रविवार की देर शाम 10-11 साल का एक बच्चा घर लौटा, उसकी कोहनियों से खून बह रहा था. परिवारवालों ने पूछा तो उसने बताया कि दोस्तों के साथ क्रि केट खेल रहा था, इसी बीच चोट लग गयी. बच्चे की बात सुनने के बाद भी न तो पैरेंट्स ने उन्हें डांटा और न पीटा. अगली सुबह उसका बड़ा भाई उसे क्रि केट कोच के पास ले गया. वह बच्चा कोई और नहीं सचिन तेंडुलकर था.
राष्ट्रीय बाल भवन
राष्ट्रीय बाल भवन बच्चों की संस्था है. इसकी स्थापना 1973 में हुई थी. इसमें बच्चों के लिए प्रतिभा को निखारने के लिए कई तरह के कार्यक्रम जैसे क्ले मॉडलिंग, संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला, हस्त शिल्पकला, संग्रहालय गतिविधि, वीडियोग्राफी, इंडोर-आउटडोर खेल, गृह प्रबंधन, पारंपरिक कला, शैक्षिक और इनोवेटिव खेल/चेस होते हैं. बच्चों से रिलेटेड मिनी ट्रेन, मिनी जू, फिश कॉर्नर, साइंस पार्क, फनी मिरर, कल्चर क्र ाफ्ट विलेज भी यहां हैं. इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय बाल भवन अंतरराष्ट्रीय कार्यशालाएं, ट्रैकिंग कार्यक्र म, टॉक शो, कैंप आयोजित करता है.
बच्चों आप खुद में स्पेशल हैं, इसलिए आप वही करें, जो आपको अच्छा लगता हो. आप यह सोचें कि आपको भगवान ने किसी अच्छे वर्क के लिए भेजा है. इस कारण गलत राह का चुनाव नहीं करें. दुनिया का हर बच्च अपने आप में खास है. आपमें इतनी प्रतिभा है कि अगर आप इसे पहचान कर आगे बढ़ें, तो आनेवाला कल निश्चित रूप से आप का होगा. लेकिन यह तभी संभव हो सकेगा, जब आप खुद सपने देखेंगे और उसे पूरा करने के लिए कठिन मेहनत करेंगे. आपके काम करने के लिए पूरा आसमां है. आप अपनी योग्यता और कठिन मेहनत के बल पर कैरियर की ऊंचाई को छू सकते हैं.
हर साल ‘चिल्ड्रेंस डे’ आपको यही विशेषता बताने आता है. आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराने और खुद को बेहतर लाइफ चुनने के लिए यह दिन आपके लिए रखा गया है. आप सपने देखें, बड़े सपने देखें और उन्हें पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करें. उदाहरण के लिए, 10-11 साल का एक बच्चा रविवार को देर शाम घर लौटा, उसकी कोहनियों से खून बह रहा था. घर पर पूरा परिवार फिल्म का आनंद ले रहा था. चोट देख कर परिवारवालों ने पूछा तो उसने बताया कि दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था, इसी बीच चोट लग गयी. बच्चे की बात सुनने के बाद भी न तो पैरेंट्स ने उन्हें डांटा और न पीटा. अगली सुबह उसका बड़ा भाई उसे क्रि केट के कोच के पास ले गया. उसमें क्रिकेट के लिए दीवानगी इतनी भरी थी कि न तो उसे खाने की चिंता थी और न सोने की. वह बच्चा आगे चल कर सचिन तेंडुलकर बना. यहां सचिन की बात इसलिए की जा रही है, आप में से हर कोई सचिन, कल्पना चावला, अमिताभ, आमिर, सानिया या अब्दुल कलाम बनना चाहता है. यह सही भी है, लेकिन आप उनके जैसा तभी बन पायेंगे, जब उनकी तरह्र मेहनत करेंगे.
‘चाचा’ से विशेष लगाव
बच्चे उनके पास सबसे अधिक जाते हैं, जो उनकी बात सुनता है और उन्हें प्यार करता है. परिवार में अमूमन पैरेंट्स के बाद चाचा ही यह काम करते हैं. अकसर देखा गया है कि वे पैरेंट्स से डरते हैं, लेकिन ‘चाचू’ के साथ सहज रहते हैं. वह चाचा के साथ क्रिकेट खेलते हैं और आइसक्र ीम भी खाते हैं. यही कारण है कि बच्चों का जिनसे अधिक लगावा होता है, उन्हें वह चाचा के नाम से पुकराते हैं. चाहे वह चाचा नेहरू हो या पूर्व राष्ट्रपति चाचा अब्दुल कलाम.
क्यों मनाया जाता है बाल दिवस
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है. 20 नवंबर 1959 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने बच्चों के अधिकारों के घोषणापत्र को मान्यता दी थी. इसी उपलक्ष्य में 20 नवंबर को यूनिवर्सल चिल्ड्रेंस डे के रूप में चुना गया. इसी दिन 1989 में बच्चों के अधिकारों के समझौते पर हस्ताक्षर किये गये, जिसे 191 देशों द्वारा पारित किया गया. 20 नवंबर को वर्ल्ड चिल्ड्रेंस डे के रूप में मनाया जाता है. बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए बाल दिवस स्कूलों तथा अन्य संस्थाओं में धूमधाम से मनाया जाता है.
नेहरूजी का बाल प्रेम
चाचा नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे. तीन मूर्ति भवन में उनका सरकारी निवास था. एक दिन तीन मूर्ति भवन के बगीचे में एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनायी दी. नेहरूजी ने मन-ही-मन सोचा- इसकी मां कहां होगी? उन्होंने इधर-उधर देखा. वह कहीं भी नजर नहीं आ रही थी. नेहरूजी ने बच्चे को उठा कर अपनी बांहों में लेकर उसे थपकी दी व झुलाया तो बच्चा चुप हो गया और मुस्कुराने लगा. बच्चे को मुस्कुराते देख चाचा खुश हो गये और बच्चे के साथ खेलने लगे. जब बच्चे की मां दौड़ते हुए वहां पहुंची, तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. उसका बच्चा नेहरूजी की गोद में मंद-मंद मुस्कुरा रहा था.
गुब्बारों ने बनाया ‘चाचा नेहरू’
एक बार जब पंडित नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर गये, तो उनकी एक झलक पाने के लिए हर आदमी इतना उत्सुक था कि जिसे जहां समझ आया, वहां खड़े हो कर नेहरू को निहारने लगा. इस भीड़ भरे इलाके में नेहरूजी ने देखा कि दूर खड़ा एक गुब्बारे वाला पंजों के बल खड़ा डगमगा रहा था. नेहरूजी की गाड़ी जब गुब्बारे वाले तक पहुंची, तो गाड़ी से उतरकर वे गुब्बारे खरीदने के लिए आगे बढ़े. यह देख कर गुब्बारेवाला हक्का-बक्का सा रह गया. नेहरूजी ने सारे गुब्बारे खरीद लिये और वहां उपस्थित बच्चों को गुब्बारे बंटवा दिये. बच्चों के प्रति इसी प्रेम को देखते हुए उन्हें चाचा नेहरू की उपाधि दी गयी.