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जौ का दलिया है फायदेमंद

अर्श रोग (बवासीर) में गुदा मार्ग की शिराएं मोटी हो जाती हैं. यह गुदा मार्ग के अंदर व बाहर हो सकता है. गुदा मार्ग के अंदर होनेवाले अर्श में अपेक्षाकृत अधिक रक्त का स्नव होता है, जो शिराओं के फूटने के कारण होता है. किनारे पर अनेकों वलियां उत्पन्न हो जाती हैं. उनमें पीड़ा होती […]

अर्श रोग (बवासीर) में गुदा मार्ग की शिराएं मोटी हो जाती हैं. यह गुदा मार्ग के अंदर व बाहर हो सकता है. गुदा मार्ग के अंदर होनेवाले अर्श में अपेक्षाकृत अधिक रक्त का स्नव होता है, जो शिराओं के फूटने के कारण होता है. किनारे पर अनेकों वलियां उत्पन्न हो जाती हैं. उनमें पीड़ा होती है साथ ही खुजली होती है.

गुदा मार्ग में जब काले रंग का कड़ा, गांठ उत्पन्न हो जाये तथा उसके काफी दर्द व कब्ज के कारण कठिनाई के साथ पुरीश का त्याग हो उसे ‘वातज अर्श’ कहते हैं. जब गांठ मुलायम व लाल रंग का होता है, रक्त का स्नव होता है, प्यास अधिक लगती है. बुखार आती है. पुरीश का बार-बार त्याग होता है, तो उसे ‘पित्तज अर्श’ कहते हैं. जब गांठ अकार में बड़ा, मुलायम व सफेद रंग का होता है तथा पाचन क्रिया में गड़बड़ी रहती है, तो उसे ‘कफज अर्श’ कहते हैं.

सुश्रुत के मतानुसार यह छह प्रकार का होता है. चरक के मतानुसार यह आठ प्रकार का होता है. चिकित्सा के दृष्टिकोण से अर्श दो प्रकार का होते हैं. 1 शुष्कार्श 2़ रक्तार्श जिस अर्श में वात व कफ की प्रधानता होती है उसे ‘शुष्क अर्श’ व जिस अर्श में रक्त या पित्त की प्रधानता होती है उसे ‘रक्तअर्श’ कहते हैं.

कारण : अधिक व्यायाम, शोक, धूप का सेवन, अधिक शराब पीना, अति मैथुन से ‘वातज अर्श’ उत्पन्न होता है. अधिक क्रोध, अचार, मसालेदार पदार्थो का अधिक सेवन, क्षारिय पदार्थो का अधिक सेवन से पित्तज अर्श होता है. दिन में सोना, गद्देदार आसन पर बैठे रहना, व्यायाम का त्याग, मधुर एवं गरिष्ठ (हलुआ, पूरी, मालपुआ, खोवा, मलाई, उड़द के बने पदार्थ, शराब मांस आदि लगातार खान-पान) करने से एवं अधिक सुखपूर्वक सोने व आरामतलब व्यक्तियों में ‘कफज अर्श’ उत्पन्न होता है.

चिकित्सा : अर्श रोग की दो प्रकार से चिकित्सा की जाती है. औषधीय चिकित्सा 2शल्य चिकित्सा इसमें (क्षार सूत्र चिकित्सा काफी लाभकारी है.) औषधीय चिकित्सा : अर्षोघAी बटी 1 गुणा 4, कंकायन बटी अर्श 2 गुणा 2, अर्षकुठार रस 1 गुणा 2, वैष्वनार चूर्ण 3 ग्राम गुणा 4, वैश्वानर चूर्ण 3 ग्राम गुणा 2, चंद्रप्रभा बटी, उषीरासव, प्रतिदिन लेना उपयोगी है.

पथ्य : जौ की दलिया, मूंग, मसूर की दाल का जूस, बकरी या गाय का दूध, दही की मलाई, मक्खन, गोघृत, बथुआ, लौकी, कचनार का फूल, सेमल का फूल, प्याज, कच्चा गूलर, कच्चा केला, परवल, सलजम, पथ्य है. मुरगा का मांसरस, रक्तक्षय होने पर होने पर, संतरा, मौसम्मी, सिंघारा, मुनक्का, किसमिस, पक्की गूलर, आंवला पथ्य है.

अपथ्य : गुरु पदार्थ, हलवा, पूड़ी, उर्द चना, मसूर, गर्म मसाला, अचार, आलू, अरुई, घोड़ा की सवारी, अधिक देर तक बैठना, मूत्र एवं मुरास के वेग को रोकना अधिक दर तक बैठना.

डॉ देवानंद प्रसाद सिंह

अधीक्षक, राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल पटना

संपर्क: 09431619427

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