राहुल सिंह
वैशाली जिले में पड़ने वाले राघोपुर विधानसभा क्षेत्र को आप बिहार का अमेठी कह सकते हैं. इस सीट से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद व उनकी पत्नी राबड़ी देवी चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते रहे हैं. पर, बिहार की राजनीति में नीतीश युग के आगमन के साथ शेष बिहार की तरह ही राघोपुर पर भी लालू के कुनबे की पकड़ ढीली होती गयी. इसके बावजूदलालूऔर उनके परिवार का मोह इस सीट से बना रहा है.पिछली बार राबड़ीदेवी को यहां से जदयू के सतीश कुमार के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा था और इस बार जदयू का समर्थन प्राप्त लालू ने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादवको यहां से उम्मीदवार बनाया है और उनकामुकाबला उन्हींस्वजातीय सतीश कुमार से है, जोजदयूसे टिकट कटनेके बाद अब भाजपाकेटिकटपर एनडीए के उम्मीदवार हैं.
जातीय समीकरण और वोटों के बिखराव से जुड़ी हैं उम्मीदें
चारों ओर गंगा से घिरे राघोपुर में यादव वोट सर्वाधिक हैं. यादवों के बाद यहां राजपूत, पासवान व रविदास अहम वोट बैंक हैं. यहां मुसलिम वोट बैंक प्रभावशाली नहीं है. 2010 के विधानसभा चुनाव में यहां पर जदयू के सतीश कुमार को 64 हजार वोट मिले थे, जबकि राजद की राबड़ी देवी को 51 हजार वोट मिले थे. वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां लोजपा अध्यक्ष व एनडीए उम्मीदवार रामविलास पासवान को 63 हजार वोट मिले, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 55 हजार व जदयू के रामसुंदर दास को लगभग 15 हजार. अगर आज के हालात में इन वोटों को गंठबंधनों के आधार पर जोड़ें तो उस समय का यह वोट 63 हजार बनाम 70 हजार होता है. कहा जाता है कि उस समय यादव वोटकांग्रेसके पक्ष में एकजुट थेऔरजदयूकोअनुसूचितजाति के वोट मिले थे. लेकिन, आजहालातबदल गये हैं. यहांकेदोनों प्रमुख उम्मीदवार यादव हैं और जीतन राम मांझी केपालाबदललेनेके बाद अनुसूचितजाति के वोटों कागणित भी बदलसकताहै. यानी लड़ाई कांटे की. महागंठबंधन खेमा को जहां एक अन्य राजपूत उम्मीदवार से राजपूत वोटों के बिखरने की उम्मीद है, वहीं एनडीए खेमा लालू के इस पुराने गढ़ में उनके रिश्तेदारमुलायमसिंह यादव के प्रभाव से उम्मीदें पाले हुए है. इस सीट से कुल 21 उम्मीदवार मैदान में हैं.
भौगोलिक स्थिति
हाजीपुर जिले का यह इलाका एक आम शहरी आदमी के लिए दुर्गम और खूबसूरत है. राजधानी पटना से सटेराघोपुर के आवागमन के लिए नौका अनिवार्य साधन है या फिर नेताजी की तरह हेलीकॉप्टर से सीधे आकाश से लैंड कीजिए और फिर उड़ जाइए. राघाेपुर ब्लॉक भी है, लेकिन मूल रूप यह एक गांव का नाम है और राघोपुर व पहाड़पुर दोनों गांव सटे हुए हैं. सड़कों की मौजूदगी नजर आती है, भले ही वे बहुत अच्छी न हों. इस क्षेत्र की तुलना कुछ मीडिया रिपोर्ट में श्रीलंका से की गयी है, लेकिन कुछ हद तक यह बंगाल कासुंदरवन जैसा भी है. ऐसे में यहां जल पर्यटन की असीम संभावना नजर आती है.
वैशाली जिले में पड़ने के कारण एक सामान्य धारणा यह बनती है कि यहां हाजीपुर से पहुंचनाआसान होगा, लेकिन हाजीपुर की तुलना में यहां पटना से जाना कहीं अधिक आसान है. पटना हावड़ा रेल लाइन पर पटना स्टेशन से 17 किमी दूर बंका घाट स्टेशन पर उतर कर और फिर नाव से कच्ची दरगाह पर उतर कर वहां से ऑटो से राघोपुर जाया जा सकता है. जबकि हाजीपुर से हाजीपुर महनार रोड पर मुख्य शहर से 15 से 17 किमी की दूरी तय करने के बाद चौकासन व अन्य जगहों से नाव से राघोपुर पहुंचा जा सकता है.
राघोपुर विधानसभा क्षेत्र का मुख्य इलाका गंगा की गोद में बसे राघोपुर क्षेत्र में पड़ता है, लेकिन गंगा के उस पार बिदुपुर ब्लॉकजो हाजीपुरमहनार रोड परस्थित है व अन्य हिस्से भी राघोपुर विधानसभा क्षेत्र में आते हैं. यह संवाददाता हाजीपुर-महनार मुख्यमार्ग पर मौजूद चौकासन के जिमदारी घाट से शाम चार बजे के आसपास नाव से गंगा पार करता है और फिर वहां से शाम के धुंधलके में ऑटो से राघोपुर व पहाड़पुर पहुंचता है. राघोपुर व पहाड़पुर को कस्बा कतई नहीं कहा जा सकता है, यह बिल्कुल गांव हैं, जहां आपको नास्ते, किराने व कपड़े की कुछ दुकानें मिल जायेंगी.
रात में एक शख्स से यह पूछने पर की क्या यहां बिजली नहीं आती, वह तुरंत जवाब देता है : बिजली है न वो (दुकान की ओर इशारा करते हुए) क्या जल रहा है. यानी वोल्टेज इतना कम कि सहज ही यह अहसास नहीं होता कि यह बिजली है, बल्कि यह लगता है कि सोलर लाइट, बैट्री या जेनेरेटर की लाइट है. स्थानीय लोग इलाके में स्कूल, कॉलेज होने की बात कहते हैं. इलाज के लिए लोगों को कच्ची दरगाह जाना पड़ता है और ज्यादा तबीयत बिगड़े तो देर रात भी नाव से ही पार कर पटना या हाजीपुर जाना होगा.
विकास से ज्यादा जाति अहम
राघोपुर के लोग रोजगार के लिए खेती और दूध पालन पर मूल रूप से निर्भर हैं. रूस्तमपुर के शंकर राय बंका घाट दुग्ध विक्रेता संघ के अध्यक्ष हैं और बताते हैं कि यहां के लोग दूध व उसके उत्पाद तैयार करते हैं और हम उनके लिए पटना में बाजार. कुछ लोग नाव पार कर पटना भी कमाने जाते हैं, तो कुछ हाजीपुर की ओर भी नौकरी करने जाते हैं. उसी तरह यहां भी सरकारी नौकरी करने वाले लोग आते हैं. इस दियारा इलाके में मक्का व गेहूं की ही मूल रूप से खेती होती है, हालांकि इस उर्वर भूमि पर धान व दूसरी फसल भी किसान लगाते हैं, लेकिन गंगा का कटाव किसानों व स्थानीय लोगों के लिए बड़ी समस्या है और मुद्दा भी. पर, लोग इसे प्राकृतिक मान कर संतोष कर लेते हैं, लेकिन गंगा पर पुल की चाह जरूरव्यक्त करते हैं.
चुनाव के एलान के पहले नीतीश कुमार सरकार ने यहां प्रस्तावित पुल का शिलान्यास किया है. नाव की सेवा अहले सुबह से लेकर रात नौ बजे के आसपास तक दोनों ओर से मिलती है. इस इलाके में सरकारी नौकरी करने वाले भी यहां नाव से डेली आते जाते हैं.और, सड़क पर उनका सहारा मोटरसाइकिल या ऑटो बनता है. लेकिन बारिश के दिनों में खतरा बढ जाता है. नाविकों द्वारा अधिक कमाई किये जाने के लोभ में व्यस्त समय में चलने वाले हर नाव को ओवरलोड किया जाता है और यह उस पर सवारी करने वाले हर आदमी की जान के लिए बड़ा खतरा होता है, खासकर वैसे लोगों के लिए जिन्हें तैरना नहीं आता है. कच्ची दरगाह वाले साइड में छह महीने जनवरी से जून तक पीपा पुल रहता है, जिसे लालू समर्थक उनकी देन बताते हैं, पर वे यह नहीं बताते कि लालू-राबड़ी यहीं से चुन कर जब मुख्यमंत्री बने तो उनके 15 साल के शासन में यहां स्थायी पुल क्यों नहीं बना.
यहां सब लालटेन है…
रांची में रहकरड्राइवरीकरने वाले इस इलाके केयुवा मनोज कुमार राय से मुलाकात होती है और उनसे पूछने पर कि यहां किसकी चुनावी हवा है, कहते हैं : यहां सब लालटेन है. वे यहां के जातीय समीकरण को भी समझाते हैं और लालू के बयान की भी चर्चा करते हैं. दूसरे युवा भी कुछ ऐसी ही बात कहते हैं. लेकिन एक ऐसे शख्स से भी मुलाकात होती है, जो नीतीश कुमार के अच्छे कामकाज का प्रशंसक है, लेकिन भाजपा को वोट देने की बात यह कहते हुए कहता है कि नीतीश जी अकेले लड़ते तो ठीक रहता, लालू जी से मिल लिये हैं, तो फिर से जंगलराज आ जायेगा.
रात के अंधेरे में उस अंजान व ग्रामीण इलाके में भय नहीं लगता है और लोग काफी मददगार व मिलनसार नजर आते हैं. रास्ता बताने व गाड़ी में सीट देेने को भी तैयार व पत्रकार के रूप में परिचय देने पर नाव वाले को पैसा देने से भी रोकना उनकी आत्मीयता को ही तो बताता है. भाजपा को वोट देने की बात कहने वाला शख्स के बातचीत से लगता है कि उस शख्स का निजी जुड़ाव सतीश कुमार से है और वे जहां, वहां उनका वोट. वह शख्स कहता है कि पहले इधर आने पर लोग लुट जाते, लेकिन नीतीश ने सब अपराधियों को जेल में भर कर बड़ा काम किया. यानी वह तबका जो भाजपा के साथ जा रहा है, वह भी नीतीश का कायल है.
चौकासन से नाव पार करते हुए एक बुजुर्ग दशरथ राय से यह पूछने पर कि किसकी हवा है, कहते हैं नीतीशे के, अब तो लालू जी भी हुनकरे साथ हैं ना. चनपुरा के मनोहर राय किसी के पक्ष में गोलबंदी की बात तो नहीं कहते हैं, लेकिन अटल जी के कामकाज की वे तारीफ करते हैं और चाहते हैं कि पुल, बिजली, सड़क की सुविधा हो. फतेहपुर के गोन्नी राय कटाव के कारण पहाड़पुर चले आने की बात कहते हैं. नाव यात्रा के ही दौरान चार विधानसभा क्षेत्र के 50 गांवों की चुनाव यात्रा पर निकले एक एनजीओ के पांच-छह कार्यकर्ताओं से भेंट होती है, तो इस संवाददाता का अनुभव पूछने के साथ ही वे अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि विकास से बहुत मतलब नहीं नजर आता, लोग ठहराव व स्थिरता पसंद हैं. और, हो सकता है कि विकास के जो मौजूदा माॅडल हैं उनसे इनकाभला भीनहीं हो.