शारदीय नवरात्र पहला दिन : शैलपुत्री दुर्गा का ध्यान

मैं मनोवांछितलाभ के लिए मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करनेवाली, वृष पर आरूढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं. सर्व मंगलमयी मां -1 नवरात्र के अवसर पर सर्व मंगलमयी मां दुर्गा की उपासना भारतीय संस्कृति की गौरवमयी आधार पीठिका है. व्यापकता, लोकख्याति तथा उपयोगिता की दृष्टि से मां दुर्गा की उपासना विशेष चर्चित, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2015 6:50 AM

मैं मनोवांछितलाभ के लिए मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करनेवाली, वृष पर आरूढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं.

सर्व मंगलमयी मां -1

नवरात्र के अवसर पर सर्व मंगलमयी मां दुर्गा की उपासना भारतीय संस्कृति की गौरवमयी आधार पीठिका है. व्यापकता, लोकख्याति तथा उपयोगिता की दृष्टि से मां दुर्गा की उपासना विशेष चर्चित, रहस्यमयी तथा आलोच्य हो गयी है. पर अपने आध्यात्मिक आधार तथा विपुल आगम-शास्त्र-भाण्डार के कारण अतिरमणीय है. उपासनाके शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर तथा गाणपत्य, ये पांच संप्रदायों में क्रमशः शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य तथा गणपति को परम तत्व मान कर उपासना की जाती है. ऐश्वर्य व पराक्रमस्वरूप एवं इन दोनों को प्रदान करनेवाली मां दुर्गा की शक्ति नित्य के व्यावहारिक जीवन में आपदाओं का निवारण कर ज्ञान, बल, क्रियाशक्ति प्रदान कर, धर्म, अर्थ, काम की याचक की इच्छा से भी अधिक प्रदान कर जीवन को लौकिक सुखों से धन्य बना देती है. मां के उपासक का व्यक्तित्व सबल, सशक्त, निर्मल एवं उज्ज्वल कीर्ति से सुरभित हो जाता है तथा अलौकिक परमानन्द को प्राप्त कर मुक्ति का अधिकारी ङो जाता है. इसलिए देवी भागवत में कहा गया है-

ऐश्वर्यवचनः शश् चक्तिः पराक्रम एव च।

तत्स्वरूपा तयोर्दात्री सा शक्तिः परिकीर्तिता।।

ये महाशक्ति दुर्गा कौन हैं इस संबंध में देवर्षि नारदजी की जिज्ञासा को शांत करते हुए भगवान् नारायण ने कहा था कि देवी नारायणी शक्ति नित्या सनातनी ब्रह्मलीला प्रकृति हैं. तथा युक्तः सदाआत्मा च भगवान् तेन कथ्यते।। अग्नि में दहकता, चन्द्र तथा पद्म में शोभा और रवि में प्रभा की भाँति वह आत्मा से युक्त हैं, भिन्न नहीं. जैसे स्वर्ण के बिना स्वर्णकार अलंकार तथा मिट्टी के बिना कुम्हार कलश का निर्माण नहीं कर सकता, उसी प्रकार सर्वशक्तिस्वरूपा प्रकृति (दुर्गा) के बिना सृष्टिकर्ता सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकता.

इसलिए आचार्य शंकर की दृष्टि में इस महाशक्ति की उपासना हरि (विष्णु), हर (शिव) तथा विरिंचि (ब्रह्मा) सभी करते हैं. शिव शक्ति से (इ-शक्ति) युक्त होने पर ही समर्थ होते हैं. इ-शक्ति से हीन शिव मात्र शव रहते हैं. वे स्पंदनरहित हो जाते हैं. अतः नवरात्र के अवसर पर महाशक्ति स्वरूपिणी मां दुर्गा की आराधना करनी चाहिए. उनकी कृपा से मनुष्य की निश्चित अभीष्ट-सिद्धि होती है. प्रसिद्धि है- कलौ चण्डी विनायक- कलियुग में देवी चण्डी और गणेश प्रत्यक्ष फल देते हैं.

सर्व शाक्तमजीजनत-इस वेद-वाक्य के अनुसार समस्त विश्व ही शक्ति से उत्पन्न है. शक्ति द्वारा ही अनेत ब्रह्मांडों का पालन, पोषण और संहारादि होता है. ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अग्नि, सूर्य, वरूण आदि देव भी उसी शक्ति से संपन्न होकर स्व-स्वकार्य करने में सक्षम होते हैं. प्रत्यक्षरूप से सब कार्यों का कारण रूपा भगवती दुर्गा ही हैं-

(क्रमशः) प्रस्तुति-डॉ.एन.के.बेरा

Next Article

Exit mobile version