ग्रामीण भारत की उम्मीद ग्लोकल हेल्थकेयर
चिकित्सा एक सेवा है, उद्देश्य एक स्वस्थ समाज के निर्माण में मदद करना. लेकिन वक्त के साथ यह पेशा मायने खोने लगा है और मात्र कमाई का जरिया बनता जा रहा है. लेकिन धारा के विरीत ही कुछ लोग/ संस्था उम्मीद की लौ जलाते हैं. महंगे अस्पताल, कीमती दवाइयों के बीच पश्चिम बंगाल में ‘ग्लोकल […]
चिकित्सा एक सेवा है, उद्देश्य एक स्वस्थ समाज के निर्माण में मदद करना. लेकिन वक्त के साथ यह पेशा मायने खोने लगा है और मात्र कमाई का जरिया बनता जा रहा है. लेकिन धारा के विरीत ही कुछ लोग/ संस्था उम्मीद की लौ जलाते हैं. महंगे अस्पताल, कीमती दवाइयों के बीच पश्चिम बंगाल में ‘ग्लोकल हेल्थकेयर’की स्थापना ग्रामीण भारत के लिए एक ऐसी ही उम्मीद है. दिखावे से दूर, पर बेहतर टीम, कुशल प्रबंधन व आधुनिक तकनीक से लैस यह संस्थान कम खर्च में ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवा रहा है. पेश है यह विशेष रिपोर्ट.
पश्चिम बंगाल में ग्लोकल हेल्थकेयर (2010)ने सस्ते अस्पतालों की एक श्रृंखला शुरू की है. बड़े अस्पतालों के मुकाबले यहां उपचार कराने पर 40 से 50 प्रतिशत कम खर्च आता है. अन्य अस्पतालों में जहां ऑपरेशन मामलों में 15 हजार तक खर्च होते हैं, वहीं ग्लोकल में सात हजार. एपेनडेकटॉमी पर अन्य जगह खर्च 20 हजार होता है, वहीं ग्लोकल में 12 हजार.
* ऐसे हुआ गठन : 2005 में स्वास्थ्य से संबंधित आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में 42 ऐसी बीमारियां हैं, जिसके कारण 95 प्रतिशत आबादी प्रभावित होती है.
इसी रिपोर्ट के आधार पर ग्लोकल की नींव रखी गयी. सर्वे से पता चला कि औसतन एक ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं पर प्रतिवर्ष 1115 रुपये खर्च करता है. इस लिहाज से करीब डेढ़ लाख जनसंख्या वाले ब्लॉक में ग्रामीण प्रतिवर्ष 16 करोड़ से अधिक खर्च करते हैं. ग्लोकल का मानना है कि इतनी जनसंख्या को प्रतिवर्ष आठ करोड़ पर ही बेहतर सुविधा दी जा सकती है.
* तीन वर्ष में पांच अस्पताल : ग्लोकल पिछले तीन वर्षो में पांच अस्पताल खोल चुका है, जबकि 2015 तक 50 और अस्पताल खोले जायेंगे, जिनमें पांच हजार बेड की क्षमता होगी. अपोलो, फोर्टिस जैसे अस्पताल जहां बड़े शहरों में हैं, वहीं ग्लोकल ने अपने सभी अस्पताल ग्रामीण इलाकों में खोले हैं.
* महंगी मशीनों से परहेज : ग्लोकल के किसी भी अस्पताल में सीटी स्कैन या एमआरआइ मशीन नहीं है. हालांकि मेडिसिन, सजर्री, गाइनिकोलॉजी, ओब्सेट्रिक्स, पेडियाट्रिक्स, ऑर्थोपेडिक्स, क्रिटिकल केयर, ट्रॉमा और इमरजेंसी जैसे विभाग हैं. नेत्र और दंत विभाग भी खोले जा रहे हैं.
* बीमारियों पर फोकस : ग्लोकल की स्ट्रैटजी यह है कि राष्ट्रीय आयोग ने जिन 42 बीमारियों पर रिपोर्ट दी थी, उस पर ही फोकस किया जाये. इसलिए कोशिश यह है कि मशीनों को न खरीद कर, उनके पुरजे असेंबल किये जाएं.
* सभी अस्पताल डिजिटल : ग्लोकल मेडिकल टेक्नोलॉजी के चीफ शौर्य भट्टाचार्य बताते हैं कि ग्लोकल के सभी अस्पताल डिजिटल युक्त हैं और वाइ-फाइ युक्त. हरेक अस्पताल दो मेगाबाइट के जरिये डाटा सेंटर से जुड़ा हुआ है.
* खर्च में कटौती : ग्लोकल अस्पतालों में एनालॉग एक्स-रे मशीनें हैं. इसके साथ चाइना मेड एक डिजिटल कैमरा जुड़ा है, जो एक्स-रे की डिजिटल तसवीर कैद करता है. यह तसवीर इंटरनेट के माध्यम से लखनऊ भेजी जाती है, जिसे रेडियोलॉजिस्ट अपनी ओपिनियन के साथ वापस भेजते हैं. टेली रेडियोलॉजी ही नहीं, टेली कंसल्टेशन, टेली पैथोलॉजी, टेली सोनोलॉजी और टेली इंडोस्कोपी के जरिये भी खर्च में कटौती की जाती है. परिणाम है कि मरीजों का इलाज सस्ता हो पाता है.
* इलाज में सावधानी : ग्लोकल ने एमडीएमएस(मेडिकल डायगोनोसिस एंड मैनेजमेंट सिस्टम) बनाया है, जिसे हॉस्पिटल मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम से जोड़ा गया है. यह ऐसा सिस्टम है जिसमें मरीजों की बीमारी और उसके इलाज पर विस्तृत चर्चा की जाती है.
मसलन मरीज के लिए कौन-सी दवा ठीक रहेगी, दवा के साइड इफेक्ट क्या होंगे, प्रिस्क्राइब की गयी दवा के विकल्प क्या हो सकते हैं आदि. ग्लोकल के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर मेजर आशुतोष श्रीवास्तव एमडीएमएस के बारे में कहते हैं कि ग्लोकल में मरीजों को महंगी ब्रांडेड कंपनियों की दवाइयों की जगह जेनरिक दवाइयां लिखी जाती हैं. इससे मरीज का सही तरीके से इलाज हो पाता है.
* 2015 तक ग्लोकल हेल्थकेयर को अपोलो ग्रुप से भी बड़ा करना चाहते हैं. बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में ऐसे 50 अस्पताल खोलने की योजना है.
डॉ शबाहत अजीम सीइओ, ग्लोकल हेल्थकेयर