मोदी के चक्रव्यूह में घिरती जा रही है कांग्रेस
मोदी अपनी आक्रामकता से कांग्रेस के जख्म को भरने नहीं दे रहे हैं. वे लगातार अपनी बातों से कांग्रेस को घेर रहे हैं. कांग्रेस के लोकप्रिय नेता, अनुभवी नेता जो कि मोदी के सवालों का जवाब देने में सक्षम हैं, उन्हें नेपथ्य में रखा गया है, जिसके कारण कांग्रेस घिरती जा रही है. मोदी लगातार […]
मोदी अपनी आक्रामकता से कांग्रेस के जख्म को भरने नहीं दे रहे हैं. वे लगातार अपनी बातों से कांग्रेस को घेर रहे हैं. कांग्रेस के लोकप्रिय नेता, अनुभवी नेता जो कि मोदी के सवालों का जवाब देने में सक्षम हैं, उन्हें नेपथ्य में रखा गया है, जिसके कारण कांग्रेस घिरती जा रही है. मोदी लगातार अपने भाषणों से कांग्रेस विरोधी माहौल बना रहे हैं.
मनीषा प्रियम
राजनीतिक विश्लेषक
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी जिस तरह से देश के अलग-अलग राज्यों में लगातार रैलियों को संबोधित कर रहे हैं और उनमें जिस तरह से भीड़ उमड़ रही है, उससे साफ जाहिर होता है कि वे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो रहे हैं. यही नहीं, मोदी अपने भाषणों में गांधी परिवार पर जोरदार हमले भी कर रहे हैं. मोदी की रैलियों में उमड़ रही भीड़ को देख कर कहा जा सकता है कि वे देश में कांग्रेस विरोधी माहौल बनाने में कामयाब हो रहे हैं. भाषणों से साफ लगता है कि वे एक मंझे हुए राजनेता है और कांग्रेस पर हमले कर उसकी घेराबंदी करने में सफल हो रहे हैं.
लेकिन कांग्रेस विरोधी मूड और इस मूड के कारण कांग्रेस को हो रहे वोट के नुकसान का कितना फायदा मोदी या उनके दल भाजपा को होगा, इस विषय में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. कांग्रेस विरोधी मूड बनेगा तो स्वाभाविक रूप से अन्य दलों को भी इसका फायदा मिलेगा. मत कितना आयेगा, और कितना बंटवारा होगा, इसके संबंध में सिर्फ संभावना ही व्यक्त की जा सकती है, अभी से पुख्ता तौर पर कुछ कहना ठीक नहीं होगा. यह कहा जा सकता है कि रैली में जो लोग आते हैं, उनमें पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही बड़ी संख्या में ऐसे लोग शामिल होते हैं जो पहले ही किसी विषय पर अपनी धारणा रखते हैं, विचार बनाये हुए होते हैं, उनकी अपनी सोच होती है, और उसी सोच से मिलती जुलती बातों का प्रकटीकरण जब वे नेता के भाषणों में देखते हैं, तो उनका विचार दृढ हो जाता है. मोदी स्थानीय नेता के तौर पर उभरे थे. अब उन्होंने राष्ट्रीय नेता की छवि गढने की एक सफल कोशिश की है. उनकी रैलियों में जुटती भीड़ और शामिल हो रहे लोगों में जिस तरह से उत्साह दिख रहा है, उससे स्पष्ट है कि वे अपनी कोशिश में कामयाब हुए हैं.
सबसे बड़ी बात है मोदी के लगातार हमलों से घबराई कांग्रेस ने जिस नेता को अर्थात राहुल गांधी को मैदान में उतारा है वे अपने भाषण में कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा करते नजर आ रहे हैं, या यह भी कहा जा सकता है कि उन्हें कांग्रेस विरोधी रुख अख्तियार करने को मजबूर होना पड़ा है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपनी रणनीति में खुद उलझती जा रही है.
कांग्रेस को आज महसूस हो रहा होगा कि किसी लोकप्रिय नेता के बजाय किसी टेक्नोक्रेट को प्रधानमंत्री बनाने का कितना फायदा होता है और कितना नुकसान. कांग्रेस की सरकार है, लेकिन उसके प्रधानमंत्री जिन्हें जनता के सवालों का जवाब देना चाहिए, मतदाताओं के सामने अपनी सरकार के कामकाज का हिसाब देना चाहिए, वे यह काम करने के काबिल नहीं है. क्योंकि वे जननेता नहीं हैं, इसलिए भीड़ को अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर सकते, मतदाताओं को अपनी बात से प्रभावित नहीं कर सकते. ऐसे में सरकार की उपलब्धियों को लोगों तक पहुंचाने का काम दूसरे नेताओं को करना पड़ रहा है. लेकिन भ्रष्टाचार, महंगाई के कारण यूपीए सरकार की उपलब्धियां कहीं गुम हो गयी है.
कांगेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी बातों के कारण कभी पार्टी तो कभी सरकार को ही परेशानी में डाल रहे हैं. ऐसा अनुभव की कमी या भावावेश में हो रहा है और मोदी को आक्रामक होने का मौका मिल रहा है. यही नहीं मोदी संवाद कला में माहिर है, वे जनता की नब्ज को बखूबी समझते हैं. राहुल गांधी के भाषणों में वह जोश और उत्साह नहीं दिखता है. मोदी अपनी आक्रामकता से कांग्रेस के जख्म को भरने नहीं दे रहे हैं, लगातार अपनी बातों से कांग्रेस को घेर रहे हैं. कांग्रेस के लोकप्रिय नेता, अनुभवी नेता जो कि मोदी के सवालों का जवाब देने में सक्षम हैं, उन्हें नेपथ्य में रखा गया है, जिसके कारण कांग्रेस घिरती जा रही है. और देश में मोदी लगातार अपने भाषणों से कांग्रेस विरोधी माहौल बना रहे हैं.
अभी विधानसभा का चुनाव है. मतदाता राज्यों में सत्ता को बनाये रखने या सत्ता परिवर्तन के लिए मतदान करेंगे. स्वाभाविक रूप से इन चुनावों में स्थानीय मुद्दों, स्थानीय सरकार का कामकाज, प्रत्याशियों का चयन आदि चुनाव को प्रभावित करेगा. लेकिन इन चुनावों की खासियत यह भी है कि इन चुनावी राज्यों में कांग्रेस और भाजपा जो कि राष्ट्रीय दल हैं, उन्हीं के बीच मुकाबला है. 2014 के आम चुनाव में यूपीए और एनडीए के बीच होगा. इसलिए इन चुनावों के परिणामों और इन चुनावों में उठाये गये स्थानीय, राष्ट्रीय मुद्दों का निश्चित रूप से 2014 के चुनाव में असर होगा. इसलिए अभी इन दलों के नेता अभी जो भी बात कह रहे हैं, या मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहें, उसका प्रभाव आम चुनाव में जरूर होगा. लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा अभी यह कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन एक बात जाहिर हो गयी है कि मोदी ने खुद को एक क्षेत्रीय नेता से राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित कर लिया है.
बातचीत: संतोष कुमार सिंह