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सबसे ताकतवर पुतिन

।। अवधेश आकोदिया।।(वरिष्ठ पत्रकार) प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका ‘फॉर्ब्स’ ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इस वर्ष दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों में प्रथम स्थान दिया है. एक ओर सीरिया में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल होने की खबरों और उसके दुष्प्रभावों की आशंकाओं के बीच जिस तरह से पुतिन ने किसी संभावित हमले को रोकने […]

।। अवधेश आकोदिया।।
(वरिष्ठ पत्रकार)

प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका ‘फॉर्ब्स’ ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इस वर्ष दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों में प्रथम स्थान दिया है. एक ओर सीरिया में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल होने की खबरों और उसके दुष्प्रभावों की आशंकाओं के बीच जिस तरह से पुतिन ने किसी संभावित हमले को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का सहारा लिया, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी खुफिया दस्तावेजों को लीक करनेवाले एडवर्ड स्नोडेन को अपने देश में शरण देकर अमेरिका के साथ बाकी दुनिया को भी अपनी ताकत का एहसास कराया. पुतिन के समग्र व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द है आज का नॉलेज..

अमेरिकी पत्रिका फोर्ब्स की ओर से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दुनिया का सबसे ताकतवर नेता करार देना मायने रखता है. इसकी अहमियत इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि उन्होंने बराक ओबामा को पछाड़ कर यह मुकाम हासिल किया है. वर्ष 2009 के बाद यह पहला मौका है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताकतवर नेता नहीं चुना गया है.

सीरिया के मुद्दे पर रूसी राष्ट्रपति ने जिस तरह अमेरिकी कूटनीति की हवा निकाली, उससे साफ हो गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुतिन ज्यादा प्रभावी साबित हुए हैं. मालूम हो कि सीरिया में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किये जाने की रिपोर्टो के बाद ओबामा ने दमिश्क पर हमले की तैयारी कर ली थी, लेकिन मास्को ने ऐसा दबाव बनाया कि अमेरिका को पीछे हटना पड़ा. पुतिन के इस बढ़े हुए कद के पीछे अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी (एनएसए) व सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) से जुड़े एडवर्ड स्नोडेन का अहम योगदान है. उनकी ओर से लीक किये गये दस्तावेजों की वजह से ही इस वक्त अमेरिका दुनियाभर के देशों की निंदा ङोल रहा है. उन्होंने एनएसए के जासूसी से जुड़े ऐसे दस्तावेज जारी किये कि अमेरिका पर 34 देशों के शीर्ष नेताओं की जासूसी करने के आरोप लग रहे हैं.

शायद खुद पुतिन ने भी पहले ऐसा नहीं सोचा होगा कि एडवर्ड स्नोडेन को रूस में शरण देना उनके लिए इतना फायदेमंद साबित होगा. दरअसल, स्नोडेन पर अमेरिका ने इसी साल जून में सरकारी सूचनाओं को लीक करने का आरोप लगाया था. इसके बाद उन्होंने मास्को से शरण मांगी, जिसे पुतिन ने स्वीकार कर लिया. तब से लेकर अब तक वे कई ऐसे खुलासे कर चुके हैं, जिन्होंने अमेरिका की मुसीबत बढ़ायी. इस दौरान अमेरिका ने स्नोडेन को हासिल करने के लिए रूस पर दबाव बनाने की हरसंभव कोशिश की. द्विपक्षीय संबंध तोड़ने की धमकी तक दे डाली, लेकिन पुतिन टस से मस नहीं हुए. उन्होंने बराक ओबामा की कोई बात मानने की बजाय, ऐसे कदम उठाये, जिससे वे चिढ़ें. बानगी के तौर पर हाल ही में स्नोडेन की नौकरी को ही लें. उन्हें एक रूसी वेबसाइट ने मोटी तनख्वाह वाली नौकरी दी है. पुतिन के मुकाबले ओबामा की स्थिति घरेलू हालात की वजह से भी कमजोर हुई. विपक्षी पार्टी के असहयोग की वजह से बीते दिनों अमेरिका में लगातार 16 दिनों तक शटडाउन की स्थिति बरकरार रही और इस दौरान अनेक सरकारी दफ्तर बंद रहे.

घर में एकछत्र राज

व्लादिमीर पुतिन दुनिया में अपनी धाक जमाने के बारे में इसलिए सोच पा रहे हैं, क्योंकि रूस में उनकी बादशाहत को चुनौती देनेवाला फिलहाल कोई नहीं है. पिछले तकरीबन दो दशकों से उनका राज कायम है. उन्हें रूस की शीर्ष राजनीति में लाने का श्रेय तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को है, जिन्होंने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया. इस पद पर रहते हुए उन्होंने देश की राजनीति में तेजी से अपनी पैठ बनायी.

वर्ष 2000 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में वे बोरिस येल्तसिन के खिलाफ मैदान में उतरे और जीत हासिल की. 2004 में उन्होंने दोबारा चुनाव जीता. वे 2008 में भी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ते, यदि संवैधानिक बाधा नहीं होती. मालूम हो कि रूस में कोई भी नेता लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ सकता. इस बाधा को दूर करने के लिए पुतिन प्रधानमंत्री बन गये और अपने विश्वसनीय दिमित्री मेदवेदेव को देश का राष्ट्रपति बनवा दिया. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति का कार्यकाल चार से बढ़ा कर छह वर्ष कर दिया.

वर्ष 2012 में जब राष्ट्रपति चुनाव हुए, तो पुतिन फिर से मैदान में थे. इस चुनाव में उन्हें कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा. रूसी संसद के निचले सदन ‘ड्यूमा’ के चुनाव में पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी बमुश्किल जीत दर्ज कर पायी. इस जीत में भी उन पर आरोप लगे कि उन्होंने सरकारी तंत्र का बेजा इस्तेमाल और फर्जीवाड़ा किया है. मुख्य दौर के चुनाव में भी उन पर ऐसे ही आरोप लगे. विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ आंदोलन भी खड़ा किया, जिसे देश के युवाओं का व्यापक समर्थन मिला.

ऐसा माना जा रहा था कि यह आंदोलन रूसी सत्ता से पुतिन के पैर उखाड़ने वाला होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वे तीसरी बार देश के राष्ट्रपति बन गये. जब वे शीर्ष पर काबिज हो गये, तो उन्होंने दिमित्री मेदवेदेव को प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया.

लोगों का भरोसा

भले ही राष्ट्रपति चुनाव के पहले और बाद में पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन हुए हों, लेकिन रूस की बहुसंख्यक जनता आज भी उन्हें अपना ‘हीरो’ मानती है. यह तो उनके विरोधी भी मानते हैं कि रूस को संक्रमण काल से निकाल कर सुधार और स्थायित्व के रास्ते पर उन्होंने ही डाला. बोरिस येल्तसिन ने 1999 में जब उन्हें अपना प्रधानमंत्री बनाया था, तब रूस अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा था. 1991 में हुए विघटन से उपजी समस्याओं ने मुल्क को जकड़ रखा था. मई, 2000 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में पुतिन मैदान में उतरे, तो देश उन्हें एक उम्मीद के रूप में देख रहा था. लोगों ने उन्हें भारी बहुमत के साथ सत्ता तक पहुंचाया.

सत्ता पर काबिज होते ही पुतिन ने कई ऐतिहासिक कार्य किये. चेचन विद्रोहियों से सख्ती से निबटने का उनका निर्णय लोगों को बहुत पसंद आया. उन्होंने रूस को एक आधुनिक और मजबूत राष्ट्र बनाने की बात कही और सरकारी बजट को संतुलित करने के अलावा देश में बढ़ती महंगाई पर भी लगाम लगायी. अमेरिका में घटित 9/11 की घटना के तुरंत बाद पुतिन ने अमेरिका को पूरा समर्थन देने का वादा किया. साथ ही, इराक में सैनिक अभियान पर उन्होंने अमेरिका का विरोध किया और जर्मनी व फ्रांस की तरह ऐसे अभियान के लिए संयुक्त राष्ट्र के समर्थन पर जोर दिया.

आसान नहीं आगे की राह

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पुतिन अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए चुनौतियां भी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही हैं. पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव पर लोगों ने जिस तरह से सवाल खड़े किये, उसे देखते हुए देश को एक पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया की सख्त जरूरत है. व्यापक चुनाव सुधारों के अलावा रूस में सत्ता का चरणबद्ध ढंग से विकेंद्रीकरण समय की मांग है. रूस के लोग भ्रष्टाचार से भी पीड़ित हैं. रूसी खुफिया एजेंसी ‘केजीबी’ के जासूस रह चुके पुतिन ने खुद स्वीकारा है कि देश व्यवस्थागत भ्रष्टाचार से पीड़ित है. मालूम हो कि भ्रष्टाचार के मामले में रूस ने भारत को भी पीछे छोड़ दिया है. भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ ने रूस को भ्रष्टाचार के मामले में 178 देशों की सूची में 154वें स्थान पर रखा है, जबकि भारत की रैंकिंग 87वीं है. हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर के बैंकों में अभी जितना काला धन जमा है, उसमें रूस का नंबर दूसरा है.

पुतिन के सामने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती तो पहले से ही है. विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर यहां की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है. आर्थिक विकास की दर 5 प्रतिशत से भी नीचे चली गयी है और मुद्रास्फीति की दर 8 का आंकड़ा छू रही है. बेरोजगारी और गरीबी की समस्या भी दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है. हालांकि, आर्थिक परिस्थितियां धीरे-धीरे अनुकूल होती जा रही हैं. देश की मुद्रा रूबल फिलहाल स्थिर हो गयी है और देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा है. आर्थिक संकट से निबटने के लिए खर्च की गयी 30 खरब रूबल की भारी रकम अब असर दिखा रही है.

भारत से अच्छे रिश्ते

वैसे तो भारत के साथ रूस के संबंध शुरू से ही मधुर रहे हैं, लेकिन रिश्ते को और प्रगाढ़ बनाने में व्यक्तिगत रूप से व्लादिमीर पुतिन का अहम योगदान है. इसे पुतिन की उपस्थिति का ही योगदान कहा जा सकता है कि अमेरिका के बढ़ते असर के बावजूद भारत और रूस के रिश्तों में गरमाहट बरकरार है. इसकी एक बानगी पिछले महीने भी देखने को मिली, जब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रूस की यात्र पर गये थे. पुतिन ने मनमोहन सिंह का सत्कार करने में प्रोटोकॉल के नियमों को किनारे रखने से भी गुरेज नहीं किया. इस आत्मीयता के बाद भी रूस के साथ हुए कई बड़े सैनिक सौदे भारत के लिए गले की हड्डी बने हुए हैं. वहीं रूस की कई सरकारी और निजी कंपनियों की भारी-भरकम पूंजी भारत में बुरी तरह फंस गयी है. भारत के लिए एक तरफ रूस से लिये गये ‘मिग’ विमान मुसीबत बने हुए हैं, दूसरी तरफ बड़ी उम्मीद के साथ उससे खरीदे गए युद्धपोत गोर्शकोव की कीमत और आपूर्ति की तारीख विवाद का विषय रही है. तमिलनाडु के कुडनकुलम में रूस द्वारा बनाये जा रहे दोनों परमाणु संयंत्रों में बिजली उत्पादन शायद जल्द ही शुरू हो जाए, लेकिन स्थानीय विरोध के चलते इसमें देर तो हो ही चुकी है. एक समय था, जब रूस और भारत के रिश्ते वैचारिक लगाव पर आधारित हुआ करते थे. वह समय अब दो दशक पीछे छूट चुका है. अभी दोनों के संबंध काफी कुछ द्विपक्षीय व्यापार और एक हद तक राष्ट्रीय हितों पर आधारित हैं. जाहिर है, यह नया माहौल ज्यादा सावधानी और सतर्कता की मांग करता है. उम्मीद करें कि पुतिन का यह दौर रिश्तों को पटरी पर लाने वाला साबित होगा.

पाकिस्तान से नजदीकियां

पिछले कुछ वर्षो में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मामले में भारत जितनी तेजी से अमेरिका के करीब गया है, लगभग उतनी ही तेजी रूस ने पाकिस्तान के नजदीक जाने में दिखायी है. भारत के लिए इसके रणनीतिक खतरों की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि हमारे तकरीबन 70 फीसदी जंगी साजोसामान रूस से ही मंगाए हुए हैं. इनका कील-कांटा पाकिस्तान की पकड़ में आना किसी टकराव की हालत में भारत के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है. यदि रूस पाकिस्तान के नजदीक जा रहा है, तो इसमें सबसे ज्यादा दोष नयी दिल्ली का है. भारतीय नेतृत्व ही रूस के साथ भावनात्मक संबंधों को नयी परिस्थितियों में ढाल नहीं पाया, वरना रूस तो पाकिस्तान की तरफ झांकता भी नहीं. याद कीजिए 1971 के युद्ध में रूस ने भारत का किस हद तक साथ दिया. अमेरिका और ब्रिटेन ने दिसंबर, 1971 में ‘सेंटो’ और ‘सीटो’ सैनिक गुटों में अपने जूनियर पार्टनर पाकिस्तान की हिफाजत के लिए कई हथकंडे अपनाये थे. इनमें अमेरिका के एक नौसैनिक बेड़े द्वारा बंगाल की खाड़ी की नाकाबंदी तथा मुंबई के तट पर अमेरिकी और ब्रिटिश सैनिकों की उतराई भी शामिल थी. लेकिन सोवियत रूस की परमाणु पनडुब्बियों ने इन हथकंडों पर पानी फेर दिया. यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोवियत प्रतिनिधि याकोव मलिक ने मोरचा संभाला और ढाका पर भारतीय सेना के कब्जे और पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण तक पश्चिमी देशों के भारत विरोधी प्रस्तावों पर लगातार तीन दिन वीटो लगाते गये.

विवादों में पुतिन का व्यक्तिगत जीवन

उम्र के इस पड़ाव पर व्लादिमीर पुतिन का व्यक्तिगत जीवन विवादों में है. वे अपनी पत्नी ल्यूडमिला से अलग हो चुके हैं और उनकी पार्टी की सांसद एलिना काबाएवा के साथ उनके अफेयर की चरचा है. काबाएवा के एक बयान से दोनों के बीच रिश्तों को लेकर सस्पेंस और बढ़ गया है. उन्होंने एक टीवी शो में कहा कि वह जिस इनसान से बेहद प्यार करती हैं और जिनके बच्चे की मां बनने का ख्वाब देखती हैं, वह उन्हें मिल गया है. एलिना का यह बयान पुतिन की 30 साल पुरानी शादी तोड़ने की घोषणा के कुछ दिन बाद आया. माना जा रहा है कि पुतिन ने यह शादी एलिना के लिए ही तोड़ी है. हालांकि, दोनों ने सार्वजनिक तौर पर कभी भी इस बारे में कोई बात नहीं की. मिस काबाएवा गोल्ड मेडल विजेता जिमनास्ट होने के साथ इस वक्त पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी की एमपी हैं. पिछले पांच साल से चल रहे इस प्रेम प्रसंग की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खूब चरचा होती रही है. वैसे ये दोनों अब तक अपने बीच किसी प्रकार के संबंध होने से इनकार करते रहे हैं. कहा तो यहां तक जा रहा है कि 60 वर्षीय पुतिन और 30 वर्षीय काबाएवा के एक-दो या उससे अधिक बच्चे भी हैं.

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