वाइ-फाइ से सौ गुना तेज इंटरनेट मुहैया करायेगा
शहरों से लेकर गांवों तक इंटरनेट का इस्तेमाल दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. इस्तेमाल के हिसाब से इसकी स्पीड का नहीं बढ़ना एक नयी समस्या पैदा कर रही है. भारत के विशेषज्ञ विदेश में इस चुनौती को सुलझाने में जुटे हैं और उन्हें कामयाबी भी मिली है.
क्या है यह कामयाबी और कितनी स्पीड से मुमकिन हो सकता है इंटरनेट से वीडियो डाउनलोड समेत इस मसले से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज…
-शंभु सुमन
मौ जूदा युग में तकनीक पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है. ऐसे में सर्वर डाउन, अटकती हुई डाउनलोड की स्थिति और कॉल ड्रॉप की समस्या से लोगों को दिक्कत होने लगती है.
एचडी मूवीज, वीडियो या गेम डाउनलोडिंग में ज्यादा समय लगता है. इनसे छुटकारा अब वाइ-फाइ से 100 गुना तेज इंटरनेट की रफ्तार वाले लाइ-फाइ से संभव है. यह कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि हकीकत में बदलने वाली सच्चाई है. ऐसा करिश्मा भारतीय तकनीशियनों ने ही कर दिखाया है. हाल ही में ‘वेलमेनी’ नामक एक स्टार्टअप द्वारा एस्तोनिया में किये गये परीक्षण में सुनिश्चित किया गया कि यह 224 गीगाबाइट डाटा का ट्रांसफर सैद्धांतिक तौर पर एक सेकेंड में कर पाने में भी सक्षम है. यानी यह हम तक प्रकाश की गति से मिल पायेगा. जिस तरह हमें बल्ब की रोशनी के लिए स्विच आन करते ही कृत्रिम प्रकाश मिल जाता है, ठीक वैसे ही पर्याप्त इंटरनेट उपलब्ध हो जायेगा.
इस कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी दीपक सोलंकी का कहना है कि यह तकनीक बड़े डाटा ट्रांसफर और जीबी में वीडियो डाउनलोड के लिए काफी उपयोगी है. साथ ही इससे न केवल कॉल ड्राप की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी, बल्कि वाइ-फाइ की खामियों में हैकिंग जैसी आशंका और स्वास्थ्य संबंधी असहजता की परेशानियों से भी मुक्ति मिल जायेगी. यह कार्यालयों में इस्तेमाल के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है.
क्या है लाइ-फाइ
सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे डाटा ट्रांसफर की तकनीक कहा जा सकता है, लेकिन यह उच्च तकनीक आधारित आप्टिकल वायरलेस सिस्टम है. इसमें विजिबल लाइट कम्यूनिकेशंस (वीएलसी) का उपयोग होता है. यह परंपरागत ‘वाइ-फाइ’ का ही एक आप्टिकल वर्जन (प्रकाशिकी संस्करण) है. इसे बिजली के स्रोत से चलनेवाले संसाधनों में एक एलइडी बल्ब, एक इंटरनेट कनेक्शन और एक फोटो डिटेक्टर के जरिये संचालित किया जा सकता है.
इसका सबसे पहला प्रयोग 26 जनवरी, 2012 को लास वेगास, अमेरिका में किया गया था. हालांकि, इसकी खोज सर्वप्रथम वर्ष 2011 में ब्रिटेन के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेराल्ड हास ने किया था. उन्होंने इसका प्रदर्शन टेक्नोलॉजी, इंटरटेनमेंट एंड डिजाइन कॉन्फ्रेंस में एक एलइडी बल्ब से वीडियो भेज कर किया था.
लाइ-फाइ से जुड़ी बातें और तकनीक के बारे में जानकारी देनेवाले उस वीडियो को अब तक करीब 20 लाख बार देखा जा चुका है. लाइट कम्यूनिकेशन होने की वजह से इसका नाम वाइ-फाइ की तर्ज पर लाइ-फाइ दिया गया है.
तकनीकी रूप से यह मौजूदा रेडियो तरंगों के स्पेक्ट्रम की सीमा से आगे जाकर 10,000 गुना ज्यादा प्रभावी विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम पर आधारित है. शोधकर्ता का दावा है कि इसके निकट भविष्य में खत्म होने की कोई आशंका नहीं है और इसका इस्तेमाल संवेदनशील स्थानों पर भी किया जा सकता है. इसी संदर्भ में असाधारण सफलता को लेकर प्रोफेसर हास ने ऐसे भविष्य की कल्पना की है, जिससे आनेवाले दिनों में बिजली के अरबों बल्ब वायरलैस हॉटस्पॉट बन जायेंगे.
क्यों है महत्वपूर्ण?
वाइ-फाइ की तुलना में यह काफी सुरक्षित और सस्ती है. चंूकि इसके बल्ब की रोशनी कमरे की दीवार के बाहर नहीं जा पाती है, इसलिए इसकी हैकिंग नहीं की जा सकती. यानी यह तकनीक दीवार के पार इस्तेमाल नहीं की जा सकती और इससे आवश्यक ऊर्जा की खपत भी कम होती है.
वाइ-फाइ की तुलना में इसे महज पांच फीसदी ऊर्जा की ही जरूरत होती है. इसमें एक साथ चार कंप्यूटरों को मात्र एक वॉट के एलइडी बल्ब के प्रकाश के इस्तेमाल वाले इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है. यह परीक्षण भले ही एक कार्यालय के कर्मचारियों द्वारा सुविधाजनक तरीके से इंटरनेट चलाने को ध्यान में रख कर किया गया हो, लेकिन इसकी उपयोगिता व्यापक हो सकती है.
साथ ही एक औद्योगिक क्षेत्र में भी इसका परीक्षण किया जा चुका है. इसने एक स्मार्ट लाइटिंग सॉल्यूशन मुहैया कराया. इसमें रिमोट कंट्रोल की तरह सूचना को लाइट पल्सेज में एनकोड किया जा सकता है.
यह कहें कि सूचना-तकनीक के क्षेत्र के लिए यह काफी उपयोगी बन सकता है, तो सामान्य दूधिया रोशनी की तरह दिखनेवाला यह एलइडी ब्रॉडबैंड कनेक्शन के लिए पर्याप्त डेटा ट्रांसमिट करने में भी सक्षम है. इसका बड़ा लाभ यह भी है कि यह वाइ-फाइ की तरह दूसरे रेडियो सिगनल में बाधक नहीं बनता है. इस कारण इसका इस्तेमाल अन्य स्थानों पर भी किया जा सकता है.
संभावनाएं और आशंकाएं
विलमनी कंपनी के सीइओ दीपक सोलंकी इस तकनीक आधारित बड़ी परियोजनाएं जल्द ही बड़े पैमाने पर लानेवाले हैं. यह कंपनी भले ही एस्तोनिया में पंजीकृत है, लेकिन इसके सीइओ से लेकर पूरी टीम भारतीय है. सब कुछ ठीक रहा, तो आनेवाले तीन-चार सालों में यह भारतीय उपभोक्ताओं तक पहुंच सकता है. भले ही इसका विकल्प खोजना आसान नहीं होगा, लेकिन कुछ खामियां भी हैं.
इसकी सबसे बड़ी खामी यह है कि इसे घर के बाहर धूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि सूर्य की किरणों के साथ इसके सिगनल काम नहीं करते हैं.
कैसे काम करता है लाइ-फाइ
इस तकनीक में एम्बोडिड माइक्रोचिप लगे एलइडी बल्ब के जरिये इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे बल्ब के ऊपर लगाया जाता है. यह चिप 150 एमबीपीएस की स्पीड से डाटा भेजने में सक्षम है. वैसे लाइ-फाइ की क्षमता 10 जीबीपीएस तक हो सकती है.
इंटरनेट का स्ट्रीमिंग कंटेंट इसी चिप के माध्यम से बल्ब की किरणों के साथ एक दायरे में फैलता है. यह कंप्यूटर, मोबाइल या लैपटॉप में लगे फोटो डिटेक्टर तक पहुंचता है. इसके डाटा एप्लीकेशन को मिलते ही कंप्यूटर में इंटरनेट एक्सेस की सुविधा मिल जाती है.
वेलमेनी ने प्रदर्शन के दौरान एक जीबीपीएस की स्पीड से डेटा भेजने के लिए एक लाइ-फाइ बल्ब का इस्तेमाल किया. हालांकि, लाइ-फाइ के इस्तेमाल के लिए मोबाइल पर एक डिवाइस लगानी होगी, पर भविष्य में यह लाइ-फाइ और ब्लूटूथ की तरह मोबाइल में ही इनबिल्ट हो सकती है.
लाइ-फाइ : कब क्या हुआ
जनवरी, 2010 : डिजिटल कम्यूनिकेशन के लिए एडिनबर्ग की संस्था ने डी-लाइट परियोजना संबंधी वर्ष जनवरी, 2010 से जनवरी, 2012 के दौरान आनेवाले खर्च की वित्तीय व्यवस्था की.
जुलाई, 2011 : इसके मूल संस्थापक ब्रिटेन के हराल्ड हास ने टीइडी वैश्विक सम्मेलन में पहली बार लाइट से डेटा ट्रांसफर की तकनीक के बारे में बताया और इसका लाइ-फाइ की तर्ज पर लाइ-फाइ नाम दिया.
अक्टूबर, 2011 : कंपनियों और उद्योग समूहों ने मिल कर उच्च गतिवाले आॅप्टिकल वायरलेस सिस्टम को बढ़ावा देने और विभिन्न हिस्सों में उपलब्ध विद्युतीय चुंबकीय वर्णक्रम की सीमित मात्रा को नियंत्रित करने के लिए लाइ-फाइ कंसोर्टियम (सहायक व्यवस्था) बनायी गयी.
जनवरी, 2012 : परियोजना से संबंधित जरूरी उपकरण बनाने के लिए कुछ कंपनियां आगे आयीं. इसी क्रम में हास को सह-संस्थापक के तौर पर उपकरण निर्माता कंपनी प्योर लाइ-फाइ का साथ मिला. उसने विजिबल लाइट क्म्यूनिकेशन की स्थापना की और इसके लिए पैसा लगाया.
दिसंबर, 2012 : दूसरी बार इस प्रोजेक्ट पर और अधिक शोध के लिए पैसे की जरूरत होने पर राल्स रायस आगे आया.
अगस्त, 2013 : लाइ-फाइ तकनीक के प्रदर्शन के सिलसिले में एक रंग वाले एलइडी बल्ब से 1.6 जीबीपीएस डेटा ट्रांसफर कर सबको चौंका दिया.
सितंबर, 2013 : एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया गया कि लाइ-फाइ या वीएलसी सिस्टम को लाइन आफ साइट की स्थितियों की जरूरत नहीं है. यानी इसे देखा नहीं जा सकता है.
अक्टूबर, 2013 : चीन के निर्माताओं ने घोषणा की थी कि वे लाइ-फाइ के किट विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं.
अप्रैल, 2014 : रूसी कंपनी स्टेन्स कोमन बीम कास्टर ने बीम कास्टर नामक लाइ-फाइ वायरलेस लोकल नेटवर्क के विकास की घोषणा की. बताया गया कि यह 1.25 जीबीपीएस की दर से डेटा ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन निकट भविष्य में इसकी रफ्तार बढ़कर पांच जीबी प्रति सेकेंड की हो जायेगी. इसी साल एक मैक्सिकन कंपनी सिसोफ्ट ने एक एलइडी बल्ब से 10 जीबीपीएस की रफ्तार से डेटा ट्रांसफर का नया रिकार्ड बना लिया.
नवंबर, 2015 : हास ने एक अंतरराष्टÑीय कार्यक्रम के दौरान सोलर सेल की मदद से लाइ-फाइ का
प्रदर्शन किया.
दिसंबर, 2015 : लाइ-फाइ के उपकरणों के उत्पादों के लिए कंपनियों ने कमर कस ली है और पूरी तैयारी से इसे कॉमर्शियल रूप देने में जुटे हैं. इन्हीं में एस्तोनिया की स्टार्टअप वेलमनी भी है, जिसकी पूरी टीम भारतीयों की है.
लाइ-फाइ की खासियतें
लाइ-फाइ कई मायने में उपयोगी और कम खर्चीली है. इसकी कुछ खासियतें इस प्रकार हैं:
– स्पेक्ट्रम : सेलुलर नेटवर्क के लिए अतिरिक्त क्षमता की मांग वाली जगह पर डाउनलोड के लिए लाइ-फाइ का लाभ मिल सकता है. यह अड़चनों वाले डाउनलिंक पर विशेष रूप से प्रभावी होता है.
– स्मार्ट लाइट : स्ट्रीट लैंप समेत किसी भी निजी या सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था वाले जगह को लाइ-फाइ हॉटस्पॉट बनाया जा सकता है. इसके जरिये संचार और सेंसर की बुनियादी ढांचे को प्रकाश-नियंत्रण और डेटा की निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
– मोबाइल कनेक्टिविटी : मोबाइल, स्मार्टफोन, टैबलेट और अन्य मोबाइल उपकरणों का उपयोग इसके जरिये सीधे तौर पर किया जा सकता है. कम दूरी के लिंक होने पर काफी उच्च दर से डेटा ट्रांसफर करता है और यह सुरक्षा भी प्रदान करता है.
– अस्पताल और हेल्थकेयर : अस्पतालों और हेल्थकेयर के लिए यह बहुत ही सुरक्षित है. इसमें पैदा होनेवाली विद्युत चुंबकीय तरंगों से इन स्थानों पर स्वास्थ्य को खतरा नहीं पहुंचता.
– एविएशन : लाइ-फाइ विमान यात्रियों के लिए केबल लगाने के बोझ को कम कर सकता है और उनकी सुविधानुसार इंटरनेट की सुविधा प्रदान मुहैया करवा सकता है.
– पानी के भीतर संचार : पानी के भीतर रेडियो फ्रिक्वेंसी काफी मात्रा में अवशोषित हो जाती है, जिससे यह काम करना बंद कर देता है. इसी तरह से ध्वनिक तरंगें भी बहुत कम बैंडविड्थ की हो जाती हैं और इससे समुद्री जीवों को दिक्कत होती है. लाइ-फाइ दूर संचार की सुविधाएं उपलब्ध करवाने और इसके समाधान में काफी हद तक महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
– यातायात के साधन : वाहनों में एलइडी हेडलाइट्स और पीछे की रोशनी में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. स्ट्रीट लैंप, साइनेज और यातायात के सिगनल्स को भी लाइ-फाइ में बदला जा सकता है. इन्हें वाहन-से-वाहन और वाहन से सड़क के किनारे संचार सुविधा बढ़ाने में मददगार बन सकता है.
– खिलौने : एलइडी लाइट के खिलौने को लाइ-फाइ के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे इसकी लागत में कमी आ सकती है.