रोगियों की पीड़ा ने डॉक्टर वर्गीस को मशहूर लेखक बना दिया

-हरिवंश- अब्राहम वर्गीस, अमेरिका के जॉनसन शहर में आये, तो लगा यही जगह आदर्श है. सुरम्य पहाड़ों के बीच, आबादी तकरीबन 50,000. अपराध लगभग नगण्य. व्यवस्थित जीवन. 1985 में 30 वर्षीय डॉ वर्गीस को यह जगह बसने लायक लगी. स्थानीय ‘वेट्रन एडमिनिस्ट्रेशन हॉस्पिटल’ में उन्हें नौकरी भी मिल गयी. जीवन में रस मिलने लगा था. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2015 4:32 PM

-हरिवंश-

अब्राहम वर्गीस, अमेरिका के जॉनसन शहर में आये, तो लगा यही जगह आदर्श है. सुरम्य पहाड़ों के बीच, आबादी तकरीबन 50,000. अपराध लगभग नगण्य. व्यवस्थित जीवन. 1985 में 30 वर्षीय डॉ वर्गीस को यह जगह बसने लायक लगी. स्थानीय ‘वेट्रन एडमिनिस्ट्रेशन हॉस्पिटल’ में उन्हें नौकरी भी मिल गयी. जीवन में रस मिलने लगा था.
अचानक चार वर्षों बाद गोरडोन नामक एक युवक अस्पताल आया. उसे ‘एड्स’ हो गया था. ‘एड्स’ होने के बाद वह अपने शहर ‘डॉनसन’ में मरने के लिए लौटा था. डॉ वर्गीस तब तक मानते थे कि ‘एड्स’ बड़े शहरों तक सीमित है. गोरडोन को मिशनरी भाव से देखना शुरू किया. उस घटना ने डॉ वर्गीस का जीवन बदल दिया और उनके अंदर का संवेदनशील लेखक भी जग उठा. डॉ अब्राहम कौन हैं? भारतीय मूल के एक अध्यापक (जो इथोपिया में थे) के पुत्र. इथोपिया में आंतरिक युद्ध तेज हुआ, तो वह अरदली का काम करने अमेरिका गये.
वहां से मद्रास लौट आये. मद्रास में उन्होंने पांच वर्षों तक डॉक्टरी की पढ़ाई की. बॉस्टन हॉस्पिटल (अमेरिका) से उन्हें छात्रवृत्ति मिली. वहां से वह बसने-प्रैक्टिस करने के लिए बेहतर जगह चुनने में लग गये. तब उन्हें छोटे पर सुंदर जॉनसन शहर ने बसने के लिए आकर्षित किया. वह कहते हैं, ‘एक महाद्वीप से दूसरे, फिर तीसरे में घूमते-घूमते मेरे अंदर किसी जगह के प्रति अपनत्व पैदा नहीं हुआ. मेरी आकांक्षा थी कि मैं किसी शांत-सुंदर, भीड़-भाड़ से दूर शहर में बस जाऊं. और अच्छा डॉक्टर बनूं. जॉनसन शहर को इसी क्रम में मैंने चुना. अंतत: यही मेरा देश भी बन गया.‘उन दिनों उस साफ-सुथरे-सुंदर पर छोटे शहर में एड्स के रोगी का इलाज आसान नहीं था. सबसे पहले ‘एड्स’ का खौफ डॉ वर्गीस पर ही सवार था.

उन्हें मालूम था कि एड्स रोगी के प्रति पारिवारिक ममत्व-बंधन कैसे टूट जाते हैं. समाज किस तरह भयभीत और उपेक्षित भाव से उसे देखता है. एड्स रोगियों के प्रति समाज के हर स्तर पर वैर भाव को भी डॉक्टर वर्गीस ने देखा था. डॉक्टर वर्गीस ने जब गोरडोन की चिकित्सा शुरू की, तो नर्सों को आश्चर्य हुआ कि क्यों मानवीय स्नेह से डॉक्टर इस रोगी को इतना समय देता है? नर्सों की टिप्पणी थी कि यह उक्त रोगी के कर्मों का फल है. एक ने कहा कि इन्हें वहीं मिला, जिसकी इन्हें आकांक्षा थी. दूसरे डॉक्टर भी ऐसे रोगियों की चिकित्सा नहीं करना चाहते थे. इस कारण डॉक्टर वर्गीस ही एड्स रोगियों के डॉक्टर, मित्र और विश्वस्त बन गये.

अगले चार वर्षों में डॉ वर्गीस ने 80 युवा एड्स रोगियों का इलाज किया. ये सारे युवा जॉनसन शहर को छोटा मान कर अत्याधुनिक बड़े महानगरों में चले गये थे. जब ‘एड्स’ हुआ, तो अपने छोटे शहर की याद आयी और लौट आये.

टूटे हुए. मृत्यु भय के साथ इन रोगियों के जॉनसन शहर में आने से भी यह रोग फैलना शुरू हुआ. छुआछूत और खून चढ़ाने के क्रम में. कुछ रोगियों ने जिस साहस और मनोभाव से इस रोग का मुकाबला किया, उससे डॉ वर्गीस अंदर से प्रभावित हुए. एक परंपरागत, अनुदार और गंवई माहौल में एड्स से सैकड़ों लोग प्रभावित हुए. उनके अदम्य साहस, संघर्ष और पीड़ा से हिल उठे डॉक्टर वर्गीस ने इनकी चिकित्सा के साथ-साथ इनके मनोभावों को लिखना शुरू किया. इसी तरह चर्चित पुस्तक ‘माई ओन कंट्री’ डॉक्टर वर्गीस ने लिख डाली.

समरसेट मॉगम के उपन्यास ‘ह्यूमन बांडेज’ ने कभी डॉक्टर वर्गीस को प्रभावित किया था. उस उपन्यास में एक आदर्शवादी डॉक्टर का वृत्तांत है. वर्गीस ने भी ‘डॉक्टरी’ को पेशा बनाया. उन्होंने डॉनसन शहर में एक पत्रिका आरंभ की. उसमें अपनी पत्नी रजनी (भारतीय) की पीड़ा को भी लिखा. उसे भय था कि पति को छुआछूत के कारण कहीं यह रोग न हो जाये. बाहर से डॉक्टर वर्गीस किसी को आहट नहीं लगने देते थे, पर अंदर-अंदर उनके मन में भी यह खौफ था. डॉक्टर वर्गीस ने लिखा, ‘विभिन्न सामाजिक समूहों से आये रोगियों के कारण ‘एड्स’ भी मित्र बन गया.

एक ऐसा मित्र, जिसमें (जिसकी चिकित्सा) डूबा तो रहा, पर कभी उसे घर नहीं ले गया (यानी रोगियों के बीच रह कर भी बचा रहा)‘ अपने अनुभवों को शब्द का आकार देते-देते डॉक्टर वर्गीस ने लिखा कि कैसे एक विदेशी (भारतीय मूल के) डॉक्टर को रोगियों ने अपना सब कुछ बता दिया. पीड़ा के साथ मृत्यु भय के बीच. इस आत्मस्वीकार ने डॉक्टर वर्गीस को अंदर से हिला दिया. भावनात्मक रूप से झकझोर कर रखा दिया. ‘एड्स आपको, आपके लालन-पालन शिक्षा, दृष्टि सबसे काट कर एक ऐसे मुकाम पर खड़ा कर देता है, जिसे अनुभव किया जा सकता है, व्यक्त नहीं. आपके हमउम्र, मृत्यु द्वार पर खड़े हों और आप उनकी चिकित्सा में डूबे हों…?

जनवरी 1990 में मोहलत मिली, तो डॉ वर्गीस पत्नी रजनी और दो पुत्रों के साथ जॉनसन शहर से बाहर निकले. आयोवा विश्वविद्यालय की ‘एड्स टीम’ में वह शरीक हुए. वहीं उन्होंने ‘आयोवा लेखक वर्कशाप’ में अपना नामांकन कराया. जान इरविंग जैसे मशहूर लेखक के साथ काम किया और ‘फाइन आर्ट्स’ में एमए किया. ‘एड्स’ के बारे में ‘द न्यूयॉर्कर’ पत्रिका को दो लेख भेजा. वहीं एक संपादक ने उन्हें अपने अनुभवों को लिखने का सुझाव दिया.
अगले दो वर्षों तक डॉक्टर व वर्गीस लिखने में डूब गये. व्यस्तता-दौड़-धूप के बीच. रोजना सुबह 4.30 बजे उठते और लगातार तीन घंटे लिखते रहे. इसी बीच उनकी नियुक्ति ‘टेक्सॉस हेल्थ साइंस सेंटर’ एलपॉसी में छुआछूत की बीमारियों के प्रमुख डॉक्टर के रूप में हो गयी. उनकी पुस्तक को मशहूर प्रकाशक ‘सिमसन एंड शूसटर’ ने स्वीकार कर लिया और दो लाख डॉलर दिये. दूसरे पुस्तक प्रकाशक ‘विंटेज’ ने पेपरबैक संस्करण का अधिकार लिया और ढाई लाख डॉलर की राशि दी.
अब डॉक्टर वर्गीस एड्स के बारे में छोटी कहानियां लिखना चाहते हैं. इसके बाद मैं एक उपन्यास पर काम करूंगा, जिससे युवकों को डॉक्टर बन कर उन क्षेत्रों-विधाओं में जाने की ऊर्जा मिलेगी, जो अलोकप्रिय है.

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