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देवघर की बबीता के विदेशों में भी डंके

देवघर: जर्मनी, नेपाल व बांग्लादेश में भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाली स्वयंसेवी संस्था देवघर प्रवाह की प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर बबीता सिन्हा आज परिचय की मोहताज नहीं हैं. वुमेन इंपावरमेंट (महिला सशक्तीकरण) को प्राइम एजेंडे में शामिल करनेवाली बबीता सिन्हा के लिए वे सभी महिलाएं प्रेरणास्नेत हैं, जो सोसाइटी के फ्रेम वर्क रोल को तोड़ कर बाहर निकलती […]

देवघर: जर्मनी, नेपाल व बांग्लादेश में भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाली स्वयंसेवी संस्था देवघर प्रवाह की प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर बबीता सिन्हा आज परिचय की मोहताज नहीं हैं. वुमेन इंपावरमेंट (महिला सशक्तीकरण) को प्राइम एजेंडे में शामिल करनेवाली बबीता सिन्हा के लिए वे सभी महिलाएं प्रेरणास्नेत हैं, जो सोसाइटी के फ्रेम वर्क रोल को तोड़ कर बाहर निकलती हैं. एजुकेशनल बैक ग्राउंड सोशल वर्क होने से इनकी जेहन में सोसाइटी के विकास का जज्बा है. देवघर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वावलंबन के क्षेत्र में लगातार काम कर महिलाओं को काफी सशक्त किया है.

बबीता ने कहा कि कोलकाता छोड़ कर वर्ष 2007 में देवघर में स्वयंसेवी संस्था से जुड़ीं. स्थानीय दिक्कतों को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को जागरूक व सशक्त करने का बीड़ा उठाया. बंगाल के लोगों का तेवर विद्रोही है, लेकिन झारखंड में कल्चर ऑफ साइलेंस बहुत ज्यादा है. ऐसे में शुरुआती दौर में समाज में व्याप्त कुप्रथा तोड़ने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

इस क्षेत्र में शिक्षा का बहुत बड़ा खालीपन है. महिलाएं पहले से ही अपने अधिकारों से वंचित हैं. ऊपर से अशिक्षा उनके विकास व आगे बढ़ने में काफी मुश्किलें पैदा करती हैं. बावजूद इसके वर्तमान समय में महिलाओं में काफी बदलाव आया है. उदाहरण के लिए आज महिलाएं बेङिाझक घरों से बाहर निकल रही हैं. उनके व्यवहार, विचार, आचरण में काफी बदलाव आया है. मेरे काम में मेरे परिवार के सदस्यों का पूरा सहयोग मिल रहा है. पिता अदालत प्रसाद सिन्हा का कोलकाता में ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है. मां लाइची देवी गृहिणी हैं. बबीता ने स्नातक कोलकाता से किया. एम-फिल की डिग्री आंध्र विश्वविद्यालय से वर्ष 2009 में हासिल की.

पुरुषों को भी सशक्त करने की जरूरत
बदलते परिवेश में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को सशक्त करने की जरूरत है. पुरुषों को यह समझना होगा कि महिलाएं इस्तेमाल की चीज नहीं होती है. नैतिक शास्त्र पढ़ा कर किसी का मोरल बुस्ट-अप नहीं किया जा सकता है, लेकिन मोरल साइंस कोर्स में शामिल कर सकते हैं. इसके लिए भारत के एजुकेशनल सिस्टम में बदलाव की काफी जरूरत है. हमें यह सोचना होगा कि हम अपने बच्चों को टेक्नोलॉजी देने के चक्कर में कुछ ऐसी टेक्नोलॉजी को ट्रांसफर तो नहीं कर रहे हैं, जो न सिर्फ बच्चों के लिए विषाक्त होगा, बल्कि समाज को भी प्रभावित करेगा. इस पर भी हमलोगों को अनिवार्य रूप से विचार करने की जरूरत है.

फूड सिक्यूरिटी जरूरी
जर्मनी में वर्ष 2010 में आयोजित ग्लोबल फोरम पर फूड सिक्यूरिटी डेवलपिंग कंट्री के लिए क्यों जरूरी है, इस मुद्दे पर लोगों को समझाया. सरकार के सब्सिडी प्लान के बारे में भी ग्लोबल फोरम पर प्रतिनिधियों को बताया. वर्ष 2011 में नेपाल में आयोजित सेमिनार में कम्युनिटी को सशक्त करने के बारे में देश-दुनिया को बताया. उन्होंने कहा कि विदेश में भारत का प्रतिनिधित्व करना मेरे लिए गौरव की बात है.

कॉलेज से शुरू हुआ सोशल वर्क
कॉलेज के जमाने से ही बबीता को सोशल वर्क से लगाव रहा है. पहले कोलकाता में कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मूलत: स्लम एरिया, कुम्हारों के उत्थान व पारंपरिक आर्ट एंड हैंडीक्राफ्ट कार्यक्रम के साथ मिल कर काम किया. इसके अलावा कोलकाता के रेड लाइट एरिया में रिहैबिलिटेशन (पुनर्वास) पर काम किया.

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