किशोर न्याय बोर्ड
किशोर न्याय बोर्ड को 18 साल से कम उम्र के बच्चों द्वारा किये गये अपराध के मामले में आरोपों की जांच करने, साक्ष्य ग्रहण करने, आरोपी को अपना पक्ष रखने तथा अंतिम निर्णय करने का वही अधिकार प्राप्त है, जो एक व्यवहार न्यायालय को है. यह कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों से संबंधित मामलों से निबटने वाले एकमात्र प्राधिकरण है, जिसे हर जिले में स्थापित होना है. बिहार सरकार ने अपने सभी 38 जिलों में इसकी स्थपना की है. यह बोर्ड विधि का उल्लंघन करने वाले बच्चों को आपराधिक न्यायालयों के दायरे से बाहर रखता है और आपराधिक कार्य-प्रक्रि याओं की तकनीकी जटिलताओं से उनकी हिफाजत करता है. साथ ही यह अधिक और शीघ्रता से न्याय उपलब्ध कराता है.
जब अपराध करने वाले किसी बच्चे को पकड़ा जाता है, तो उसे बोर्ड के सामने प्रस्तुत किया जाता है. जब तक जांच चलती है, तक तब उसे पर्यवेक्षण गृह में रखा जाता है. अगर कानून के किसी और प्रावधान के अनुसार उसे रिहा न किया गया हो, तो सजा होने पर बच्चों को विशेष गृह या सुरक्षा के स्थान पर भेजा जाता है.
बाल कल्याण समिति
कानून के अनुसार देखरेख और संरक्षण की विशेष जरूरत वाले बच्चों के मुद्दों को हल करने के लिए हर जिले में एक बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) का गठन अनिवार्य है. यह पांच-सदस्यीय समिति एक अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्य करती है. इसके सदस्यों में कम से कम एक महिला और एक बच्चों के मामलों का विशेषज्ञ शामिल होता है. यह समिति बच्चे की देखरेख, संरक्षण, सुधार, विकास और पुनर्वास के मामलों को निबटाने, उसकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने तथा उसके मानवाधिकारों की रक्षा के मामले में अंतिम प्राधिकारी होती है. समिति के पास देखरेख और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चे को उसके माता-पिता, अभिभावक या किसी अन्य उपायुक्त व्यक्ति के पास वापस भेजने और उन्हें उपयुक्त निर्देश देने का अधिकार होता है.
देखरेख और संरक्षण के जरूरतमंद बच्चे को पुलिस अधिकारी या विशेष किशोर पुलिस इकाई या इसके लिए अधिकृत पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, चाइल्ड लाइन अधिकारी, राज्य सरकार द्वारा मान्यता-प्राप्त पंजीकृत स्वैच्छिक संस्था या एजेंसी, सामाजिक कार्यकर्ता या जनिहतकारी नागरिक समिति के सम्मुख प्रस्तुत किया जा सकता है. बच्चा स्वयं भी अपने को प्रस्तुत कर सकता है. जब समिति का सत्र नहीं चल रहा होता है, तब देखरेख और संरक्षण के जरूरतमंद बच्चे को सुरक्षित अभिरक्षा में रखने के लिए किसी सदस्य के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है.
बाल सुधार गृह
यह 18 साल से कम उम्र के वैसे बच्चों के लिए सरकार द्वारा संचालित सुधार गृह है, जिन्होंने कोई अपराध किया हो या जिन पर ऐसा अपराध करने का आरोप हो. यह केंद्र उन बच्चों के लिए भी है, जिनके संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे बच्चों को सुधारने के लिए यह संस्थागत व्यवस्था है. इसका उद्देश्य है कि इस तरह के बच्चों को कानून के दायरे में संरक्षित कर और बेहतर अवसर उपलब्ध करा कर उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ने का अवसर देना.
यह किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 तथा किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) संशोधित अधिनियम, 2006 के तहत संचालित है. इस तरह के केंद्र में रहने वाले बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगारपरक प्रशिक्षण, अच्छे आचरण आदि हासिल करने का अवसर दिया जाता है, ताकि वे सभ्य नागरिक बन सकें. जो बच्चे आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं, उन्हें मनोविज्ञानी की सेवा दी जाती है, ताकि वे अपराध की दुनिया में आगे कदम नहीं रखें. इन बच्चों पर होने वाला सभी तरह का खर्च सरकार उठाती है. किशोर न्याय (संशोधन) अधिनियम 2006 के मुताबिक 18 साल की आयु तक पहुंचने पर इस केंद्र को छोड़ने वाले किशोरों के पुनर्वास की जवाबदेही भी सरकार की है.
जिला बाल संरक्षण संस्था
किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के तहत हर जिले में एक राज्य बाल संरक्षण इकाई (एससीपीयू) और एक जिला बाल संरक्षण इकाई (डीसीपीयू) की स्थापना अनिवार्य है. एससीपीयू के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं : अधिनियम के अंतर्गत आने वाली एजेंसियों और संस्थाओं का पर्यवेक्षण और अनुश्रवण; डीसीपीयूजकी स्थापना और अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए डीसीपीयूज को धन उपलब्ध करना. एससीपीयू बाल संरक्षण के मुद्दों पर विभिन्न सरकारी विभागों के साथ समन्वय स्थापित करती है, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण नगरीय आधारभूत सेवाओं, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों, युवा सेवाओं, पुलिस न्यायपालिका, श्रम से संबंधित विभाग आदि. इसके अलावा यह अधिनियम के प्रभावकारी कार्यान्वयन के लिए कार्य करने वाले नागरिक, सामाजिक संगठनों आदि को प्रशिक्षण भी देती है. राज्य में समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग को सभी जिलों में डीसीपीयूज का गठन करना है.
संप्रेषण गृह
यह एक ऐसी संस्थागत व्यवस्था है, जो कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों के लिए है. यह किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2006 के तहत संचालित है. यहां उन बच्चों को तब तक रखा जाता है, जब तक कि उनके माता-पिता या अभिभावक उन्हें ले नहीं जाते. अगर किसी किशोर के खिलाफ कोई मामला चल रहा हो, तो जांच पूरी होने और किशोर न्याय बोर्ड द्वारा मामले का निष्पादन होने तक उसे यहां रखा जाता है. राज्य में अभी दस संप्रेषण गृह काम कर रहे हैं. 17 संप्रेषण गृह बनाने की तैयारी चल रही है.
विशेष गृह योजना
विशेष गृह उन किशोरों के लिए है, जिन पर कानून का उल्लंघन या बड़ा अपराध करने का आरोप हो और न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने में ज्यादा वक्त लग रहा हो. ऐसे किशोरों को ज्यादा दिनों तक संरक्षण में रखने की जरूरत पड़ती है. उन्हें विशेष गृह में रखा जाता है. अगर किसी बच्चे को किसी मामले में सजा हो जाती है, तो उसे भी यहीं भेजा जाता है. यह आदेश किशोर न्याय बोर्ड देता है. जब बोर्ड को किसी मामले में यह पाता है कि बालक या किशोर आरोपी ने कोई अपराध किया है, तो उसके पास कुछ विकल्प होते हैं, जो कानून के तहत हैं. पहला विकल्प कि वह ऐसे बालक या किशोर को चेतावनी देकर छोड़ सकता है. दूसरा विकल्प कि वह उसे समूह परामर्श में भाग लेने की सलाह दे सकता है. तीसरा विकल्प कि कि किशोर को समाज सेवा का आदेश दे सकता है. चौथा विकल्प कि वह जुर्माना चुकाने का आदेश दे सकता है. यह जुर्माना किशोर या उसके माता-पिता से वसूला जा सकता है. पांचवां विकल्प कि किशोर को कुछ दिनों तक सरकार के संरक्षण में रहने का आदेश दिया जा सकता है. इस मामले में बोर्ड उसे विशेष गृह भेजने का आदेश देता है. इस तरह के विशेष गृह की स्थापना सभी जिलों में की जानी है, लेकिन अभी केवल विशेष गृह राज्य में हैं.
दत्तक ग्रहण संसाधन संस्था
राज्य में एक दत्तक-ग्रहण समन्वय एजेंसी (एसीए) है, जो राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन संस्था के नाम से जानी जाती है. यह उन बच्चों के दत्तक-ग्रहण को प्रोन्नत करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम कर रही है, जिन्हें पारिवारिक देखरेख और सहायता प्राप्त नहीं है. एसीए को केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण की मान्यता प्राप्त है. इसका उद्देश्य अनाथ, त्यागे हुए और छोड़े गये बच्चों के स्थायी पुनर्वास के लिए उनके इलाके के भीतर दत्तक-ग्रहण को प्रोन्नत करना है. साथ ही गैर-संबंधी बच्चों के दत्तक-ग्रहण को लोकिप्रय बनाना और व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाना भी इसका काम है. एसीए देश के बाहर दत्तक-ग्रहण के लिए प्रस्तावित किये जाने से पूर्व बच्चों के लिए देश के भीतर उपयुक्त माता-पिता की तलाश करती है. यह दत्तक-ग्रहण के लिए प्राप्त होने और दिये वाले बच्चों तथा लेने के इच्छुक लोगों की सूची भी रिकॉर्ड के तर्ज पर रखता है. यह राज्य के भीतर मान्यता-प्राप्त दत्तक – ग्रहण एजेंसियों से संपर्क बनाती है.
स्कूल पूर्व शिक्षा किट्स
झारखंड सरकार के समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभाग की यह योजना है. आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा दी जाती है. इसके तहत बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति विकसित की जाती है. उन्हें स्कूल जाने और वहां शिक्षा प्राप्त करने योग्य बनाया जाता है. उन्हें खेल-खेल में सामाजिक, शारीरिक, बौद्धिक एवं मनोवैज्ञानिक रूप से विकसित किया जाता है. इस प्राथमिक अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए केंद्र सरकार इन बच्चों को प्री-स्कूल किट्स उपलब्ध कराया जाता है. इसके लिए प्रत्येक केंद्र को हर साल 1000 रुपये देती है.
बाल सुधार संस्थान
झारखंड राज्य बाल संरक्षण संस्था
राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन संस्था
जिला बाल संरक्षण संस्था
संप्रेक्षण गृह
बाल सुधार गृह
शेल्टर गृह
विशेष गृह
बाल कल्याण समिति
किशोर न्याय बोर्ड
बाल अधिकार संबंधी कानून
बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005
किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण)
अधिनियम, 2000
किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण)
संशोधन अधिनियम, 2006
फैक्ट्री एक्ट, 1948
बागान एक्ट, 1951
खान एक्ट, 1952
अनुबंधित श्रमिक अधिनियम, 1975
बाल श्रमिक (निवारण और नियमितीकरण) अधिनियम, 1986
राष्ट्रीय बाल श्रम नीति, 1987