शारदीय नवरात्र : चौथा दिन, कूष्माण्डा दुर्गा का ध्यान

रुधिर से परिलुप्त एवं सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों कर कमलों में धारण करनेवाली कूष्माण्डा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों. सर्व मंगलमयी मां मां के आदेश से ब्रह्मा, विष्णु, महेश विमानद्वारा स्थानांतर में-स्वर्ग सदृश प्रदेश में पहुंच गये. यहां त्रिदेवों ने विमानस्थिता अम्बिका को देखा. वहां स्वर्ग के समस्त देवों को देख कर सभी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2015 3:25 AM
रुधिर से परिलुप्त एवं सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों कर कमलों में धारण करनेवाली कूष्माण्डा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों.
सर्व मंगलमयी मां
मां के आदेश से ब्रह्मा, विष्णु, महेश विमानद्वारा स्थानांतर में-स्वर्ग सदृश प्रदेश में पहुंच गये. यहां त्रिदेवों ने विमानस्थिता अम्बिका को देखा. वहां स्वर्ग के समस्त देवों को देख कर सभी विस्मित हो गये. क्रमशः विमान ब्रह्मलोक, कैलास तथा वैकुण्ठधाम में पहुंचा. यहां उन्हें अन्य ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर दिखे. विस्मित त्रिदेव जब विमान से क्षीर सागर में गये, तो उन्हें कान्ति में करोड़ों लक्ष्मियों से भी अधिक सुन्दरी श्री भुवनेश्वरी देवी के दर्शन हुए. उन सहस्रनयना, सहस्रकरसंयुक्ता, सहस्रवदना, रम्या देवी को देख कर विष्णु के मन में ऐसा विचार आया :
एषा भगवती देवी सर्वेषा कारणं हि नः।
महाविद्या महामाया पूर्णा प्रकृतिरव्यया।।
सर्वबीजमयी ह्येषा राजते साम्प्रतं सुरौ।
विभूतयः स्थिताः पार्श्वे पश्यतां कोटिशः क्रमात् ।।
यही भगवती हम सभी की कारण रूपा हैं. यही देवी महाविद्या, महामाया पूर्ण प्रकृति तथा अव्यया हैं. वही वेदगर्भा विशालाक्षी आदि सब देवियों की भी आदि रूपा ईश्वरी हैं. प्रलयकाल में संसार का संहार कर सब प्राणियों के लिंग देह को आत्मसात् करके यही भगवती अकेली ही क्रीड़ा करती हैं. यह इस समय सर्वबीजमयी स्वरूप में सुशोभित हैं. यही देवी मूल प्रकृति के रूप में पुरुष के सहयोग से ब्रह्माण्ड की रचना करती हैं. (क्रमशः)
प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा

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