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छात्रवृत्ति व पेंशन की कई योजनाएं

मित्रो,झारखंड में समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग नि:शक्त व्यक्तियों के अधिकार, उत्थान, स्वावलंबन, स्वारोजगार और पुनर्वास के लिए कई कार्यक्रम चला रहा है. नि:शक्तों के प्रति समाज और सरकार दोनों की दृष्टि में बदलाव आया है. समाज उन्हें घृणा नहीं, सहानुभूति की दृष्टि से देखता है. इस दृष्टि में एक बदलाव और चाहिए, […]

मित्रो,
झारखंड में समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग नि:शक्त व्यक्तियों के अधिकार, उत्थान, स्वावलंबन, स्वारोजगार और पुनर्वास के लिए कई कार्यक्रम चला रहा है. नि:शक्तों के प्रति समाज और सरकार दोनों की दृष्टि में बदलाव आया है. समाज उन्हें घृणा नहीं, सहानुभूति की दृष्टि से देखता है. इस दृष्टि में एक बदलाव और चाहिए, जिसमें सहानुभूति नहीं, सम्मान और प्रोत्साहन हो. यह बदलाव इन योजनाओं से संभव है. इन पर सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रही है.

राज्य में नि:शक्तता आयोग भी है. सरकार नि:शक्तों के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र की भी भागीदारी सुनिश्चित करने में लगी. मूक-बधिरों और दृष्टिहीनों के विशेष विद्यालय चलाने वाली संस्थाओं को आर्थिक मदद दी जा रही है. इन सबके बाद भी शत-प्रतिशत नि:शक्तों को चिह्न्ति करने और उन तक लाभ पहुंचाने का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है. हम यहां उन योजनाओं की चर्चा कर रहे हैं, जो राज्य के नि:शक्तों के प्रोत्साहन, क्षमता वृद्धि, पुनर्वास और स्वारोजगार से जुड़ी हुई हैं. इन योजनाओं का लाभ आप ले भी सकते हैं और दूसरे को दिला भी सकते हैं. आप उन संस्थानों पर नजर भी रख सकते हैं, जिन्हें इन योंजनओं को कार्यान्वित करने की जिम्मेवारी दी गयी है. इसके लिए आरटीआइ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

स्वामी विवेकानंद नि:शक्त स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना
राज्य सरकार नि:शक्त व्यक्तियों को इस योजना के तहत हर माह प्रोत्साहन राशि देती है. पहले इसकी राशि 200 रुपये थी. इसे बढ़ा कर 400 रुपया कर दिया गया है. इसका लाभ सभी वर्ग के नि:शक्तों को दिया जाना है.

किसे मिलता है लाभ
झारखंड में रहने वाला कोई भी नि:शक्त व्यक्ति इस योजना का लाभ ले सकता है, जो 40} तक नि:शक्त है. आवेदन के साथ मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण-पत्र की छायाप्रति लगाना जरूरी है.

विशेष विद्यालयों की स्थापना एवं संचालन
यह योजना ऐसे बच्चों के लिए ,जो मानसिक एवं अन्य प्रकार की नि:शक्तता से ग्रसित हैं. योजना के तहत इन बच्चों के लिए विशेष प्रकार के विद्यालय की स्थापना और उनका संचालन किया जाना है. इन विद्यालयों का संचालन स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से होना है. इस तरह के जो विद्यालय संचालित हैं, उन्हें इस योजना के तहत अनुदान दिया जाना है. इन विद्यालयों के जरिये मानसिक रूप से नि:शक्त बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाना है, ताकि उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में मदद मिल सके. इसके तहत पिछले साल स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए 1.00 करोड़ रुपये दिने का प्रावधान किया गया था.

किसे मिलता है लाभ
इस योजना का लाभ राज्य के सभी वर्ग के नि:शक्त प्राप्त कर सकते हैं. इसके लिए आप अपने प्रखंड की बाल विकास परियोजना पदाधिकारी या पंचायत के मुखिया से संपर्क कर सकते हैं.

मूक-बधिर विद्यालयों का संचालन एवं गैर सरकारीसंस्थान को सहायता
यह योजना मूक-बधिर रूप से नि:शक्त बच्चों को शिक्षा से जोड़ने और उनमें स्वावलंबन की भावना पैदा करने के लिए संचालित है. राज्य में सरकार खुद भी ऐसे विद्यालय संचालित कर रही है, जो अविभाजित बिहार के समय से हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं. राज्य में नि:शक्तों की संख्या और उन्हें शिक्षा से जोड़ने की चुनौतियों को देखते हुए बड़ी संख्या में ऐसे विद्यालयों की जरूरत है. इस जरूरत को निजी क्षेत्र से पूरा करने की कोशिश की जा रही है. इसी के तहत यह योजना भी चल रही है. गैर सरकारी क्षेत्र में मूक-बधिर बच्चों के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाएं विद्यालय चला रही हैं. उनकी स्वयं की आर्थिक स्थिति कमजोर है और सभी नि:शक्त बच्चों के परिजन भी उनके खर्च को उठा नहीं सकते. इसलिए सरकार उन्हें आर्थिक मदद देती है. ऐसे स्कूलों की निगरानी और योजना के कार्यान्वयन पर नियंत्रण का दायित्व समाज कल्याण विभाग का है. ऐसी संस्थाओं की मदद के लिए राज्य सरकार एक करोड़ से अधिक रुपये का वार्षिक प्रावधान करती है.

नेत्रहीन विद्यालयों का संचालन व गैर सरकारी नेत्रहीन विद्यालय के संचालन हेतु सहायता
राज्य में मूक-बधिरों की दृष्टिहीन बच्चों की भी बहुत बड़ी संख्या इन बच्चों के लिए विशेष प्रकार के पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति दुनिया भर में विकसित हुई है. देश में नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 में भी इसका प्रावधान है. अधिनियम की धारा 30 में सरकारों से कहा गया है कि वह नि:शक्तजनों के लिए व्यापक शिक्षा नीति बनायें और उसमें परिवहन सुविधा, पुस्तक की आपूर्ति आदि की व्यवस्था करें. राज्य में दृष्टिहीन बच्चों के लिए सरकारी स्कूल हैं, जो अविभाजित बिहार के समय से चल रहे हैं, लेकिन उनकी क्षमता बहुत कम है. इसलिए सरकार ने निजी क्षेत्र की भागीदारी के आधार पर इस चुनौती को पूरा करने की योजना बनायी है. इसके तहत सरकार को दृष्टिहीनों के लिए नये विद्यालय स्थापित करने हैं और जो निजी क्षेत्र के ऐसे विद्यालय हैं, उन्हें आर्थिक सहायता देनी है. स्वयंसेवी संस्थाओं को इसके तहत सरकारी आर्थिक सहायता दी जाती है. यह मुख्य रूप से दृष्टिहीन बच्चों के कल्याण के लिए होती है. इसके लिए सरकार करीब एक करोड़ रुपये तक का वार्षिक प्रावधान करती है. अगर आप इस तरह का विद्यालय चला रहे हैं, तो सरकार की शर्तो को पूरा कर इस योजना का लाभ अपने विद्यालय के दृष्टिहीन बच्चों को दिला सकते हैं. अगर आप अभिभावक या जागरूक नागरिक हैं, तो इन स्कूलों में दृष्टिहीन बच्चों को नामांकित करा सकते हैं.

नि:शक्तों को विशेष उपकरण योजना
यह योजना नि:शक्तों के शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास के लिए चलायी जा रही है. इन नि:शक्तों को उनकी नि:शक्तता की बाधा को कम करने के लिए ऐसे उपकरण उपलब्ध कराये जाते हैं, जिनसे वे सामान्य जीवन के क्रियाकलापों को पूरा कर सकें. जैसे व्हीलचेयर, तिपहिया साइकिल, श्रवण यंत्र, कैलिपर्स तथा अन्य सहायक यंत्र और उपकरण. सरकार हर साल 8-10 हजार नि:शक्तों को इस योजना के तहत इस तरह के सहायक उपकरण देती है. इस पर 70 लाख से एक करोड़ रुपये तक सरकार खर्च करती है. इस योजना का लाभ 14 से 60 साल तक के नि:शक्त व्यक्ति को दिया जाना है.

इन्हें मिलता है लाभ
झारखंड के रहने वाला 40} तक नि:शक्त वैसे छात्र-छात्रओं को इसका लाभ मिलता है, जिनके परिवार की वार्षिक आय एक लाख से अधिक न हो.

ऐसे प्राप्त करें लाभ
इसके लिए जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग को आवेदन देना होता है. योजना का आवेदन फॉर्म जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग में नि:शुल्क मिलता है. फॉर्म भर कर उसी कार्यालय में जमा करना होता है. आवेदन पत्र के साथ आय प्रमाण-पत्र और मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रति लगाना जरूरी है.

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