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डायन डायबिटीज

सबसे बड़ी बात यह है कि डायबिटीज में यदि कुछ मैजिक है, तो वह है फिजिकल एक्टिविटी. जिसने इस रहस्य को समझा, वही सबसे सयाना व सुरक्षित है. नये शोधों ने रेगुलर फिजिकल एक्टिविटी का तिलिस्म खोज लिया है. यदि हमारी जनता इस बात को समङो, तो बीमारी से ही मुक्ति मिल जाये. वल्र्ड डायबिटीज […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2013 10:52 AM

सबसे बड़ी बात यह है कि डायबिटीज में यदि कुछ मैजिक है, तो वह है फिजिकल एक्टिविटी. जिसने इस रहस्य को समझा, वही सबसे सयाना व सुरक्षित है. नये शोधों ने रेगुलर फिजिकल एक्टिविटी का तिलिस्म खोज लिया है. यदि हमारी जनता इस बात को समङो, तो बीमारी से ही मुक्ति मिल जाये. वल्र्ड डायबिटीज डे (14 नवंबर) के बहाने ‘डायन डायबिटीज’ पर हो रहे विभिन्न शोधों को समेटता यह आलेख.

देश में जिस रफ्तार से डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. वह भयावह है. डायबिटीज ब्लाइंडनेस व किडनी फे ल्योर का मुख्य कारण हैं. ऐसे में यह आवश्यक है कि इस महामारी की रफ्तार को रोकने की तकनीक पर गहन चिंतन हो. हृदय की बीमारी (कोरोनरी हार्ट डिजीज), पैरों के सड़ने की अवस्था, ब्रेन स्ट्रोक, नपुंसकता व कई अन्य समस्याओं की जड़ में डायबिटीज ही है. इस समय देश में शहरी क्षेत्रों के करीब 18 से 22 प्रतिशत व ग्रामीण क्षेत्रों के 8 से 12 प्रतिशत लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. इसके अलावा कम-से-कम 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें यह पता नहीं है कि उन्हें डायबिटीज हो चुका है या वे ‘इम्पेयरड ग्लूकोज टोलरेंस’ की अवस्था में हैं. इलाज व बचाव की दिशा में लगातार नये शोध हो रहे हैं. वर्ष 2013 में इन शोधों की क्या दशा व दिशा है. इसके बारे में जानकारी जरूरी है.

1.हाल में अमेरिकन संस्था एफडीए ने ‘रियल टाइम ग्लूकोज मॉनिटरिंग’ व ‘इंसुलिन पंप’ को इंटिग्रेटेड इलाज के लिए अनुमोदित कर दिया है. इस तकनीक से अनवरत रक्त में ग्लूकोज की मात्र को परखा जा सकता है. इंसुलिन पंप के जरिये उस मात्र का स्वत: आकलन कर सही मात्र शरीर में भेजी जाती है. शोधों में यह पाया गया है कि ग्लूकोज की मात्र कभी ज्यादा या कभी कम हो, तो ग्लूकोज वेरियाविलिटी (Variability)की यह अवस्था दूरगामी दुष्परिणामों को उत्पन्न करती है. यदि रक्त में ग्लूकोज की मात्र सामान्य के आस-पास रहे, तो हम हर तरह के दुष्परिणामों से बच सकते हैं. ‘सीजीएम कंटीन्यूस ग्लूकोज मॉनिटरिंग यंत्र’ व इंसुलिन पंप का सम्यक रूप को ही ‘आर्टिफिशियल पेन्क्रियाज’ कहा जाता है. मॉनिटरिंग के लिए बिना सूई का इस्तेमाल किये ऐसे सेंसर भी इजाद हुए हैं, जो त्वचा पर रखते हैं ग्लूकोज की मात्र बना देते हैं.

2.डायबिटीज में मस्तिष्क से स्नवित होनेवाले कुछ हार्मोनों का भी भारी हाथ हो सकता है. यह हाल के शोधों ने खुलासा किया है. मस्तिष्क के हाइपोथैलमस से स्नवित होनेवालों हार्मोनों के जरिये ही हमारे फूड की हैबिट, मेटाबोलिक रेट, भूख, वजन आदि का नियंत्रण होता है. मन गंभीर अवसाद में हो तो यह पेन्क्रियाज के बीटा सेल्स (जहां से इंसुलिन स्नवित होता है.) के मेटाबोलिज्म को डांवाडोल कर सकता है. यह तो विदित ही है कि इंसुलिन की नाकामी की अवस्था ही डायबिटीज की अवस्था को लाना है.

3. आधुनिक शोधों ने साफ कर दिया है. हमारे शरीर में एकत्रित चर्बी व ज्यादा चर्बीवाले पदार्थो के खाने से रक्त में बढ़ी फैटी एसिड की मात्र ‘इंसुलिन सिग्नलिंग’ प्रक्रि या को ही नाकाम करने लगती है. इंसुलिन अपना कार्य ही नहीं कर पाता. पहली बार ऑस्ट्रेलिया में हुए एक शोध ने खुलासा किया है कि किस तरह इंसुलिन मॉल्यूक्यूलर लेबल पर कार्य करता है. इस शोध ने नये इलाज की संभावना के द्वार खोल दिये हैं.

4. पिछले दशक में पहली बार डायबिटीज के जिम्मेवार पाचन तंत्र से स्नवित होनेवाले जीएलपी ‘वन’ व जीआइपी हार्मोनों के इंसुलिन जो अहम रोल सामने आये हैं. उसने आज डायबिटीज की चिकित्सा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिये हैं. आज जीएलपी वन एनालॉग- ‘लीराग्लुटाइड(liraglutide)दवा बाजार में उपलब्ध है. इसके जरिये इलाज का होना सबसे प्राकृतिक तरीका माना जा रहा है. इस दवा के जरिये शूगर उतना ही कमता है, जितनी शरीर को जरूरत होती है. यह इस तरह हाइपोग्लायसिमिया (रक्त में शूगर का सामान्य से कम जाना) जैसी अत्यंत खतरनाक समस्या से बचाव करता है. यह इस समय ‘सूई’ के तौर पर उपलब्ध है और इस दवा के जरिये वजन भी खूब कमता है. ‘डीडी फोर इन्हीबीटर’ इसी प्रक्रिया के तहत थोड़े कमजोर तौर पर काम करता है और खानेवाली दवा के तौर पर उपलब्ध है. सीटाग्लिपटीनविलडाग्लिपटीन(sexagliptin)सेक्साग्लिपटीनव लीनाग्लिपटीनअभी भारतीय बाजार में उपलब्ध है. इन दवाइयों ने डायबिटीज के इलाज का पूरा तौर तरीका और हमारी अवधारणा को बदल दिया है.

5. बीटाट्रोफीन-हावर्ड-स्टेम-सेल इंस्टीट्यूट द्वारा प्रस्तुत ‘बीटा ट्रोफ्रीन’ की खोज आनेवाले दिनों में वरदान सिद्ध हो सकती है. अभी चूहों पर हुए शोध में यह देखा गया है, जब बीटा ट्रोफ्रीन हार्मोन दिया गया, तो पेन्क्रियाज के बीटा कोशिकाओं से खूब इंसुलिन बनने लगा. यह खोज जब आदमियों पर भी सफल होगी, तो आनेवाले दिनों में इंसुलिन को ही रिप्लेस कर देगी.

6. कोलंबिया के वेल यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध ने वह कारनामा कर दिखाया, जिससे डायबिटीज के ‘क्योर’ होने की संभावना बनी रहती है. स्वस्थ कोशिकाओं को जब पेन्क्रियाज में ट्रांसप्लांट कर दिया गया, तो इंसुलीन स्नवित होने की अवस्था सामान्य हो गयी. यह लगभग बीमारी के पूर्णत: समाप्त होने की ओर दिशा बनी.

7. डायबिटीज में आनेवाले दिनों में अत्यंत नये इलाजों की संभावना चौखट पर खड़ी है. इसी कदम में ‘नोवो कंपनी’ का नया इंसुलिन डेगलुडेक (ट्रासीबा) सितंबर 2013 से देश में सर्वत्र उपलब्ध हो गया है. पहली बार एक ऐसा इंसुलिन आया है, जिसकी मात्र 48 घंटे तक शरीर में बनी रहती है. अभी दिन में मात्र एक बार देने के लिए अनुमोदित है. मगर संभावना है कि हफ्ते में तीन बार देने पर कई मरीजों का यह शूगर नियंत्रण भलीभांति कर पायेगा. डायबिटीज के मरीजों के लिए यह एक गुड न्यूज है. लेकिन चाहे रिसर्च जितने भी आ जाएं, सबसे बड़ी बात यह है कि डायबिटीज में यदि कुछ मैजिक है, तो वह फिजिकल एक्टिविटी, जिसने इस रहस्य को समझा, वही सबसे सयाना व सुरक्षित है. नये शोधों ने रेगुलर फिजिकल एक्टिविटी का तिलिस्म खोज लिया है. यदि हमारी जनता इस बात को समङो, तो बीमारी से ही मुक्ति मिल जाये.

डॉ एनके सिंह
निदेशक, डायबिटीज हार्ट सेंटर, धनबाद

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