ढाई हजार बिलियन डॉलर भारतीय धन स्विस बैंक में हैं

-दिल्ली से लौट कर हरिवंश- शिवखेड़ा मानते हैं कि भारतीय समाज में भ्रष्टाचार अब लोगों को बेचैन नहीं करता. जबकि मूल मुद्दा है भ्रष्टाचार. वह फ्री प्रेस अखबार की एक कतरन थमाते हैं. स्विटजरलैंड के भारत स्थित दूतावास के उपप्रमुख का बड़ा बयान है. बयान के अनुसार भारतीय लोगों और कंपनियों के 2500 बिलियन डॉलर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 28, 2015 4:32 PM

-दिल्ली से लौट कर हरिवंश-

शिवखेड़ा मानते हैं कि भारतीय समाज में भ्रष्टाचार अब लोगों को बेचैन नहीं करता. जबकि मूल मुद्दा है भ्रष्टाचार. वह फ्री प्रेस अखबार की एक कतरन थमाते हैं. स्विटजरलैंड के भारत स्थित दूतावास के उपप्रमुख का बड़ा बयान है. बयान के अनुसार भारतीय लोगों और कंपनियों के 2500 बिलियन डॉलर स्विस बैंक में जमा हैं. वह पूछते हैं कि इससे बड़ा प्रमाण और क्या है? जिस देश में स्विस बैंक है, उसके एक जिम्मेदार व महत्वपूर्ण सरकारी व्यक्ति का यह आधिकारिक बयान है. वह कहते हैं कि जितना अंगरेजों ने दो सौ साल में भारत को नहीं लूटा, उतना देश के गद्दारों ने मात्र पचास सालों में लूट लिया. यह सूचना पाकर हतप्रभ हूं. ढाई हजार बिलियन डॉलर इस देश की पूंजी स्विस बैंकों में है, इस पर कहीं चर्चा तक नहीं. महज 100 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार से केंद्र सरकार पूरे देश को फील गुड करा रही है, पर भ्रष्टाचारमुक्त सुशासन की बात करनेवाले इस 2500 बिलियन डॉलर पर एक शब्द नहीं बोलते, न विपक्ष सवाल पूछता है, न मीडिया में प्रश्न उठते हैं. यह मौन सहमति कैसे और क्यों है?
भारतीयों के विदेश में जमा पैसे के संबंध में मुझे अन्य आधिकारिक बयान याद आते हैं. एनडीए की सरकार में मोहन गुरुस्वामी वित्त मंत्री के सलाहकार बनाये गये. जिस दिन पद संभाला, स्टार टीवी पर बयान दिया कि इस देश के लगभग 20,000 करोड़ रुपये बाहर जमा हैं. सीवीसी (चीफ विजलेंस कमिश्नर) के रूप में भूरे लाल ने भी भारतीयों के विदेश में जमा पूंजी के बारे में बताया था कि केंद्र सरकार बाहर जमा धन ले आये, तो भारत अपना पूरा कर्ज अदा कर देगा. राजकोषीय घाटा पूरा कर बजट संतुलन कर लेगा. इसके बाद भी भारी पूंजी शेष बची रहेगी. इस तरह के आधिकारिक बयानों के बाद भी इस देश में भ्रष्टाचार पर रुलिंग इलीट (शासक वर्ग), राजनीतिक मंचों, एनजीओवाद में यह सवाल मुद्दा नहीं रह गया है. भ्रष्टाचार, भारतीय समाज के साथ रच-बस गया, लगता है.
शिव खेड़ा इसकी मनोवैज्ञानिक व्याख्या करते हैं. भ्रष्टाचार या गलत कामों के लगातार भंडाफोड़ से समाज में सहन क्षमता पैदा होती है, फिर इसे लोग स्वीकार कर लेते हैं और अंतत: इसके हिस्सा बन जाते हैं. इसमें इन्वाल्व (शरीक) हो जाते हैं. भारत में भ्रष्टाचार का यही चक्र चल रहा है. जब सब इसमें शामिल हैं, फिर भ्रष्ट कौन है? अगर आप पकड़े गये, रिश्वत लेते कैमरे में कैद हो गये, तो यह आपका दुर्भाग्य? यह हमारी मन:स्थिति है.
पर वह सावधान करते हैं. रोमन साम्राज्य का इतिहास पलटें, भ्रष्टाचार से यह साम्राज्य डूब गया. इसका प्रताप गौरव अतीत बन गया. इतिहास के पन्नों में सिमट गया. भ्रष्टाचार के तरह-तरह के रूप रोमन साम्राज्य में विकसित हुए. घूस, डकैती, बलात्कार, हत्या, लूट, धोखा, षड्यंत्र सार्वजनिक सरकारी खजानों की खुलेआम लूट. यहां तक कि मरनेवालों की अंतिम इच्छा (विल) में भी फेरबदल होता था. मरनेवालों के अंतिम संस्कार विधि-विधान घूस से तय होने लगे. जिन मरे बंदियों के स्वजन घूस नहीं देते थे, उनके शव कुत्तों-जंगली जानवरों के लिए फेंक दिये जाते थे. जिनके स्वजन दाह-संस्कार के लिए घूस देते थे, उन्हें शव सौंपे जाते थे सम्मानपूर्वक व विधि-विधान के साथ दाह-संस्कार के लिए. जिन लोगों को फांसी की सजा होती थी, उनके स्वजन पैसा देते थे, ताकि मरनेवालों को आसानी से मृत्युदंड मिले. जो सरकारी मुलाजिमों को खुश नहीं कर पाते थे, उनके मृत्युदंड पाये स्वजन भयावह, कष्टपूर्ण मौत पाते थे. भोथरी कुल्हाड़ी से धीरे-धीरे रेत कर उनकी गरदन काटी जाती थी.
रोम के ये दृश्य आज के भारत के जन-जीवन में किस कदर पैठ गये हैं. पग-पग पर सौदेबाजी, घूस, कमीशन और भ्रष्टाचार याद आता है. ह्ण74 में पहली बार भ्रष्टाचार गंभीर मुद्दा बना. तुलमोहन राम एक सांसद थे बिहार के. उन्होंने मालगाड़ी के ह्यवैगन एलाटमेंटह्ण में एक पक्ष की मदद की. आरोप था कि इसके बदले उन्हें डेढ़-दो लाख रुपये मिले. यह मुद्दा लोकसभा से लेकर पूरे देश में तंत्र के भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया. मधु लिमये ने लोकसभा में पूरी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया. डेढ़-दो लाख के रिश्वत का मामला, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सिंबल बन गया. आज 35-40 हजार करोड़ रुपये के स्टांप घोटाले (जिसने पूरे तंत्र का चेहरा दिखा दिया है) जैसे मामले मुद्दा नहीं बन पा रहे, क्योंकि सिस्टम चलानेवाले सारे अंग इसमें शामिल हो गये हैं. अच्छे लोग तटस्थ या मौन होकर दरकिनार हो गये हैं. इंदिरा गांधी ने भ्रष्टाचार को विश्वव्यापी चीज बताया. राजीव गांधी ने माना कि दिल्ली से चला एक रुपया गांव पहुंचते-पहुंचते 15 पैसे रह जाता है. प्रधानमंत्री जैसी ताकतवर संस्थाओं से यह स्वीकारोक्ति, पर कोई कार्रवाई नहीं. नतीजा सामने है, सबसे गंभीर मुद्दा भ्रष्टाचार अब सार्वजनिक जीवन में मुद्दा नहीं रहा. जबकि सत्य यह है कि भ्रष्टाचार ने करोड़ों-करोड़ों के जीवन में सिर्फ अंधकार, पीड़ा और गरीबी की सौगात दी है. भारत के भविष्य और विकास को बंधक बना लिया है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग कैसे होगी? शिव खेड़ा बताते हैं कि 99 फीसदी भारतीय ईमानदार हैं, वे अपराध में भागीदार नहीं हैं, लेकिन अपराध के शिकार बन चुके हैं. वह पूछते हैं, हिंदुस्तान में चार हजार करोड़ की नकली दवाएं हर साल बनती हैं. इससे कोई मरता है, तो लोग कहते हैं हादसा. लेकिन मैं कहूंगा मर्डर. फिर कहते हैं कि यदि हालात बदलने हैं, देश को बदलना है, तो हर नागरिक को सिपाही बनना होगा.

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