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बाल संरक्षण: हर स्तर पर योजनाएं

मित्रो, यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चे भारत में हैं. यहां हर साल करीब 2.5 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं. एक साल में इतने बच्चे किसी भी एक देश में पैदा नहीं होते. यहां तक कि चीन में भी नहीं. भारत में 37.5 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जो 14 वर्ष से […]

मित्रो,

यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चे भारत में हैं. यहां हर साल करीब 2.5 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं. एक साल में इतने बच्चे किसी भी एक देश में पैदा नहीं होते. यहां तक कि चीन में भी नहीं. भारत में 37.5 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जो 14 वर्ष से कम उम्र के हैं. भारत में छह साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 15.8 करोड़ है. अब भी करीब तीन करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जो स्कूल नहीं जाते. करीब दो करोड़ ऐसे बच्चे हैं, जो किसी-न-किसी रूप में नौकर का काम करते हैं. यहां तक खतरनाक उद्योगों और बच्चों के लिए प्रतिबंधित धंधों में भी इनसे काम लिया जा रहा है.

बच्चों के अधिकार का एक अहम पक्ष है संरक्षण, पुनर्वास और न्याय. देश भर में ऐसे बच्चों की संख्या बड़ी है, जिन्हें किसी-न-किसी कारण से सरकारी संरक्षण की जरूरत पड़ती है. इनमें किशोरी और बालिकाएं भी शामिल हैं, जो राज्य के अंदर और राज्य के बाहर असुरक्षित हैं. यह जरूरत कई कारणों से पैदा होती है. एक तो गरीबी और सामाजिक कारणों से हर दिन बहुत बच्चे परिवार द्वारा त्याग दिये जाते हैं. ऐसे बच्चों को सही दिशा नहीं मिलती है, तो वे देश, समाज और कानून के लिए बड़ी समस्या तो हो ही जाती हैं, स्वयं को भी जटिल स्थिति में पहुंचा देते हैं. ऐसे बच्चों को सरकार अपने संरक्षण में लेकर उनके विकास और पुनर्वास की दिशा में काम करती है. दूसरा कि किशोर और बच्चे अपने सीमित ज्ञान के कारण कई बार ऐसा काम कर बैठते हैं, तो कानून की नजर में अपराध है. ऐसे बच्चों के खिलाफ कानून के तहत न्यायिक प्रक्रिया शुरू की जाती है और दोषी पाये जाने पर उन्हें सजा भी दी जाती है. उनके लिए अलग से न्यायिक व्यवस्था और कानून है.

झारखंड की बड़ी समस्या बच्चियों और किशोरियों की तस्करी है, जिन्हें काम दिलाने के नाम पर महानगरों में ले जाकर बेच दिया जाता है. कई बार बच्चे खुद घर से भाग जाते हैं. कुछ मामलों में परिवार से बिछुड़ जाते हैं. ऐसे बच्चों को जब बरामद किया जाता है, तो उन्हें तत्काल संरक्षण की जरूरत होती है, जहां रख कर उनके माता-पिता का पता लगाया जा सके. हम इस अंक में सरकार की उन्हीं व्यवस्थाओं और योजनाओं की चर्चा कर रहे हैं, जो इन बालक-बालिकाओं व किशोर-किशोरियों को संरक्षण व अधिकार प्रदान करती हैं, ताकि आप इनका लाभ लोगों को दिला सकें और इन योजनाओं के कार्यान्वयन पर नजर रख सकें.

किशोरियों, बालिकाओं एवं दाइयों का ट्रैफिकिंग से बचाव व पुनर्वास केंद्र संचालन योजना
झारखंड की यह बड़ी विडंबना है कि यहां की बालिकाओं और किशोरियों को काम दिलाने के नाम पर महानगरों में ले जाकर बेच दिया जाता है. राज्य में गरीबी और भुखमरी के कारण हर दिन बड़ी संख्या में गरीब बच्चियां और किशोरियां नगरों और महानगरों के लिए पलायन करती हैं. वहां घरेलू नौकरानी के रूप में उन्हें काम दिलाने के नाम पर ले जाने के लिए कुछ गिरोह भी सक्रिय हैं.

दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पहुंच कर ऐसी बालिकाएं एवं किशोरियां अक्सर शोषण और अत्याचार का शिकार होती हैं. काम दिलाने के नाम पर उन्हें बेच दिया जाता है. इसे लेकर झारखंड और देश के दूसरे हिस्सों में लगातार आंदोलन हो रहे हैं. इसे देखते हुए राज्य सरकार ने रांची और दिल्ली में पहले हेल्प लाइन सेवा शुरू की थी. पिछले साल सरकार ने ऐसी लड़कियों को तस्करी से बचाने के लिए दिल्ली और रांची में पुनर्वास केंद्र स्थापित करने की योजना बनायी. इसके लिए 30 लाख रुपये का प्रावधान भी किया गया.

आफ्टर केयर होम का संचालन
सरकार उन किशोरों के पुनर्वास के लिए यह योजना चला रही है, जो किसी अपराध के मामले में 18 साल पूरा होने तक सरकार के संस्थागत संरक्षण में रह जाते हैं. दरअसल यह भी एक प्रकार की कैद ही है, जो ऐसे किशोर को संरक्षण की अवधि तक समाज की गतिविधि में हिस्सा लेने का मौका नहीं देता. ऐसी स्थिति में जब तक सरकार के संरक्षण गृह से बाहर निकलता है, तो उसके सामने कई तरह की चुनौतियां होती हैं. ज्यादातर मामलों में ऐसे किशोर का कोई संरक्षक या अभिभावक नहीं होता है. सरकारी संरक्षण गृह के बाहर उसका कोई आश्रय नहीं होता, जहां वह आगे की जिंदगी की तैयारी कर सके. इसलिए सरकार उन्हें संरक्षण और वैकल्पिक साधन मुहैया कराती है.

इसका मकसद यह भी है कि संरक्षण गृह से बाहर निकलने के बाद की चुनौतियों को हल करने के लिए वह कोई गलत कदम न उठाये. ऐसे किशोरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने और उन्हें जीविका का वैकल्पिक साधन मुहैया कराने के लिए सरकार द्वारा आफ्टर केयर होम का संचालन किया जाना है. यह बिहार में खुद सरकार कर ही है और वहां दो केंद्र इस तरह के चलाये जा रहे हैं. झारखंड में सरकार ने इस कार्य के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं को अधिकृत करने का फैसला किया है. पिछले साल इसके लिए 30 लाख रुपये भी उपलब्ध कराये गये.

हेल्प लाइन योजना
हेल्प लाइन योजना वैसे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं की सुविधा और कल्याण के लिए चलायी जा रही है, जिन्हें तत्काल सहायता की जरूरत है.समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग की योजना है. इसे गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के माध्यम से संचालित किया जा रहा है. इस पर होने वाला खर्च सरकार वहन करती है. साल में 80-90 लाख रुपये इस मद में उपलब्ध कराये जाते हैं.

उत्तर रक्षा गृह और नारी निकेतन का संचालन
उत्तर रक्षा गृह और नारी निकेतन का संचालन वैसी महिलाओं के लिए किया जाता है, जो समाज और परिवार द्वारा तिरस्कृत, बेसहारा या परित्यक्ता हैं. ऐसी महिलाओं को सुरक्षा और आश्रय देना शासन की जिम्मेवारी होती है. इस जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए सभी राज्यों में नारी निकेतन जैसी संस्थागत व्यवस्था है. झारखंड में नारी निकेतन के लिए गुमला जिला को चुना गया. उत्तर रक्षा गृह और नारी निकेतन में ऐसी बेसहारा महिलाओं को तब तक रखा जाता है, जब तक उनका कोई संरक्षक सामने आ कर उसकी जिम्मेवारी नहीं उठा लेता. यहां रहने वाली महिलाओं पर होने वाला खर्च सरकार उठाती है. साथ ही उन्हें स्वरोजगारी और आत्मनिर्भर बनाने के लिए हस्तशिल्प प्रशिक्षण भी दिया जाता है. प्रशिक्षण के बाद नारी निकेतन में रहने के दौरान उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की बिक्री नारी निकेतन और उत्तर रक्षा गृह का प्रबंधन करता है. इस बिक्री से होने वाली आमदनी का लाभ भी ऐसी महिला को दिया जाता है.

अल्प अवधि विश्रम गृह का संचालन
सरकार ने वैसी गरीब महिलाओं के लिए अल्प अवधि विश्रम गृह के संचालन की योजना बनायी है, जो ग्रामीण क्षेत्रों और रांची के आसपास के शहरों से छोटे-छोटे कारोबार तथा जीविकोपाजर्न के लिए आती हैं, लेकिन आश्रय नहीं होने के कारण रेलवे स्टेशन जैसे स्थानों पर रात बिताती हैं. समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग के अधीन रांची रेलवे स्टेशन के पास सरकार ने आश्रय गृह बनाने की योजना तैयार की, जिसका कार्यान्वयन स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से कराने की योजना है. इस योजना का लाभ वैसी महिलाओं को भी दिया जाना है, जिन्हें कुछ समय के लिए संस्थागत संरक्षण और आश्रय की जरूरत हो.

संसद और बाल अधिकार
संविधान में बच्चों और महिलाओं के लिए संविधान में की गयी व्यवस्थाओं को लेकर भारतीय संसद ने 1974 में एक राष्ट्रीय नीति को स्वीकार किया. इसमें यह संकल्प लिया गया कि बच्चों की किसी भी प्रकार से उपेक्षा नहीं की जायेगी. इसमें बच्चों की क्रूरता और शोषण से रक्षा तथा 14 साल से कम उम्र के बच्चों के असुरक्षित, जोखिम भरे और भारी काम में नहीं लगाने की घोषणा की गयी.

संविधान में बाल अधिकार
भारतीय संविधान में भी बाल अधिकार को सुनिश्चित करने का प्रावधान है. बच्चों के जन्म, लालन-पालन, शिक्षा, पोषण, विकास, स्वतंत्रता, स्वास्थ्य तथा सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकार की वकालत संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में पूरी ताकत से की गयी है.

अनुच्छेद-15 : इसमें महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा का विशेष प्रावधान है.

अनुच्छेद- 24 : इसमें 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों एवं अन्य जोखिम भरे कार्य में लगाने पर प्रतिबंध है.
अनुच्छेद-39 : इसमें किसी व्यक्ति की आर्थिक जरूरत के कारण उससे उसकी क्षमता से अधिक काम कराने की मनाही है. अनुच्छेद-45 : राज्यों को यह निर्देश है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में रहने वाले बच्चों के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करे.

पंचायती राज व बाल अधिकार
पंचायती राज व्यवस्था में बाल अधिकार को भी सम्मिलित किया गया है. इसमें पंचायती राज संस्थानों को बच्चों की शिक्षा, उनके स्वास्थ्य, विकास और हर तरह के शोषण से उनके बचाव की जिम्मेवारी दी गयी है. बच्चों को अधिकार देने वाले कानूनों के अनुपालन को सुनिश्चित करने में भी पंचायती राज संस्थाओं की बड़ी भूमिका है.

आरटीआइ का करें इस्तेमाल
बाल अधिकार से जुड़ी योजना, कार्यक्रमों, संगठनों और गतिविधियों या खर्च से जुड़ी जानकारी प्राप्त करना आपका अधिकार है. आपको लगता है कि किसी योजना या कार्यक्रम में कोई गड़बड़ी या मनमानी हो रही है या कोई जानकारी छुपायी जा रही है, तो आप सूचना का अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं. जिलों में संचालित संस्थान, इस क्षेत्र में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं, बिहार बाल अधिकार अयोग और समाज कल्याण विभाग इनमें से जहां से जुड़ी सूचना आप प्राप्त करना चाहते हैं, वहां के जन सूचना पदाधिकारी से दस रुपये सूचना शुल्क के साथ आवेदन दे सकते हैं. सूचना नहीं मिलने पर जन सूचना पदाधिकारी से वरीय श्रेणी के अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दायर कर सकते हैं.

राज्य मुख्यालय स्तर
लोक सूचना पदाधिकारी : उप सचिव, समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग, प्रोजेक्ट बिल्डिंग, धुर्वा, रांची.

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