शारदीय नवरात्र : पांचवां दिन
स्कंदमाता दुर्गा का ध्यान जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वे यशस्विनी दुर्गादेवी स्कंदमाता सदा कल्याणदायिनी हो. सर्व मगलमयी मां ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर ने क्षीरसागर में भगवती श्री भुवनेश्वरी देवी के दर्शन किये. उनके दर्शन से श्रीविष्णु ने अपने अनुभव से निश्चय किया कि यह […]
स्कंदमाता दुर्गा का ध्यान
जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वे यशस्विनी दुर्गादेवी स्कंदमाता सदा कल्याणदायिनी हो.
सर्व मगलमयी मां
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर ने क्षीरसागर में भगवती श्री भुवनेश्वरी देवी के दर्शन किये. उनके दर्शन से श्रीविष्णु ने अपने अनुभव से निश्चय किया कि यह अंबा है. तब उन्होंने ब्रह्मा और महेश्वर से कहा-
क्वाहं वा क्व सुराः सर्वे रम्भाद्दाः सुरयोषितः ।
लक्षांशेन तुलामस्या न भवामः कदंचन ।।
सैषा वरांगना नाम या वै दृष्टा महार्णवे ।
बालभावे महादेवी दोलयतीव मां मुदा ।।
शयानं वटपत्रे च पयंके सुस्थिरे द्दृढ़े ।
पादागुष्ठं कृत्वा निवेश्य मुखपकंजे ।।
श्रीविष्णु ने कहा, हम देवता और रंभा आदि देवांगनाएं कोई भी इन अंबिका की तुलना में इनका लक्षांश भी समानता नहीं कर सकते. इन्हीं सुंदरी को मैंने उस महासागर में उस समय देखा था जब महादेवी मुझ बालक को झूला झुला रही थीं.
उस समय बड़ के पत्ते पर (जो मेरे लिए पलंग रूप में लेटा हुआ था) मैं अपने पांव के अंगुठे को अपने मुख कमल में लेकर चूस रहा था. मैं उस बट पर लेटा हुआ ही चेष्टाओं द्वारा क्रीड़ा करता था़. उस समय मेरे अंग कोमल थे. उस समय यह मंगलमयी मां मुझे झुलाती हुईं लोरिया गाती थीं. इनके दर्शन करके अब मुझे वे सब बातें याद आ रही हैं. यथार्थ में यही मेरी सर्व मंगलमयी मां है.
यह कहकर जनार्दन भगवान विष्णु ने कहा कि चलो इनको बारंबार प्रणाम करते हुए हम त्रिदेव इनके समीप चलें. हमें निर्भय भाव से इनके चरणों के निकट पहुंच कर स्तुति करनी चाहिए़ यह वरदायिनी देवी हमलोग को वर प्रदान करेंगी.
(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा