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गैजेट की वजह से कम होती जा रही है हमारी नींद

जैसे-जैसे लोग आधुनिकता को अपना रहे हैं वैसे-वैसे उनके जीवन में भी बदलाव आता जा रहा है. कंप्यूटर, स्मार्टफोन आदि के प्रयोग से जहां एक ओर सूचना क्रांति आयी है, वहीं दूसरी ओर इनसे हमारी नींद भी खराब हुई है. हाल ही में ड्यूक यूनिवर्सिटी में हुए एक रिसर्च में पता चला है कि मनुष्य […]

जैसे-जैसे लोग आधुनिकता को अपना रहे हैं वैसे-वैसे उनके जीवन में भी बदलाव आता जा रहा है. कंप्यूटर, स्मार्टफोन आदि के प्रयोग से जहां एक ओर सूचना क्रांति आयी है, वहीं दूसरी ओर इनसे हमारी नींद भी खराब हुई है. हाल ही में ड्यूक यूनिवर्सिटी में हुए एक रिसर्च में पता चला है कि मनुष्य जाति अपनी नजदीकी अन्य जीवों की जाति की तुलना में काफी कम सो रही है.

इस रिसर्च के मुताबिक एक व्यक्ति औसतन सात घंटे की नींद लेता है, जबकि अन्य जीव अभी भी 14-17 घंटे की नींद ले रहे हैं. मनुष्य कम देर की सही, लेकिन बेहतर नींद का अनुभव करते हैं. हालांकि एक अन्य रिसर्च में यह भी बताया गया है कि गैजेट आदि से तो नींद खराब हुई जरूर है, लेकिन ऐसे क्षेत्रों, जहां बिजली की सुविधा नहीं है वहां भी लोगों को कम सोते पाया गया है.

अर्थात् यह बदलाव पूरी दुनिया में है. वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य के कम सोने से वे जीवन की अन्य चीजों की ओर भी अपना ध्यान दे पाये जैसे-नयी-नयी चीजों को सीखना और समाजिक स्वभाव को विकसित करना आदि.

एक रिसर्च के अनुसार टींस को रोज कम-से-कम नौ घंटे की नींद की जरूरत होती है. इसके लिए उन्हें नौ बजे तक सो जाना चाहिए और सुबह छह बजे तक जाग जाना चाहिए.

लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. वे या तो पढ़ाई के ओवरलोड के कारण जागते हैं या फिर चैटिंग के लिए. दोनों ही स्थितियों में नींद खराब होती है. लगातार ऐसा होने पर बॉडी क्लॉक के गड़बड़ाने का खतरा होता है.

इसके अलावा कई रोगों जैसे-इनसोम्निया, पीएलएमडी, ओबस्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया आदि रोगों का भी खतरा होता है. इसके अलावा कम सोने के कारण अगले दिन के काम-काज पर भी बुरा असर पड़ता है. इससे पढ़ाई पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है. अत: रिसर्चरों का मानना है कि रात को कम-से-कम सोते समय गैजेट का प्रयोग न करें. सोते समय कमरे में रोशनी और अन्य शोर के साधनों प्रयोग भी न करें.

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