अपने अहं को दूर रख सॉरी बोलना सीखें
दक्षा वैदकर हमें यह सोचना बहुत अच्छा लगता है कि हम हमेशा सही हैं. अपनी गलती को स्वीकार कर लेने से हमारी नजर में हमारा दरजा कम हो जाता है. माता-पिता को अपने बच्चों के साथ और वरिष्ठों को अपने से छोटे लोगों के साथ अहं की समस्याएं होती हैं. भारत में आमतौर पर पतियों […]
दक्षा वैदकर
हमें यह सोचना बहुत अच्छा लगता है कि हम हमेशा सही हैं. अपनी गलती को स्वीकार कर लेने से हमारी नजर में हमारा दरजा कम हो जाता है. माता-पिता को अपने बच्चों के साथ और वरिष्ठों को अपने से छोटे लोगों के साथ अहं की समस्याएं होती हैं. भारत में आमतौर पर पतियों का अहं अपनी पत्नियों के मुकाबले और ज्यादा मजबूत होती है. वे गलती स्वीकार ही नहीं करते. सॉरी बोलना तो दूर की बात है.
माता-पिता के रूप में आपने कितनी बार अपने बच्चे के सामने स्वीकार किया है कि डांटने के मामले में आप गलत थे? बड़े भाई-बहन के रूप में आपने कितनी बार अपने छोटे भाई-बहन से अपने खराब व्यवहार के लिए माफी मांगी है? मुझे यकीन है कि ऐसा शायद ही कभी हुआ हो.
हर आदत का इलाज सिर्फ यही है कि आप अपने अहं को छोड़ दें. इसे खत्म करने के लिए आपको पहले यह स्वीकार करना होगा कि आप भगवान नहीं, जो गलतियां न करें. आप इंसान हैं. आप गलती कर सकते हैं और माफी भी मांग सकते हैं. इससे आप छोटे नहीं हो जायेंगे.
मेरा एक सुझाव यह भी है कि आप खुद को गंभीरता से न लें. हम सभी में अहं इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हम खुद की एक बहुत गंभीर छवि बना लेते हैं और इसका मजाक उड़ाया जाना पसंद नहीं करते. साथ ही हम अपनी छवि को लेकर कुछ ज्यादा ही सजग होते हैं. परंतु उस छवि की प्रस्तुति हमें गलत और तनावपूर्ण बना देती है.
हम जिन लोगों को सामाजिक रूप से खुद से हीन समझते हैं, उनके बीच नहीं हंसेंगे, क्योंकि उससे हमें लगता है कि हम उनके स्तर तक आ जायेंगे. दूसरी ओर, हम उन बातों पर भी हंस लेंगे, जो हमें समझ नहीं आयी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उच्च स्तरवाले लोग उस पर हंसे हैं और हम अपनी नासमझ छवि प्रस्तुत नहीं करना चाहते. आप एक बच्चे को देखें. वह दुनिया में किसी चीज की परवाह किये बगैर कितना खुल कर हंसता है. उसे परवाह नहीं कि कौन देख रहा है, न ही उसे इस चीज की परवाह है कि उसका चेहरा कितना अजीब दिख रहा है.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
– जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हम अपने आसपास के झूठे मूल्यों पर अधिक ध्यान देने लगते हैं और बचपनवाली वह सहजता खो बैठते हैं.
– दिल खोल कर हंसें, बिना किसी की परवाह किये. गलती करें, तो इगो काे साइड में रख कर तुरंत सॉरी बोलें. यही असली जीवन है.