी रणनीति के तहत मुनासिब नहीं समझा.
मोदी की योजना और राजनीति को नया िट्वस्ट देने की कोशिश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक ही नहीं आलोचक भी कहते हैं कि वे अबतक देश के सबसे अतिसक्रिय प्रधानमंत्री हैं. इसलिए उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धियों से पहले ही बिहार में पांच चुनावी सभाएं परिवर्तन रैली के नाम से की. अपनी उन रैलियों में उन्होंने बहुत करीने से यदुवंशी, महादलित जैसे टर्म का प्रयोग किया व उनके सिपहसलारोंनेउन्हें देश का पहला ओबीसी प्रधानमंत्री भी घोषित कर दिया. यानीटीममोदी ने आरंभिक चरण में ही उस साध को साधने की कोशिश की, जिसे लालू प्रसाद आज साधने की कोशिश कर रहे हैं.
मोदी जानते हैं कि अब जातीय गणित में उलझने का लाभ नहीं है, बलि्क विकास की घुट्टी से ही काम चलाया जाये,जो बिहार में हर समुदाय के लिए काम करेगी और हर समुदाय को लुभाएगी भी. इससे मोदी हर समुदाय में अपनी पहुंच के अनुरूप सबको आकर्षित करेंगे. इससे चुनाव रणनीति के दूसरे चरण में उन्हें वोटों का जातीय आधार पर गोलीबंदीरोकने में भी मदद मिल सकती है, जिसका प्रथम दृष्टया लाभ तो भाजपा को ही हो सकता है.
क्या लालू ने बना दिया नरेंद्र मोदी का काम?
सवाल उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी का काम लालू प्रसाद यादव ने बना दिया है. लालू प्रसाद जाति की राजनीति के धुरंधर हैं. और, उन्हें हमेशा लगता है कि मुसलिम व यादव जैसे मजबूत आधार वोट बैंक के कारण जातीय गोलबंदी उन्हें लाभ दे जाता है. लेकिन, समय काफी आगे निकल चुका है और यह पुराना फार्मूला हमेशा लाभ नहीं देता. अब जाति के जुमले पर जीडीपी, ग्रोथ रेट, रेट कट और सेंसेक्स की उंचाई व गिरावटकई बार भारी पड़ती है. मोदी को संभवत: यह अहसास है कि लालू ने जिस तरह अपने जातीय समुदाय यादवों को बहुसंख्या में टिकट दिया और चुनावी जंग को अगड़ों व पिछड़ों की लड़ाई बता दिया है, इससे अगड़ों की गोलबंदी तो एनडीए के पक्ष में होगी ही, रामविलास पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, नंदकिशोर यादव, रामकृपाल यादव, हुकुमदेव नारायण यादव जैसे चेहरों के कारण पिछड़ी व दलित जातियों का एक इंद्रधनुष बनेगा, जो उनके अलग अलग इलाकों में इनके जातीय समुदाय को स्वाभाविक रूप से मोहित करेगा.
इग्नोर करने की राजनीति
नरेंद्र मोदी ने अाज अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का नाम नहीं लिया. और, न ही चंदन कुमार व भुजंग प्रसाद जैसे प्रतिकात्मक संबोधनों का प्रयोग किया. अंगरेजी शब्दकोश से एक शब्द उधार लें, तो इसे इग्नोर करने की राजनीति हम आप कहसकते हैं. यानी अपने प्रतिस्पर्धियों का महत्व कम करने के लिए उनका उल्लेख नहीं करेें या कम से कम करें. इस रणनीति का चतुर राजनेता हालात के मुताबिक ही उपयोग करते हैं.
जातिवाद नहीं विकासवाद का फार्मूला
पीएम नरेंद्र मोदी ने आज बिहार के लोगों को विकासवाद का फार्मूला दिया. उन्होंने कहा आपने सामंतवाद, पूंजीवाद, अलगावाद, फासीवाद, अहंकारवाद, वंशवाद देखा, लेकिन अब आपसे विकासवाद के आधार पर वोट देने की अपील करता हूं. उन्होंने कहा कि अब इसका समय आ गया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से नीतीश के लिए अहंकवाद व लालू के लिए वंशवाद का प्रयोग किया.
अब मुकाबला नीतीश व मोदी के विकास में
पीएम नरेंद्र मोदी ने अाज जब सिर्फ विकास की बात की है, तो जाहिर है उनके विकास के फार्मूल का मुकबला नीतीश के दस साल के विकास से होगा. नीतीश के दस साल के विकास को कोई खारिज नहीं करता है. सुशील मोदी सहित भाजपा के कई नेता नीतीश के खुद की साझेदारी वाले आठ साल के शासन की जय जय करते घुमते हैं. दूसरी बात यह कि नीतीश खुद विकास की बात करते हैं और चाहते हैं कि यही अहम चुनावी मुद्दा हो. उन्होंने बिहार की जनता को विकास के लिए सात वचन दिये हैं और कहा है कि मैं सातों वचन निभाउंगा. नीतीश ने 2025 के बिहार के लिए निजी विजन डाक्यूमेंट चुनाव की घोषणा से बहुत पहले जारी कर दिया है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार ने दो अंकों की ग्रोथ रेट हासिल की और विकास के कई सूचकांकों में सुधार आया.
ऐसे में नरेंद्र मोदी बेहर करीने से अपने विकास के एजेंडे को सामने रख रहे हैं. उन्होंने व उनकी पार्टी ने सबसे पहला हथियार बनाया है, पखवाड़े भर पहले आयी वर्ल्ड बैंक की उस रिपोर्ट को, जिसमें बिजनेस करने के लिए बिहार को 20वें पायदान से भी बाहर की जगह मिली है और बिहार के कोख से पैदा हुए झारखंड को तीसरा स्थान व मोदी के गृह राज्य गुजरात को पहला स्थान. मोदी ने इसका श्रेय झारखंड की जनता द्वारा राज्य में भाजपा सरकार को चुनने को दिया. उन्होंने अपनी सरकार के कुछ महत्वाकांक्षी विकास कार्यक्रमों मसलन जन धन योजना व बिहार पैकेज का उल्लेख किया. उनके आने से एक दिन पहले अरुण जेटली ने विजन डाक्यूमेंट जारी कर अपने राजनीतिक बॉस के लिए पिच तो पहले ही बना दी थी.