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‘कश्मीर का हल किए बिना अमनचैन नहीं’

ब्रजेश उपाध्याय बीबीसी संवाददाता, वॉशिंगटन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने राष्ट्रपति ओबामा के साथ मुलाक़ात के दौरान कश्मीर समस्या के हल में मध्यस्थता की मांग की है और साथ ही नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करने के लिए एक प्रभावी रणनीति अपनाए जाने की बात की है. मुलाक़ात के बाद पाकिस्तान और अमरीका की […]

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने राष्ट्रपति ओबामा के साथ मुलाक़ात के दौरान कश्मीर समस्या के हल में मध्यस्थता की मांग की है और साथ ही नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करने के लिए एक प्रभावी रणनीति अपनाए जाने की बात की है.

मुलाक़ात के बाद पाकिस्तान और अमरीका की तरफ़ से जारी साझा बयान में कहा गया है कि दोनों ही नेताओं ने नियंत्रण रेखा पर बढ़ते तनाव पर चिंता जताई और भारत पाकिस्तान के बीच आपसी विश्वास बढाने और नियंत्रण रेखा पर दोनों ही पक्षों को स्वीकार्य एक कारगर तरीके को अपनाने की बात की.

बयान में ये भी कहा गया है कि पाकिस्तान लश्करे तैबा समेत उन सभी चरमपंथी गुटों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र आतंकवादी संगठन करार दे चुका है.

मुलाक़ात के बाद मीडिया से बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कश्मीर का हल किए बिना इलाके में अमनचैन नहीं कायम हो सकता है.

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उनका कहना था, “कश्मीर के मसले के हल के लिए कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं हो रही तो ऐसे में एक तीसरी कुव्वत को एक किरदार अदा करना चाहिए. अगर भारत इसे नहीं स्वीकार करता है तब तो ये एक अवरोध होगा.”

नियंत्रण रेखा पर बढ़े हुए तनाव की बात करते हुए उन्होंने कहा कि एक ऐसी मैकेनिज़्म की ज़रूरत है जो ये देख सके कि किसकी तरफ़ से हमला पहले किया गया.

उनका कहना था, “नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम का बेहद बुरी तरह से उल्लंघन किया गया है.”

उन्होंने कहा कि भारत के साथ शांति बनाने के लिए उन्होंने भरपूर कोशिश की लेकिन भारत ने एकतरफ़ा फ़ैसला करते हुए बातचीत रोक दी.

नवाज़ शरीफ़ के दौरे पर ये भी कहा जा रहा था कि वो पाकिस्तान में एक लोकतांत्रिक नेता के तौर पर बेहद कमज़ोर पड़ चुके हैं और वही कहेंगे जो फ़ौज उनसे कहेगी.

उसके जवाब मे उनका कहना था, “पाकिस्तान में लोकतंत्र को कोई ख़तरा नहीं है और लोकतांत्रिक संस्थाएं बेहद मज़बूत हुई हैं.”

जैसा कि अंदाज़ा था इस मुलाक़ात के बाद कोई बड़े एलान नहीं हुए हैं लेकिन व्हाइट हाउस की तरफ़ से कोई ऐसा बयान भी नहीं आया है जो रिश्तों मे खटास पैदा करे.

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अफ़गानिस्तान में तालिबान को बातचीत के लिए राज़ी करने और पर बात हुई है और पाकिस्तान के परणाणु कार्यक्रम का भी साझा बयान में ज़िक्र किया गया है.

बुधवार को विदेश मंत्री जॉन केरी के साथ मुलाक़ात के दौरान ये ज़रूर कहा गया कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ पाकिस्तान को और कदम उठाने की ज़रूरत है.

उसके जवाब में पाकिस्तानी विदेश सचिव ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा: “ पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ बहुत कुछ कर चुका और कर रहा है. अब जो करना है वो दुनिया को करना है.”

उसी मुलाक़ात में पाकिस्तान का कहना है कि उन्होंने अमरीकी विदेश मंत्री को तीन दस्तावेज़ भी सौंपे जिसमें भारत के ख़िलाफ पाकिस्तान में गड़बड़ी फैलाने के सबूत हैं.

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