फिजिकल एक्टिविटी है रामबाण

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति व डायबिटीज के क्षेत्र में काम करनेवाली ‘नोवो नार्डिक्स एजुकेशनल फाउंडेशन’ ने राज्य में डायबिटीज मरीजों की जांच, इलाज व परामर्श का काम शुरू कर दिया है. तीन जिलों में चले पायलट प्रोग्राम के बाद सूबे के 20 जिलों के 41 अस्पतालों को डायबिटीज रोगियों की देख-रेख के लिए प्राथमिक सेंटर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2013 10:55 AM

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति व डायबिटीज के क्षेत्र में काम करनेवाली ‘नोवो नार्डिक्स एजुकेशनल फाउंडेशन’ ने राज्य में डायबिटीज मरीजों की जांच, इलाज व परामर्श का काम शुरू कर दिया है. तीन जिलों में चले पायलट प्रोग्राम के बाद सूबे के 20 जिलों के 41 अस्पतालों को डायबिटीज रोगियों की देख-रेख के लिए प्राथमिक सेंटर बनाया गया है.

59.7 फीसदी लोगों डायबिटीज अनियंत्रित : राज्य स्वास्थ्य समिति व ‘नोवो नार्डिक्स’ के द्वारा किये गये सव्रेक्षण के आंकड़े चौकानेवाले हैं. पायलट प्रोजेक्ट के तहत पटना, नालंदा व भागलपुर जिलों का सव्रेक्षण किया गया. 20 अप्रैल 2011 से एक जुलाई 2013 तक चले इस सव्रेक्षण के दौरान 432 जांच शिविर लगाये गये. इनमें एक लाख 94 हजार 439 लोगों की जांच हुई. 2.7 फीसदी लोगों को पहली बार डायबिटीज के बारे में जानकारी मिली.

डायबिटीज रोगियों की प्रसार संख्या 11.9 फीसदी पायी गयी. समाज के 15.4 फीसदी लोगों में डायबिटीज के लक्षण पाये गये. इन लोगों में आनेवाले चार-छह साल में डायबिटीज होगा. देखा गया कि जो लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, उनमें 40.3 फीसदी लोगों ने डायबिटीज की अवस्था को नियंत्रित कर लिया था. चिंता है कि जिन लोगों को डायबिटीज के बारे में जानकारी थी, उनमें 59.7 फीसदी लोगों को रोग अनियंत्रित अवस्था में था. अगर उनकी ब्लड शूगर की स्थिति अनियंत्रित रही, तो भविष्य में हार्ट डिजीज, ब्लडप्रेशर, डायबेटिक रेटिनोपैथी सहित अन्य बीमारियां हो सकती हैं.

डायबिटीज रोगी का अलग आइडी नंबर: डायबिटीज के रोगी की पहचान होने पर उसे खास नंबर आवंटित किया जा रहा है. अगर वह अपने मर्ज का इतिहास भूल जाता है, तो उस नंबर के माध्यम से उसकी केस हिस्ट्री निकाली जा सकती है. यह काम राज्य में डायबिटीज के बैरोमीटर को बदलने की दिशा में किये जा रहे प्रयास के तहत किया जा रहा है. इसके लिए 41 अस्पतालों को चिह्न्ति किया गया है. यहां पर सप्ताह में एक दिन डायबिटीज की जांच की व्यवस्था है. अस्पताल में आनेवाले 20 वर्ष से ऊपर के हर व्यक्ति की डायबिटीज की जांच की जा रही है. जांच में डायबिटीज पाये जाने पर उसका डाटा कैप्चर कर अलग आइडी नंबर दे दिया जाता है.

जिन व्यक्तियों में खाली पेट ब्लड शूगर 126 और खाने के बाद 140 से ऊपर होगा, उनको अलग आइडी दिया जा रहा है. अगस्त 2013 से आठ अक्तूबर 2013 तक राज्य के 40 सेंटरों पर ऐसे 39876 लोगों की जांच की गयी. हर सेंटर पर औसतन 112 मरीजों की जांच की गयी. इसमें 4499 लोगों में डायबिटीज पाया गया. यह देखा गया कि 12 फीसदी लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. सभी सेंटरों पर मरीजों की जांच कर उन्हें परामर्श दिया जा रहा है. राज्य में 73 चिकित्सकों व 91 नर्सो को भी डायबिटीज का खास प्रशिक्षण दिया गया.

18 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त इंसुलिन
देश में दो फीसदी बच्चे डायबिटीज से पीड़ित हैं. इनमें वैसे गरीब बच्चे भी शामिल हैं, जिनके माता-पिता बच्चे के लिए खाने की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे सभी18 वर्ष तक की आयु वर्ग के बच्चों को मुफ्त में जांच व इंसुलिन की व्यवस्था पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में की गयी है. पीएमसीएच के शिशु रोग विभाग में अलग से डायबिटीज क्लिनिक चलाया जाता है. यहां पर बच्चों को मुफ्त जांच व इलाज किया जाता है. अस्पताल में दो वर्ष से यह सेवा चल रही है. इसके तहत 35 बच्चों का पंजीकरण किया गया है.18 वर्ष तक इन बच्चों के जांच व इलाज का पूर्ण खर्च ‘नोवो नार्डिक्स’ कंपनी वहन कर रही है. डॉ सुरेंद्र कुमार को इसका प्रभार सौपा गया है.

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