वर्ष में छह ऋतुएं होती हैं, जिसमें ‘अगहन’ व ‘पौष’ माह हेमंत ऋतु के अंतर्गत आते हैं. हेमंत ऋतु को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उत्तम माना गया है. इस ऋतु में सूर्य की स्थिति दक्षिणायन होती है तथा धूप का सेवन काफी सुखदायक होता है. धूप के सेवन से विटामीन ‘डी’ भरपूर मात्र में मिलती है. शरीर को काफी बल प्राप्त होता है.
आयुर्वेदीय दृष्टिकोण से इस ऋतु में पित्त का शमन होता है तथा वात व कफ का संचय होता है. संचित वायु हेमंत के बाद शिशिर ऋतु में कुपित (बढ़ जाना) हो जाता है. कफ की भी वृद्घि हो जाती है, फलस्वरूप वात व कफ से युक्त रोगों की शिशिर ऋतु में उत्पत्ति होती है. गठिया, दमा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह के रोगियों को इस ऋतु में काफी संयम से रहना चाहिए.
आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना व रोगी की चिकित्सा कर उसे ठीक करना है. इस ऋतु में वातावरण का तापमान काफी कम होने के कारण ठंडा रहता है. इस शरीर के त्वचा के संपर्क में आकर शरीर के बाहरी हिस्से के तापमान को कम कर देता है. शरीर के अंदर का तापमान अधिक होने के कारण जठरागिA तीव्र हो जाती है, जिसके कारण पाचन शक्ति काफी बढ़ जाती है. फलस्वरूप गरिष्ठ पदार्थो को पचाने की क्षमता अधिक हो जाती है. इस ऋतु में भरपेट भोजन करना चाहिए अन्यथा जठरागियो (पाचन शक्ति) अधिक होने के कारण पर्याप्त भोजन नहीं मिलने पर आंत्र के दीवारों पर अग्नि का प्रभाव पड़ने के कारण शरीरस्थ धातु ही जलना प्रारंभ करती है, जिससे वात प्रकुपित होता है व वात रोगों से संबंधित अस्सी प्रकार के रोगों में किसी भी रोग के होने की संभावना होती है.
आहार: हेमंत ऋतु में मधुर, खट्टा व गरिष्ठ पदार्थो का सेवन करना चाहिए. दूध, दही, घी, मक्खन, पनीर, उससे बने पदार्थो का सेवन करना चाहिए. गेहूं, हलवा, पुआ व गन्ने के रस से बने पदार्थ शलिधान का चावल, उड़द व सभी प्रकार के मिष्टान्न, नया अन्य तिल व तिल से बने समाग्री का सेवन करना चाहिए. मांसहारी को मांस, मछली, आदि का सेवन प्राप्त मात्र में करना चाहिए. आसव, अरिष्ट (अश्वगंधारिष्ट, दाक्षारिष्ट, अजरुनारिष्ट आदि) का सेवन करना चाहिए.
कैसे हो शरीर की देखरेख: हेमंत ऋतु में सिर व पूरे शरीर में तेल की मालिश, उबटन, धूप का सेवन करना चाहिए. स्वेदन चिकित्सा काफी उपयोगी है. सूर्यास्त से दूसरे दिन सूर्योदय होने तक खुले आसमान के नीचे हवादार स्थान में नहीं टहलना चाहिए. ऊनी व रेशमी कपड़ों को पहनना उत्तम है. बंद कमरे में बैठना अथवा सोना चाहिए. बिछावन में कंबल अथवा रूई से बने रजाई का इस्तेमाल करें. इस ऋतु में गरम जल से स्नान करना उत्तम है. शरीर पर अगर का लेप लगाना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभकारी है.
नोट: डायबिटीज व हार्ट डिजीज के रोगियों को चिकित्सक के परामर्शानुसार ही गरिष्ठ व मधुर पदार्थो का सेवन करना चाहिए व परामर्शानुसार ही आहार लेना चाहिए. बासी, फ्रिज में रखा भोजन व रूक्ष भोजन खाने से परहेज करना चाहिए.
डॉ देवानंद प्रसाद सिंह
अधीक्षक, राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल पटना
संपर्क: 09431619427