बेजोड़ है कार्ट की कार

आइआइटी, खड़गपुर के छात्रों ने बनायी फॉर्मूला रेस कार जानने की चाह से निकलती है राह. कुछ ऐसा ही हुआ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी), खड़गपुर के मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों के साथ. उन्हें जो पढ़ाया जाता था, उससे आगे की बात जानने इच्छा ने उन्हें नये तरीके से सोचने पर मजबूर कर दिया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2015 2:30 AM
आइआइटी, खड़गपुर के छात्रों ने बनायी फॉर्मूला रेस कार
जानने की चाह से निकलती है राह. कुछ ऐसा ही हुआ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी), खड़गपुर के मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों के साथ. उन्हें जो पढ़ाया जाता था, उससे आगे की बात जानने इच्छा ने उन्हें नये तरीके से सोचने पर मजबूर कर दिया और वर्ष 2008 से आज तक पढ़ाई के दौरान उनका प्रोजेक्ट पर रिसर्च जारी है. उस समय प्रायोगिक तौर पर वहां के छात्रों ने केएक्स-वन रेसिंग कार का निर्माण किया.
हालांकि, इसके पहले भी देश के कई इंजीनियरिंग संस्थानों के छात्रों द्वारा रेसिंग कार का निर्माण किया जा चुका था, लेकिन इनका मकसद यह था कि कम खर्च पर अधिक कारगर कार का निर्माण किया जाये. छात्रों के दिमाग में यह बात भी थी कि एक ऐसी कार बनायी जाये, जिसमें कम ईंधन के साथ ही तेज गति हो, ताकि उनकी कार रेस में अव्वल आये.
इस ध्यान में रखते हुए इस संस्थान के छात्रों ने वर्ष 2008 से जिस प्रकार के रेसिंग कारों के निर्माण की शुरुआत की, तो आज तक उसके निर्माण का सिलसिला जारी है. उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि उनकी कार न केवल भारत बल्कि हर साल लंदन में आयोजित होनेवाली प्रतियोगिता और सेमिनारों में भी सफल घोषित की गयी. छात्रों की भूख इसी पर नहीं रुकी. उन लोगों ने कार को अपडेट करने की कोशिश जारी रखी.
नतीजतन खुद की मेहनत से छात्रों ने इस प्रकार की रेसिंग कारों की दुनिया में अब तक करीब तीन पीढ़ियों की रेसिंग कार का निर्माण कर लिया है. उनके द्वारा निर्मित स्पीड कार की तीसरी पीढ़ी भी बन कर तैयार है. जनवरी में इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लंदन में आयोजित होनेवाले सेमिनार में पेश किया जायेगा. इन छात्रों ने प्रायोगिक कार केएक्स-वन को बनाने के बाद के-वन, के-टू और
अब के-थ्री फार्मूला रेस का निर्माण किया है.
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी होते हैं शामिल : आइआइटी, खड़गपुर के छात्र इस फॉर्मूला रेसिंग कार को वैश्विक स्तर पर लंदन में आयोजित होनेवाली फॉमूला स्टूडेंट (एफएस) प्रतियोगिताओं में भी शामिल करते हैं. वहां दुनिया के विभिन्न देशों के छात्र उपस्थित रहते हैं. ब्रिटिश जीपी के गृह शहर में यूनाइटेड किंग फॉमूला स्टूडेंट की ओर से सिल्वर स्टोन सर्किट पर समारोह का आयोजन किया जाता है. इसमें उद्योग जगत के 10 हजार से अधिक लोग दर्शक के रूप में उपस्थित होते हैं.
छात्रों ने हासिल की उपलब्धि : आइआइटी, खड़गपुर के छात्रों ने अब तक एफएसयूके में वर्ष 2010, 2011 और 2013 में भाग लिया है. वर्ष 2010 में छात्रों को एयरबस टीमवर्क अवॉर्ड के लिए नामित किया गया था. इसी तरह वर्ष 2011 में यहां के छात्रों की टीम को इस सम्मेलन में टॉप थ्री में शामिल किया गया. इसके बाद वर्ष 2013 में रेस प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए छात्रों की दो टीमों ने क्वालिफाइ कर लिया. जनवरी, 2015 में कोयंबटूर में भारत के फॉर्मूला स्टूडेंट के लिए समारोह आयोजित किया गया, तो इसमें खड़गपुर के छात्रों ने अहम भूमिका निभायी.
नयी पीढ़ी की रेस कार के-थ्री के संदर्भ में : खड़गपुर ऑटोमोबाइल रेसिंग टीम (कार्ट) ने फिलहाल के-थ्री रेसिंग कार के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की है. इसमें ड्यूक-390 का सिंगल सिलिंडर इंजन लगाया गया है. यह कार काफी हल्की और पिछली कारों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन में सक्षम है. इस कार का निर्माण कार्य अगले साल जनवरी में पूरा हो जायेगा. इसके बाद इसे लंदन में आयोजित होनेवाले सेमिनार में पेश किया जायेगा.
अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल : संस्थान की कार्ट टीम में शामिल कुणाल खेतावत का कहना है कि उनकी टीम की ओर से बनायी गयी नयी पीढ़ी की रेसिंग कार के-थ्री भारत के अन्य तकनीकी संस्थानों के छात्रों द्वारा बनायी गयी कारों से उन्नत है. इसका इंजन अत्याधुनिक तकनीक का है और इसे यूएस से मंगाया गया है. उनका दावा है कि इस कार में कम ईंधन की खपत होती है और इसकी स्पीड बीते दो पीढ़ियों की कार से अच्छी है.
इसके पहले भी के-वन और के-टू पीढ़ी की कारों का निर्माण किया गया था. उनमें भी बाइक के इंजन ही लगाये गये थे. अौर वे भी उन्नत किस्म के थे.
स्पीड भी है अधिक : आइआइटी, खड़गपुर के छात्र केतन मुंद्रा ने बताया कि यह कार पिछली दो पीढ़ियों की कार से देखने में तो बड़ी है, लेकिन इसका वजन उन कारों से काफी कम है. इसके साथ ही इसकी स्पीड भी अच्छी है. उन्होंने बताया कि अभी के-थ्री का निर्माण जारी है.
रेसिंग के लिए इस्तेमाल किये जाने से पहले से इसकी टेस्टिंग की जायेगी. इसके बाद जनवरी में लंदन में आयोजित होनेवाले सेमिनार में पेश किया जायेगा. अंतरराष्ट्रीय रेसिंग मानकों पर खरा उतरने के बाद इसे सर्टिफिकेट प्रदान किया जायेगा. तभी इसका व्यावसायिक तौर पर रेसिंग में इस्तेमाल किया जा सकेगा. उन्होंने यह भी बताया कि उनके संस्थान से रेसिंग कार बनाने का आइडिया वर्ष 2008 में मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्र सिद्धार्थ खस्तरी के दिमाग में आया था.
उन्होंने संस्थान के प्रबंधन के समक्ष प्रस्ताव रखे और तभी से इसका प्रयास किया जाने लगा. सफलता 2010 में तब मिली जब लंदन में आयोजित सम्मेलन में यहां के छात्रों को एयरबस अवॉर्ड के लिए नामित किया गया. उनका कहना है कि तब तक संस्थान की ओर से केएक्स-वन और के-वन का निर्माण किया जा चुका था.

Next Article

Exit mobile version