25.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आतंकवाद से लहूलुहान भारत

-नॉलेज डेस्क- 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद देश में आतंक निरोधी तंत्र को मजबूत बनाने की कवायद शुरू की गयी थी. लेकिन, इस हमले के करीब पांच साल बीत जाने के बाद भी आतंकवाद का जख्म भरने की जगह और गहराता जा रहा है. ताजा उदाहरण है पटना का. हमारी खुफिया एजेंसियों और […]

-नॉलेज डेस्क-

26/11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद देश में आतंक निरोधी तंत्र को मजबूत बनाने की कवायद शुरू की गयी थी. लेकिन, इस हमले के करीब पांच साल बीत जाने के बाद भी आतंकवाद का जख्म भरने की जगह और गहराता जा रहा है. ताजा उदाहरण है पटना का. हमारी खुफिया एजेंसियों और सरकारों के बीच तालमेल की कमी के कारण आज भी भारत को आतंकवाद से मुक्त करने का सपना, सपना ही बना हुआ है. आखिर कहां हो रही है चूक और किस तरह हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा का संकट लगातार गहरा होता जा रहा है, बता रहा है आज का नॉलेज..

मुंबई में हुई 26/11 की आतंकी वारदात समेत पिछले एक -डेढ़ दशक के दौरान देशभर में हुई अनेक आतंकी घटनाओं और साजिशों के बावजूद शायद हमने इन घटनाओं से बहुत कम सीखा है. मौजूदा हालात और आंकड़े भी कुल मिला कर इसी बात को इंगित कर रहे हैं. पांच वर्ष बीत जाने के बावजूद ऐसा लग रहा है कि हम सचेत नहीं हुए हैं. देश का शीर्ष नेतृत्व इसके लिए पाकिस्तान और वहां संचालित आतंकी शिविरों को जिम्मेदार ठहराता रहा है. सवाल यह है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही हैं? पिछले साल के एक अनुमान के तहत पाकिस्तानी शिविरों में प्रशिक्षण हासिल कर चुके साढ़े सात सौ से ज्यादा आतंकवादी भारत में घुसपैठ की तैयारी में थे. हालिया रिपोर्ट भी पाकिस्तान की ऐसी दुष्ट साजिशों की ओर इशारा करते हैं.

नवंबर, 2012 के .इंडिया टुडे. में दिल्ली पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी के हवाले से बताया गया था कि इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) का प्रमुख सरगना यासीन भटकल अपने परिवार के साथ दिल्ली के पश्चिमी इलाके में छह माह तक रह चुका है. (भटकल को इस साल बिहार से गिरफ्तार किया गया.) भटकल को .कराची प्रोजेक्ट. का मास्टरमाइंड माना जाता है. भटकल ने भारत के खिलाफ 2005 में मोरचा खोला था और पुणो, बंगलुरू समेत दिल्ली बम विस्फोटों में उसके शामिल होने के सबूत मिले थे.

इंटेलीजेंस की विफलता

हमारे देश में खुफिया सूचनाएं जुटाने के लिए इंटेलीजेंस ब्यूरो (आइबी), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन, डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी, मिलिटरी इंटेलीजेंस, डाइरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस और सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलीजेंस ब्यूरो जैसी सात प्रमुख इंटेलीजेंस एजेंसियां हैं. प्रत्येक वर्ष इन एजेंसियों पर देश का 15 हजार करोड़ रुपया खर्च किया जाता है. हालांकि, यह बात आकलन से परे है कि इनसे कितनी तादाद में जरूरी सूचनाएं एकत्र हो पाती हैं और देश की सुरक्षा और बेहतरी में इनका कितना योगदान हो पाता है. कोई यह नहीं जानता कि इस रकम को कैसे खर्च किया जाता है. यहां तक कि संसद को इस बारे में जानकारी नहीं मिल पाती. .गुप्त सूचना. के नाम पर इस धन को खर्च किया जाता है.

माना जाता है कि .गुप्त सूचना. जुटाने के लिए इंटेलीजेंस एजेंसियां इंटरनेट या टेलीफोन से होनेवाली बातचीत पर निगरानी रखती हैं. इन इलेक्ट्रॉनिक स्नेतों से अब ज्यादा कुछ खंगाल पाना मुश्किल है. पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी अब ज्यादा होशियार हो चुके हैं और वे इमेल और टेलीफोन की बातचीत में ज्यादा सतर्कता बरतते हैं. इंटेलीजेंस एजेंसियां सीमापार होनेवाली बातचीतों को टेप तो करती हैं, लेकिन कोड भाषा में हुई उस बातचीत से किसी नतीजे तक पहुंच पाना उसके लिए मुश्किल होता है.

मुंबई घटना के बाद बदलाव

26/11 की घटना के बाद से इस मामले में एकमात्र बदलाव देखा गया है. वह यह कि नयी दिल्ली स्थित मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) में तकरीबन रोजाना देश की 25 इंटेलीजेंस एजेंसियों की बैठक होती रही है. ये इंटेलीजेंस एजेंसियां इस प्रकार हैं: प्रधानमंत्री कार्यालय/ कैबिनेट सचिवालय के तहत आनेवाली रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (एनटीआरओ), ज्वाइंट इंटेलीजेंस कमिटी (जेआइसी). गृह मंत्रलय के अधीन कार्यरत इंटेलीजेंस ब्यूरो (आइबी), नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए), नेशनल सिक्योरिटी गार्डस (एनएसजी), सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ), बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआइ), सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआइएसएफ), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आइटीबीपी), असम राइफल्स. रक्षा मंत्रलय के अधीन कार्यरत डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी (डीआइए), मिलिटरी इंटेलीजेंस, डाइरेक्टोरेट ऑफ नेवल इंटेलीजेंस (डीएनआइ), डाइरेक्टोरेट ऑफ एयर इंटेलीजेंस (डीएआइ) और कोस्ट गार्ड यानी तटरक्षक बल. वित्त मंत्रलय के अधीन कार्यरत डाइरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआइ), सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलीजेंस ब्यूरो, फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआइयू), डाइरेक्टोरेट ऑफ इनफोर्समेंट (इडी), डाइरेक्टोरेट ऑफ इनकम टैक्स इंटेलीजेंस (डीआइआइटी) और रेल मंत्रलय के अधीन कार्यरत रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ). इन एजेंसियों की प्रतिदिन की बैठकों के बावजूद, आतंकवाद का मर्ज अब भी बना हुआ है. जाहिर है, भारत का आतंकवाद निरोधी तंत्र एक सफेद हाथी बन कर रह गया है.

राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का अभाव

खुफिया सूचना को महज इकट्ठा करना हमारी समस्या का समाधान नहीं हो सकता. आतंकवाद से लड़ने के लिए हमारे पास समुचित राष्ट्रीय सुरक्षा नीति या रणनीति का अभाव है. वर्ष 2005 के बाद से आतंकवाद से संबंधित मामलों की जांच और अभियोग का रिकॉर्ड बेहद निराशाजनक रहा है. ज्यादातर मामले तो ट्रायल स्टेज तक पहुंचने से पहले ही खत्म हो गये. हमारे यहां आतंकवादी घटनाओं की कानूनी सुनवाई की प्रक्रिया अत्यंत धीमी गति से होती है. 26/11 के हमलावर अजमल कसाब को फांसी दिये जाने की घटना को छोड़ दें, तो उसके बाद महज कुछ ही घटनाओं में सुनवाई कुछ हद तक आगे बढ़ पायी है.

एनएसजी को बढ़ाने की तैयारी

26/11 के बाद की गयी अनेक कवायदों में आतंकवाद से लड़ने में सर्वाधिक सक्षम सुरक्षा एजेंसी नेशनल सिक्योरिटी गार्डस को और ज्यादा उन्नत बनाने की दिशा में जोर दिया गया था. दिल्ली के अलावा देश के अन्य चार प्रमुख शहरों, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद में इसकी क्षेत्रीय इकाइयों को स्थापित किये जाने पर बल दिया गया. ऐसा होने से देश के किसी भी इलाके में आतंकी घटना होने की स्थिति में जल्द से जल्द एनएसजी कमांडो वहां तक पहुंचने में सक्षम हो सकते हैं. आतंकवाद से लड़ने के लिए सक्षम उपकरणों और प्रशिक्षण का अभी बेहद अभाव है.

नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर

आंतरिक सुरक्षा का ढांचा मजबूत करने और आतंकवाद से लड़ने के लिए पूर्व में गृह मंत्रलय ने नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) के गठन पर जोर दिया था. इसके गठन का मकसद देश में आतंकवाद को जड़ से खत्म करना था. हालांकि, कई राज्यों (बिहार, गुजरात, तमिलनाडु, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल) ने इसके गठन का विरोध किया और आखिरकार इसका गठन नहीं हो पाया.

इस दिशा में उस समय एक नया मोड़ आया, जब पी चिदंबरम ने गृह मंत्री का पद संभालने के बाद .नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड. बनाने पर जोर दिया. आज भले ही हम कुछ गिने-चुने आतंकवादियों को हिरासत में लेते हुए आतंक के मॉड्यूल का खुलासा करने में सक्षम हो रहे हों, लेकिन इन्हें रोक पाने में अभी भी हम अक्षम ही हैं. खुफिया सूचनाओं के समुचित कार्यान्वयन के अभाव में आज भी हम देश में आतंकी घटनाओं को रोक नहीं पा रहे हैं.

अमेरिकी एनसीटीसी

अमेरिका में 9/11 (वर्ल्ड ट्रेड सेंटर) की आतंकी घटना के बाद आतंकवाद को देश से पूरी तरह खात्मे के लिए एक मई, 2003 को नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) का गठन किया गया. इसका मुख्यालय वर्जीनिया में है. यह मूल रूप से .ऑफिस ऑफ द डाइरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलीजेंस. का एक हिस्सा है और सीआइए समेत एफबीआइ से विशेषज्ञों को इसमें शामिल किया जाता है. यह एजेंसी आतंकवाद से जुड़ी तमाम सूचनाओं का विश्लेषण करने के साथ ही आतंकवाद संबंधी सूचनाओं का संचय करती है.

सात बड़े आतंकी हमले

मुंबई, 26/11

26 नवंबर, 2008 को आतंकियों ने छत्रपति शिवाजी स्टेशन, होटल ताज, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस समेत कामा हॉस्पीटल और मेट्रो सिनेमा पर हमला कर दिया, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गये और 700 से अधिक घायल हुए.

असम बम विस्फोट, 2008

वर्ष 2008 के अक्तूबर में असम के गुवाहाटी, बारपेट रोड, बोंगाईगांव और कोकराझार में हुए 18 बम विस्फोटों में 80 से ज्यादा लोग मारे गये और 500 के करीब घायल हुए थे.

जयपुर सीरियल ब्लास्ट

देश के विशेष पर्यटक स्थल जयपुर में 2008 में पहली बार सीरियल बम धमाके हुए, जिसमें 63 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और 200 से अधिक लोग घायल हुए.

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट

18 फरवरी, 2007 को दिल्ली से लाहौर जा रही समझौता एक्सप्रेस में आतंकियों ने विस्फोट की कार्रवाई को अंजाम दिया, जिसमें 68 लोगों की जान चली गयी और 50 घायल हुए.

दिल्ली सीरियल ब्लास्ट

29 सितंबर, 2005 को आतंकियों ने दिल्ली के कई बाजारों में सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया, जिसमें 62 निदरेष मारे गये और 200 से ज्यादा लोग घायल हो गये थे.

संसद पर हमला (2001)

13 दिसंबर, 2001 को आतंकवादियों ने संसद भवन परिसर में घुसपैठ करते हुए ताबड़तोड़ी गोलियां चलायीं, जिसमें विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के सात सुरक्षाकर्मी शहीद हो गये थे.

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट, 2006

11 जुलाई, 2006 को मुंबई में 11 मिनट के भीतर लोकन ट्रेनों में सात स्थानों पर आतंकियों ने बम ब्लास्ट किया, जिसमें 209 लोग मारे गये और 700 से अधिक घायल हो गये थे.

सात बड़े नक्सली हमले

कोरापुट (ओड़िशा) 2004

एक हजार से ज्यादा हथियारबंद नक्सलियों ने जिला शस्त्रगार पर हमला करते हुए पांच थानों और जेल से 50 करोड़ के शस्त्र लूटे. स्टेट आम्र्ड पुलिस बटालियन के कई जवान मारे गये थे.

नयागढ़ (ओड़िशा) 2008

फरवरी, 2008 में नयागढ़ में बसों और ट्रकों में आये नक्सलियों ने जिला मुख्यालय को बंधक बनाते हुए हमला कर दिया. इस घटना में 14 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गयी.

दरभा (छत्तीसगढ़) 2013

सीपीआई (माओवादी) विद्रोहियों ने दरभा घाटी में कांग्रेस नेताओं पर हमला किया. राज्य कांग्रेस अध्यक्ष और विद्या चरण शुक्ल समेत 27 लोगों को गोलियों से भून दिया गया.

दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) 2007

साढ़े तीन सौ नक्सलियों ने सैन्य बल के 15 जवानों समेत 54 लोगों की हत्या कर दी. बतौर विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त आदिवासी समुदाय के कई युवकों को भी मारा गया.

रानी बोदी (छत्तीसगढ़) 2007

राज्य पुलिस के 24 कर्मियों और 31 स्पेशल पुलिस अधिकारियों को सुनियोजित तरीके से रात में हमला करते हुए मौत के घाट उतार दिया गया. हमले में 500 नक्सलियों ने हिस्सा लिया था.

जहानाबाद (बिहार) 2005

सीपीआई (माओवाद) के गुरिल्लाओं ने पुलिस की वर्दी में जहानाबाद जेल पर हमला कर दिया. इस घटना में 12 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की गयी थी.

गिरिडीह (झारखंड) 2007

गिरिडीह के चिलखारी गांव में नक्सलियों ने हमला करते हुए झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप समेत अन्य 17 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें